DR. VISHWESH AGARWAL
नेत्र विशेषज्ञ (रेटिना स्पेशलिस्ट)
ईमेल: docvishveshagarwal@gmail.com
संपर्क क्रमांक: 9834139855
50 की उम्र के बाद दृष्टि पटल (आँखों के पर्दे) की नियमित जाँच कराना बुजुर्गोें के लिए आवश्यक जिंदगी के लिए आँखों को बचाएं व आँखों के लिए रेटिना को बचाएं. रेटिना आँखों का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अवयव है. मधुमेह, रक्तचाप एवं व्यसन होने पर, चश्मे का नंबर बहुत ज्यादा होने पर तथा 50 वर्ष की उम्र के बाद रेटिना की नियमित जाँच आवश्यक है. प्रसिद्ध नेत्र विशेषज्ञ एवं रेटिना स्पेशलिस्ट डॉ. विेशेश अग्रवाल ने ’आनंद’ के प्रतिनिधि से बातचीत करते हुए अपनी अमूल्य सलाह दी.
रेटिना क्या होता है? यह क्या कार्य करता है?
डॉ. अग्रवाल: रेटिना (आँखों का पिछला पर्दा), आँख का अत्यंत महत्वपूर्ण अवयव है. हमारी आँखों के सामने जो भी वस्तु, व्यक्ति अथवा दृश्य होता है उसका प्रतिबिंब रेटिना पर पड़ता है और उसके कारण हम उसे देख सकते हैं. हमारी आँखों के सामने आई किसी भी वस्तु अथवा व्यक्ति का प्रतिबिंब (इमेज) रेटिना पर पड़ने के बाद, उसे मस्तिष्क में संदेश ग्रहण करने वाले केंद्र तक भेजने का कार्य किया जाता है तथा वहाँ उसका अर्थ समझा जाता है. इस कारण हम अपने सामने आई वस्तु अथवा दृश्य को समझ पाते है अथवा सामने खड़े व्यक्ति को पहचान पाते हैं.
रेटिना खराब होने के क्या कारण होते हैं?
डॉ. अग्रवाल: आँखों के पर्दे में विभिन्न कारणों से गड़बड़ी उत्पन्न हो सकती है. उस पर भी यदि मधुमेह बहुत गंभीर हो गया हो उसके दुष्प्रभाव रेटिना पर पड़ने (डायबिटिक रेटिनोपैथी) की संभावना बढ़ जाती है. अनियमित रक्तचाप भी आँखों के पर्दे को बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार हो सकता है. यदि किसी व्यक्ति को -6 या उससे अधिक नंबर का चश्मा लगा हो तो ऐसे व्यक्ति के रेटिना के भी जल्दी खराब होने के संकेत दिखाई देते हैं. बढ़ती उम्र के साथ भी रेटिना में खराबी अथवा दृष्टि कमजोर होने की समस्या होने लगती है. इसके अतिरिक्त आँखों में किसी भी प्रकार की सीधी क्षति पहुँचने, घाव अथवा दुर्घटना होने पर भी उसके खराब होने का खतरा बना रहता है.
यह किस तरह पता लगाया जा सकता है कि रेटिना को हानि पहुँची है ?
डॉ. अग्रवाल: रेटिना खराब होने पर नजर के सामने काले दाग, ठिपके अथवा धब्बे दिखाई देने लगते हैं. इसके अतिरिक्त आँखों के सामने तारे चमकने जैसा एहसास होना भी रेटिना के क्षतिग्रस्त होने का लक्षण है. दिन के उजाले में अथवा हमेशा ही आँखों के सामने काला पर्दा दिखाई देना अथवा नजर कमजोर होने का एहसास होना, आँखों से कम दिखाई देना अथवा दिखाई देना पूरी तरह बंद हो जाना भी, रेटिना के क्षतिग्रस्त होने का लक्षण है.
रेटिना क्षतिग्रस्त होने पर कौन सी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं?
डॉ. अग्रवाल: रेटिना आँख का एक कोमल अवयव है. इसे हानि पहुँचने पर, आँखों के पर्दे पर रक्त का थक्का बन सकता है. आँखों में सूजन आ सकती है. इसके अतिरिक्त आँखों के पर्दे के, अपनी जगह से खिसक जाने की समस्या उत्पन्न हो सकती है जिसे रेटिना डिटैचमेंट कहा जाता है.
रेटिना पर अन्य किन बीमारियों का दुष्प्रभाव पड़ सकता है?
