जमीन बेच दी, माैत का सामना किया लेकिन 5 दिनाें में दाे बार एवरेस्ट फतह किया
दुनिया में पहली बार किसी महिला ने ऐसा किया
2011 में दाे बार, 2013 में एक बार और 2017 में फिर दाे बार एवरेस्ट फतह किया. 2017 में महज 5 दिन के ड्यूरेशन में दाे बार एवरेस्ट फतह किया. ऐसा किसी महिला ने दुनिया में पहली बार किया था. अब मैं हर साल कम से कम एक समिट पूरी करना चाहती हूं. हालांकि ऐसा करना बहुत मुश्किल है, क्याेंकि आसानी से स्पाॅन्सरशिप नहीं मिलती. जाे थाेड़ा-बहुत पैसा जुड़ पाता है, वाे सब इसी में लग जाता है, लेकिन फिर भी मैं यही करना चाहती हूं. मेरी बड़ी बेटी काॅलेज में आ चुकी है. छाेटी बेटी 9वीं क्लास में ह
पैसाें की दिक्कत आई ताे जमीन बेच दी वे कहती हैं, 2009 में मैंने माउंटेनियरिंग की प्राेेशनल ट्रेनिंग शुरू कर दी. पहले बेसिक काेर्स किया .फिरएडवांस काेर्स किया. 2011 में मेरी पहली समिट थी. तब पैसाें की दिक्कत खड़ी हाे गई. कम से कम 25 लाख रुपए चाहिए थे. कुछ मदद ताे सरकार से मिल गई, लेकिन बाकी पैसे खुद ही जुटाने थे. हमने अपनी पुश्तैनी जमीन बेच दी. जाे सेविंग्स थीं, वाे भी सब फिस में लगा दी. आखिर पहली काेशिश में ही मैंने एवरेस्ट फतह कर लिया. इसका कारण ये था कि मैं काी छाेटी उम्र से ही ट्रैकिंग करने लगी थी और पहाड़ पर चढ़ने की आदत भी थी. पद्मश्री पाने वालाें में आज कहानी अरुणाचल प्रदेश की अंशु जामसेनपा की.
वे दुनिया की पहली ऐसी महिला हैं, जिन्हाेंने पांच दिनाें के भीतर दाे बार माउंट एवरेस्ट फतह किया. जब स्कूल में पढ़ रही थीं, तभी घर वालाें ने शादी कर दी. पहाड़ चढ़ने के लिए उन्हाेंने अपनी पुश्तैनी जमीन बेच दी. सेविंग्स खत्म कर दीं और पद्मश्री पाने वालाें में आज कहानी अरुणाचल प्रदेश की अंशु जामसेनपा की. वे दुनिया की पहली ऐसी महिला हैं, जिन्हाेंने पांच दिनाें के भीतर दाे बार माउंट एवरेस्ट फतह किया. जब स्कूल में पढ़ रही थीं, तभी घर वालाें ने शादी कर दी. पहाड़ चढ़ने के लिए उन्हाेंने अपनी पुश्तैनी जमीन बेच दी. सेविंग्स खत्म कर दीं और मैं भी कैंप में शामिल हुई थी. मैंने कई एक्टिविटीज में पार्टिसिपेट किया.
वहां आए माउंटेनियर्स ने मेरी फिटनेस और एक्टिविटी काे देखते हुए मुझसे कहा कि, आपकाे माउंटेनियरिंग में आना चाहिए. मुझे भी लगा कि, मैं पहाड़ पर चढ़ाई कर सकती हूं्तब मैंने डिसाइड किया कि, मुझे पर्वताराेही बनना है. उस समय मेरी दाेनाें बेटियां छाेटी थीं. मेरे पति 49 देशाें की यात्रा कर चुके हैं. वे अक्सर बाहर ही हाेते हैं. ऐसे में बेटियाें काे संभालने की पूरी जिम्मेदारी मेरे ऊपर थी. हमने दाेनाें बेटियाें काे बाेर्डिंग स्कूल भेज दिया, ताकि उनकी पढ़ाई अच्छी तरह से हाे सके.