नियमित पंचकर्म के कारण बीमारियाें की राेकथाम हाेने से स्वस्थ जीवन जीना संभव

    22-Jul-2021
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आयुर्वेद विशेषज्ञ डाॅ. अजीत कुमार मंडलेचा की राय - ‘आयुर्वेद सभी उम्र के लाेगाें हेतु फायदेमंद’
 
 

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काेराेना काल में लाेग काढ़ा पीने के प्रति बड़े जागरूक हाे गए थे. हालांकि लाेग काढ़े तक ही सीमित नहीं रहे बल्कि काेराेना के प्रभाव से निपटने के लिए, आयुर्वेदिक चिकित्सा और उपचार की ओर भी लाेगाें का झुकाव बढ़ा है.पंचकर्म और केरल आयुर्वेदिक दवा के विशेषज्ञ डाॅ. अजीत कुमार मंडलेचा ने आनंद प्रतिनिधि से बातचीत करते हुए यह विचार व्यक्त किए.
 
काेराेना काल में आयुर्वेदिक दवाओं के प्रति लाेगाें का क्या दृष्टिकाेण था? आयुर्वेदिक दवा से लाेगाें काे किस तरह लाभ मिला?
 
डाॅ. मंडलेचा- यह कहना अतिशयाेक्ति नहीं हाेगी कि काेराेना काल वायरस की दृष्टि से स्वर्ण काल सिद्ध हुआ. अभी तक दुनिया में कहीं भी काेराेना के लिए काेई भी ’डिसीज स्पेसिफिक’ दवा उपलब्ध नहीं है. ऐसी स्थिति में वैद्याें ने ’लक्षण स्पेसिफिक’ और ’व्याधि स्पेसिफिक’ दवा का उपयाेग किया जिससे मरीजाें काे बढ़िया फायदा मिला. आयुर्वेदिक दवाओं के कारण रिकवरी जल्दी और अच्छी हुई. साथ ही बहुत कम मरीजाें काे हाॅस्पिटलाें में जाना पड़ा. कम खर्च में आयुर्वेदिक इलाज मिलने के कारण, लाेगाें काे हाॅस्पिटलाें के माेटे बिल नहीं भरने पड़े.
 
आयुर्वेदिक दवाओं और केरला आयुर्वेदिक उपचार में क्या अंतर है? केरला उपचार पद्धति से राेगी किस तरह लाभान्वित हाे सकते हैं?
 
डाॅ. मंडलेचा- आयुर्वेदिक उपचार पद्धति प्राचीन विज्ञान है जाे मूलतः पूरे विश्व में समान ही है. हालांकि, प्रत्येक मरीज के लिए ग्रंथ साधना के अनुसार विशेष अवस्थिक चिकित्सा करना, केरल चिकित्सा उपचार पद्धति की विशेषता है. किसी भी राेग से संक्रमित हाेने के बाद, उस राेग का स्वरूप हमेशा एक जैसा नहीं हाेता. उसकी तीव्रता में बदलाव हाेता रहता है, जिसके अनुसार ही राेगी की दशा में भी बदलाव हाेता है. इन बदलती दशाओं के अनुसार विभिन्न तरह  कषाय (काढ़े) बना कर दिए जाते हैं. बुखार हाे ताे ’अमृताेत्तरम कषाय’, स्वाद और सूँघने की शक्ति चली गई हाे ताे ’इंदकांत कषाय’ सर्दी एवं कफ की समस्या के लिए ’दशमूल कटुत्रादायी कषाय’ जैसे विभिन्न तरह के काढ़े पिलाकर, असरदार तरीके से बीमारी काे ठीक किया जाता है. लेकिन केरला आयुर्वेदिक उपचार पद्धति में , बीमारी ही न हाेने देने के लिए, प्रतिराेधक क्षमता बढ़ाने वाले ’ गुंडूच्चादि कषाय’ एवं ’शतावरी छिन्नहृहादि कषाय’ जैसे काढ़ाें का उपयाेग किया जाता है जाे बहुत असरदार सिद्ध हुए हैं.
 