डॉ. अग्रवाल: शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा कम होने अथवा एनीमिया (खून की कमी) होने पर उसका सीधा दुष्प्रभाव रेटिना पर पड़ सकता है. इसके अतिरिक्त डेंगू और मलेरिया के दुष्प्रभावों के रूप में भी रेटिना के खराब होने की संभावना बनी रहती है. आजकल जिस बीमारी से सबसे ज्यादा सतर्क रहना चाहिए, वह है कोरोना. कोरोना विषाणु से संक्रमित लोगों को, इस संक्रमण के साइड इफेक्ट के रूप में रेटिना खराब होने की समस्या का सामना करना पड़ सकता है. इसके अतिरिक्त समय से पहले जन्मे (प्रीमेच्योर) शिशुओं में भी ’आरओपी’ यानी ’रेटिनोपैथी आफ प्रीमेच्योरिटी’ होने की संभावना होती है.
रेटिना खराब हो होने से, उसका आँखों पर क्या असर पड़ता है?
डॉ. अग्रवाल: किसी भी कारण से रेटिना खराब होने पर उसका पहला एवं सीधा दुष्प्रभाव हमारी दृष्टि पर पड़ता है. रेटिना खराब होने पर दृष्टि दोष उत्पन्न हो जाता है. दिन के उजाले अथवा तेज प्रकाश में भी आँखों को अस्पष्ट दिखाई देता है. यदि यह समस्या बढ़ती गई तो किसी दिन दृष्टि पूरी तरह खराब होकर, दृष्टि खोने का खतरा उत्पन्न हो जाता है. अतः आँखों से संबंधित छोटी सी भी समस्या महसूस होने पर, तत्काल नेत्र विशेषज्ञ दिखाकर उसका उचित उपचार करवाना बहुत जरूरी है.
क्या रेटिना पर, पिछले कुछ वर्षों में बढ़े हुए स्क्रीन टाइम के प्रतिकूल प्रभाव भी पढ़ रहे हैं?
डॉ. अग्रवाल: हाल के कुछ वर्षों में समाज में मोबाइल टेलीविजन कंप्यूटर इत्यादि का प्रयोग बहुत बढ़ गया है. पिछले 2 वर्षों में कोरोना से जुड़े प्रतिबंधों के कारण, ऑनलाइन स्कूल एवं वर्क फ्रॉम होम के कारण स्क्रीन टाइम में बढ़ोतरी अपरिहार्य हो गई है. हालांकि इस बात का कोई ठोस प्रमाण नहीं है कि इसका सीधा प्रभाव रेटिना पर पड़ता ही है लेकिन इस बढ़े हुए स्क्रीन टाइम के कारण आँखों के स्वास्थ्य पर निश्चित ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. खासकर आँखों में शुष्कता, चश्मे का नंबर बदलना जैसी समस्याओं में बढ़ोतरी हुई है. इसके अतिरिक्त धूम्रपान, मद्यपान जैसे व्यसनों के कारण रेटिना को हानि पहुँचने का खतरा बहुत बढ़ जाता है. अतः जहाँ तक संभव हो, व्यसनों से दूर रहना ही फायदेमंद है.
रेटिना की समस्या उत्पन्न ही न हो, इसके लिए क्या सतर्कता बरतनी चाहिए?
डॉ. अग्रवाल: वर्ष में कम से कम एक बार नेत्र विशेषज्ञ के पास जाकर अपनी आँखों की जाँच अवश्य करवाएँ. मधुमेह, रक्तचाप एवं व्यसन होने पर, चश्मे का नंबर बहुत ज्यादा होने पर तथा 50 वर्ष की उम्र के बाद रेटिना की नियमित जाँच कराते रहना बहुत जरूरी हो जाता है.
डॉ. अग्रवाल ने जानकारी दी कि भारत में सामान्यतः किस आयु में रेटिना से संबंधित कौन-सी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं. रेटिना से संबंधित, विभिन्न आयु समूह में उत्पन्न होने वाली विभिन्न समस्याएँ निम्नलिखित तालिका में दर्शाई गई हैं:
रेटिना की समस्या के कारण मरीज की औसत आयु
डायबिटिक रेटिनोपैथी
(मधुमेह) 50 से 60 वर्ष
अनियमित रक्तचाप 60 से 70 वर्ष
-6 अथवा उससे ज्यादा
नंबर का चश्मा 20 से 40 वर्ष
चोट, घाव, दुर्घटना 20 से 40 वर्ष
बढ़ती उम्र( वृद्धावस्था) 65 वर्ष के बाद की आयु ’रेटिनोपैथी आफ प्रीमेच्योरिटी (आरओपी) नवजात शिशु