खिलाड़ियाें काे स्पाेर्ट्स साईंस का साथ मिले ताे वे देश का सम्मान बढ़ा सकते हैं

    12-Jun-2021
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स्पाेर्ट्स मेडिसिन स्पेशलिस्ट डाॅ. अजीत मापारी ने कहा : ‘काेराेना ने चुनाैतियाें से निपटना सिखाया’

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बाहर से काेई व्यक्ति दिखने में कितना ही हृष्ट-पुष्ट क्याें न दिखाई दे, (बाह्य लक्षण न दिखाई देने पर)भीतर से वह काेराेना करियर है या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता. इसलिए केवल बाहरी रूप काे अनावश्यक महत्व न देते हुए, शरीर काे भीतर से तंदुरुस्त बनाएँ और प्रसन्न, हँसता-खेलता जीवन जीएँ. भारतीय क्रिकेट संघ के भूतपूर्व टीम डाॅक्टर और स्पाेर्ट्स मेडिसिन के प्रतिष्ठित विशेषज्ञ डाॅ. अजीत मापारी ने, हमारे ‘आनंद’ प्रतिनिधि से हुई बातचीत में उक्त सलाह दी.
 
काेराेना-काल के दाैरान आपकी कार्यप्रणाली में क्या बदलाव आया है? आपने इस नई कार्यप्रणाली से किस तरह सामंजस्य स्थापित किया है?
डाॅ. मापारी- मूलतः स्पाेर्ट्स मेडिसिन एक अलग ही तरह का क्षेत्र है. इसमें व्यक्ति का प्रत्यक्ष परीक्षण किए बिना अचूक निदान नहीं किया जा सकता. यदि आपका मरीज काेई खिलाड़ी है ताे उसके परफाॅर्मेंस की जाँच , उससे प्रत्यक्ष मिलकर ही की जा सकती है.काेराेना के कारण हमारी इस कार्यप्रणाली पर बंधन लग गए हैं. मेरे पास आने वाले अधिकतर मरीज, क्रीड़ा क्षेत्र से संबंधित हाेते हैं. इनमें चाेटी के खिलाड़ियाें से लेकर युवा/ नवाेदित खिलाड़ी भी हाेते हैं और खेल का प्रशिक्षण लेने वाले विद्यार्थी भी हाेते हैं. उनकी इम्यूनिटी ताे अच्छी ही हाेती है लेकिन काेराेना संक्रमण कुछ अलग ही तरह का है.इसलिए मेरे पास आने वाला मरीज बाहर से कितना ही हृष्ट-पुष्ट क्याें न दिखाई दे, (बाह्य लक्षण न दिखाई देने पर)भीतर से वह काेराेना करियर है या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता. इसलिए हमारे काम में काेराेना के कारण चुनाैतियाँ बढ़ गई हैं.
 
काेराेना महामारी का आपके व्यावसायिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा है? आपकाे आर्थिक स्तर पर किन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है?
डाॅ. मापारी- मुझे खिलाड़ी के निकट जाकर ,उसे स्पर्श करके ही उसका परीक्षण करना पड़ता है. इसलिए यदि खिलाड़ी परीक्षण के लिए पास आए ताे भी उसके परीक्षण में कठिनाई आती है.किसी भी मरीज के क्लीनिक में आकर जाने के बाद क्लीनिक की कुर्सी, परीक्षण का बेड एवं अन्य सभी उपकरणाें काे तत्परता से जीवाणु रहित कर उसके बाद ही अगले व्यक्ति काे भीतर बुलाने की शुरुआत की. इससे खर्च कई गुना बढ़ गया. मेडिकल की एक विशिष्ट शाखा में काम करने के कारण मुझे अपने क्लीनिक का आकार भी बहुत बड़ा रखना पड़ता है. साथ ही अपने साथ कार्यरत सहायकाें की संख्या भी ज्यादा रखनी पड़ती है. इस पूरी व्यवस्था काे संभालने के लिए याें भी ज्यादा ही खर्च हाेता है. उस पर भी काेराेना-काल में मरीजाें की संख्या बहुत कम हाे गई है. इस कारण मुझे आर्थिक चुनाैतियाें का भी सामना करना पड़ रहा है.
 
व्यावसायिक/ आर्थिक समस्याओं से जूझने के लिए आप क्या उपाय आजमा रहे हैं?
डाॅ. मापारी- काेराेना की पहली लहर की तुलना में दूसरी लहर में ज्यादा कष्ट हुआ है. मेरा क्लीनिक प्रभात राेड जैसे क्षेत्र में हाेने के कारण, वहाँ का किराया और अन्य खर्च भी बहुत अधिक हैं.हालांकि पिछले कई वर्षाें से घर-मालिक के साथ अच्छे संबंध हाेने के कारण तथा उन्हें भी मेरी वर्तमान परिस्थिति का एहसास हाेने के कारण उन्हाेंने किराए के संदर्भ में समझदारी से मेरा साथ दिया. मैंने अपने सहायकाें काे भी अदल-बदल कर काम पर बुलाया जिससे उन्हें काम भी मिलता रहा और मेरे द्वारा उनकाे दिया जा रहा वेतन भी बँट गया.
 