केरल उपचार पद्धति और पंचकर्म की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
 
डाॅ. मंडलेचा- केरल उपचार पद्धति की मुख्य विशेषता, वैज्ञानिक पद्धति से किया जाने वाला बाह्य स्नेहन उपचार (मसाज थेरेपी) है. इस थेरेपी में हाथाें एवं पैराें का विशिष्ट तरीके से उपयाेग कर, शरीर की विभिन्न माँसपेशियाें में ऊर्जा का संचार किया जाता है. माँसपेशियाें एवं जाेड़ाें के कड़ेपन एवं कमजाेरी काे दूर करने तथा नसाें के भीतर के सुचारू प्रवाह एवं बल बढ़ाने के लिए अवस्थिक दवाओं का प्रयाेग किया जाता है. केरल उपचार पद्धति एक अनाेखी विशेषता ’पाेट्टली चिकित्सा’ है. इनमें मुख्यतः माँसपेशियाें, जाेड़ाें एवं हड्डियाें के विकाराें के अनुसार उनकी जकड़न दूर करने, सूजन एवं दर्द खत्म करने के लिए पत्र पाेट्टली, चूर्ण पाेट्टली, अविल पाेट्टली, जंबीर पाेट्टली जैसी विशेष पाेटलियाें (छाेटी थैलियाें) का उपयाेग किया जाता है.सर्वाइकल स्पाॅन्डिलाइटिस, फ्राेजन शाेल्डर, आर्थ्राइटिस, पैरालिसिस जैसी बीमारियाें में पाेटली चिकित्सा निश्चित ही बहुत फायदेमंद है. इसके अतिरिक्त सिर पर तेल की धार छाेड़कर किए जाने वाले मूर्नीतेलम एवं शिराेधारा उपचार ने आयुर्वेदिक उपचार पद्धति काे भारत भर ही नहीं बल्कि विश्व भर में ख्याति एवं मान्यता दिलाई है.
 
पंचकर्म उपचार के लिए सामान्यतः किस आयु समूह के लाेग आते हैं? युवा पीढ़ी काे, पंचकर्म से संबंधित क्या सुझाव देना चाहेंगे?
 
डाॅ. मंडलेचा: आजकल की भागदाैड़ भरी जिंदगी में स्कूली बच्चाें से लेकर बुजुर्गाें तक सभी तनाव, आपसी स्पर्धा एवं चिंता से ग्रस्त रहते हैं. ऐसे में केरल आयुर्वेदिक उपचार अंतर्गत समाहित तैलधारा, दुग्धधारा, शिराेधारा जैसे उपचार उसे तनाव से मुक्ति दिला कर शांत, निराेगी जीवन बिताने के लिए अत्यंत लाभदायक सिद्ध हाेते हैं. युवा पीढ़ी, विशेषतः आईटी एवं कारपाेरेट क्षेत्र में कार्यरत युवक-युवतियाें में लगातार बैठ कर काम करने एवं लगातार प्रतिस्पर्धात्मक तनाव के वातावरण के कारण माँसपेशियाें के दुर्बल हाेने, जाेड़ाें में अकड़न, लगातार सिरदर्द जैसी समस्याएँ उत्पन्न हाेती हैं. इन सब समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए केरल उपचार पद्धति लाभदायक सिद्ध हाे रही है अतः पंचकर्म चिकित्सा की ओर युवा पीढ़ी का झुकाव बढ़ रहा है.
 
क्या नियमित पंचकर्म चिकित्सा कराने से, बीमारियाें काे दूर रखा जा सकता है?किन बीमारियाें में पंचकर्म चिकित्सा विशेष गुणकारी सिद्ध हुई है?
 
डाॅ. मंडलेचा- नियमित पंचकर्म, बीमारियाें से दूर रखने और स्वस्थ जीवन जीने में सहायक हाेता है. पंचकर्म द्वारा शरीर के अनावश्यक दूषित घटकाें काे बाहर निकाल दिया जाता है जिससे कई बीमारियाें से, अपने आप ही राेकथाम हाे जाती है. माँसपेशियाें से संबंधित समस्याओं, संधिवात, आमवात, गाउट, गर्भाशय के विकार एवं साेरायसिस आदि के लिए, आयुर्वेदिक दवाएँ एवं पंचकर्म विशेष रूप से गुणकारी सिद्ध हुए हैं.
 
पिछले एक दशक में पंचकर्म के क्षेत्र में काैन से मुख्य बदलाव हुए हैं?
 
डाॅ. मंडलेचा- कई बीमारियाें में आयुर्वेद एवं पंचकर्म विशेष गुणकारी हैं, जिसके कारण पिछले एक दशक में आयुर्वेद की ओर लाेगाें का उल्लेखनीय झुकाव हुआ है.पारंपरिक उपचार पद्धति के साथ आधुनिक मेडिकल साइंस का समन्वय कर, पंचकर्म के उपयाेग के लिए ऑटाेमेटिक धारा यूनिट, अग्निकर्म यंत्र जैसे उपकरणाें का निर्माण हुआ है. हमारे देश में ’आयुर्वेद इंजीनियरिंग’ जैसी अवधारणा अपनी जड़ें जमाने लगी है.