काेराेना महामारी के चलते, विगत 2 वर्षाें में आपके व्यक्तिगत जीवन में क्या बदलाव आए हैं?
डाॅ. मापारी- पिछले वर्ष कड़े लाॅकडाउन के कारण सब कुछ ठप्प हाे गया था. अधिकांशतः सभी खिलाड़ियाें के टूर्नामेंट स्थगित हाे गए या उन्हें विलंबित कर दिया गया.उन प्रतिस्पर्धाओं की दृष्टि से देखा जाए ताे हम हर बार फिटनेस की जितनी तैयारी करते हैं, उतनी तैयारी संभव नहीं हाे सकी. चाेटिल खिलाड़ियाें का उपचार न हाे पाने के कारण उनके करियर में समस्या उत्पन्न हुई. हमने अपनी ओर से प्रयासाें में काेई कमी नहीं रखी. खेल जगत में, अचानक आई चुनाैतियाें और बाधाओं काे पारकर आगे बढ़ना बहुत महत्वपूर्ण हाेता है; काेराेना ने यह सबक सिखा दिया कि अचानक आई आपत्ति का डटकर सामना कैसे किया जाए.
 
अपने पारिवारिक सदस्याें से आपके आपसी संबंधाें पर, इस नई जीवनशैली का क्या प्रभाव पड़ा है?
डाॅ. मापारी- मेरी पत्नी काे अपने काम के सिलसिले में अक्सर घर से बाहर रहना पड़ता है. फिलहाल ’वर्क फ्राॅम हाेम’ के कारण वे लगातार डेढ़ वर्ष से घर पर ही हैं. मेरी बेटी लाॅ की पढ़ाई कर रही है. उसे अपनी माँ के साथ समय बिताने का माैका मिला. हमारा 8 जनाें का संयुक्त परिवार है जिनमें मैं, मेरे माता-पिता, पत्नी, बेटी, मेरे भाई-भाभी एवं भतीजी शामिल हैं. आजकल शहराें में ऐसा परिवार मुश्किल से ही देखने मिलता है. काेराेना काल में हमें एक दूसरे के साथ रहने का भरपूर अवसर मिला और इससे हमारे परस्पर संबंध और घनिष्ट हुए हैं.
 
लाॅकडाउन के दाैरान स्वयं का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए आप क्या करते हैं?
डाॅ. मापारी- मेरा प्राेफेशन ही फिटनेस एवं खेल से संबंधित हाेने के कारण स्वयं की फिटनेस के लिए भी हमेशा सजग रहता हूँ. लाॅकडाउन के कारण बाहर के खेल एवं व्यायाम बंद हाे जाने के कारण घर में ही सूर्य नमस्कार, फ्लाेर एक्सरसाइज करता हूँ.
विशेषकर काेराेना ने, लाेगाें के समक्ष शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के महत्व काे उजागर कर दिया है. ऐसा नहीं है कि आप खिलाड़ी हाें तभी अपनी फिटनेस और व्यायाम के प्रति सजग रहें.देखा गया है कि जिन लाेगाें का बेसिक फिटनेस लेवल अच्छा था, दूसराें की तुलना में उन्हें काेराेना से संबंधित तकलीफें बहुत कम हुईं अथवा हुईं ही नहीं. हरेक काे नियमित व्यायाम का महत्व समझ कर, उसके अनुसार ही अपनी दिनचर्या बनानी चाहिए.
 
साेशल मीडिया पर उपलब्ध जानकारी की अधिकता से लाेग भ्रमित हाे रहे हैं. बहुत से लाेग अधूरी या गलत जानकारी से प्रभावित हाेकर, अपने काे विशेषज्ञ मानने लगे हैं. आप ऐसे लाेगाें का कैसे मार्गदर्शन करना चाहेंगे?
डाॅ. मापारी- साेशल मीडिया पर सत्य और अफवाह के बीच का भेद मिटता नजर आ रहा है, जिससे लाेग भ्रमित हाे जाते हैं. कई मित्र मुझे फाेन कर बताते हैं कि उन्हें किसी अधिकृत व्यक्ति से फलाँ- फलाँ भीतरी जानकारी मिली है, बाद में पता चलता है कि वह पूरी तरह गलत है. इसलिए यह अत्यावश्यक है कि साेशल मीडिया पर उपलब्ध जानकारी काे अत्यंत शांति एवं संयम के साथ ग्रहण किया जाए.