’रेड मीट’ एवं ’सी फूड’ के ज्यादा सेवन से जॉइंट्स में तेज दर्द या गाउट होने का खतरा

    21-Sep-2021
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डॉ. अभिषेक अरविंद झँवर
रूमेटोलॉजिस्ट- संधिवात विशेषज्ञ
(गाउट स्पेशलिस्ट)
क्लीनिक- पूना सुपर स्पेशलिटी
क्लीनिक एवं रुबी हॉल क्लिनिक
ईमेल: [email protected]
संपर्क क्रमांक: 9021173995
 
 
पुरुषों में स्त्रियों से 6 गुना ज्यादा होता है ‘गाउट’ : संधिवात विशेषज्ञ डॉ. अभिषेक झँवर
 
गाउट,जीवन शैली से संबंधित रोग है. इसके अतिरिक्त मद्यपान, माँसाहार तथा अधिक मात्रा में मछलियाँ (सीफूड) खाने से भी गाउट की समस्या उत्पन्न होती है. खासकर ’रेड मीट’ के अतिरिक्त सेवन से गाउट होने की संभावना बढ़ जाती है. फिलहाल भारत में प्रति 1000 व्यक्ति, एक व्यक्ति गाउट की समस्या से त्रस्त है. डॉ. झँवर ने ’आनंद’ के प्रतिनिधि से बातचीत करते हुए अपने विचार व्यक्त किए.
 
गाउट का क्या अर्थ है? यह रोग किसे हो सकता है?
 
डॉ. झँवर- शरीर में, खासकर हड्डियों के जोड़ों (जॉइंट्स) में तेज दर्द होने तथा जलन महसूस होने की समस्या को गाउट कहा जाता है. गाउट की समस्या अधिकांशतः घुटने की हड्डी, पैर के तलवे तथा पैर की उंगलियों में महसूस होती है. जिन लोगों के रक्त में यूरिक एसिड स्तर सामान्य से बहुत अधिक बढ़ जाता है, उन्हें गाउट की समस्या का सामना करना पड़ता है. हालांकि, यदि शरीर में केवल यूरिक एसिड का स्तर बड़ा हुआ हो तथा जोड़ों में किसी भी तरह का दर्द, सूजन अथवा जलन न हो तो वह गाउट नहीं होता.
 
कितने भारतीय गाउट की समस्या से त्रस्त हैं?
 
डॉ. झँवर- भारत में वर्तमान में प्रति एक हजार व्यक्ति यों में से एक व्यक्ति गाउट की समस्या से त्रस्त है. पुरुषों एवं महिलाओं में यह समस्या 6 :1 में है. यानी पुरुषों में स्त्रियों से 6 गुना ज्यादा होत है ‘गाउट’ होने का खतरा होता है.
 
गाउट की समस्या सामान्यतः किस आयु में होती है ?
 
डॉ. झँवर- गाउट सामान्यतः मध्यम आयु वर्ग के लोगों में ज्यादा दिखाई देता है. महिलाओं में सामान्यत: मासिक धर्म बंद होने (मेनोपॉज) के बाद गाउट की समस्या उत्पन्न होती है. कुछ अपवादों को छोड़कर, छोटे बच्चों में सामान्यतः यह बीमारी नहीं पाई जाती. हालांकि मोटापे की समस्या बढ़ने के कारण युवा और कम उम्र के लोगों को भी गाउट हो सकता है.
 
सामान्यतः लोग गाउट के किन प्रकारों से त्रस्त होते हैं?
 
डॉ. झँवर- शुरुआत में गाउट की समस्या एक निश्चित समय पर अथवा निश्चित अंतराल पर होती है जिसे ’एपिसोडिक गाउट’ कहा जाता है. इस गाउट का असर सामान्यतः शरीर के एक से तीन जोड़ों पर होता है. एक निश्चित अंतराल पर अथवा एक निश्चित समय पर इन विशेष जोड़ों में गाउट का दर्द एवं जलन महसूस होती है. यदि समय पर इसका उचित उपचार न किया जाए तो यह समस्या बढ़ती जाती है और उसका रूपांतर आर्थराइटिस में होने की संभावना उत्पन्न हो जाती है. समय पर उपचार न मिलने पर गाउट के ’क्रॉनिक’ होने की संभावना उत्पन्न हो जाती है जिसमें जोड़ों में, यूरिक एसिड के सख्त डिपॉजिट बन जाते हैं. इसे मेडिकल की भाषा में टोफी कहा जाता है. टोफी के कारण हड्डियों एवं कुर्चा को गंभीर क्षति पहुँचने एवं उनके टूटने का खतरा उत्पन्न हो जाता है. इतना ही नहीं, यूरिक एसिड का स्तर अनियंत्रित ढंग से बढ़ने पर, उससे किडनी को भी खतरा हो सकता है.
 
गाउट की समस्या मुख्यतः किस कारण उत्पन्न होती है?
 
डॉ. झँवर- गाउट की समस्या मुख्यतः शरीर की चयापचय प्रणाली से संबंधित एक स्थिति (मेटाबॉलिक सिंड्रोम) एवं मोटापे से संबंधित होती है. पाचन तंत्र में खराबी आने पर चर्बी और मोटापा तो बढ़ता ही है, साथ ही शरीर में यूरिक एसिड जमा होते रहने से, उसकी बढ़ी हुई मात्रा अंततः गाउट के दर्द एवं जलन का कारण बनती है. गाउट का संबंध सीधे जीवन शैली से है. इसके अतिरिक्त मद्यपान, माँसाहार तथा अधिक मात्रा में मछलियाँ (सीफूड) खाने से भी गाउट की समस्या उत्पन्न होती है. खासकर ’रेड मीट’ के अतिरिक्त सेवन से गाउट होने की संभावना बढ़ जाती है. कई दवाओं के साइड इफेक्ट के कारण भी शरीर में यूरिक एसिड का स्तर बढ़ जाता है जिससे गाउट हो सकता है. विशेषत: कैंसरग्रस्त मरीजों में गाउट की समस्या बड़े पैमाने पर देखी जाती है.
 
गाउट की समस्या से बचने के लिए क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए ?
 
डॉ. झँवर- गाउट से बचने के लिए सबसे बढ़िया उपाय यह है कि स्वस्थ जीवन शैली को आत्मसात किया जाए. खानपान की आदतों पर नियंत्रण रखने, प्रतिदिन संतुलित एवं पौष्टिक आहार का सेवन करने, अपनी उम्र एवं ऊँचाई के अनुसार वजन नियंत्रण में रखने आदि सामान्य उपायों द्वारा, गाउट की समस्या से बचा जा सकता है. गाउट के प्रारंभिक लक्षण कौन से हैं?
 
क्या घर पर ही गाउट की जाँच की जा सकती है ?
 
डॉ. झँवर- गाउट की समस्या सामान्यतः पैरों से ही शुरू होती है. अतः घुटने की हड्डी अथवा पैरों के तलवे पैरों की उंगलियों में असहनीय दर्द होने लगे, जलन महसूस हो अथवा सूजन दिखाई दे तो उसे गाउट के लक्षण समझना चाहिए. खास बात यह है कि गाउट की समस्या होने पर मरीज को लगातार दर्द नहीं होता. रात में वह आराम से नींद ले सकता है लेकिन सुबह-सुबह ही तीव्र दर्द के कारण उसकी नींद खुल जाती है. पैर, तलवे अथवा उंगलियाँ लाल हो जाती हैं; उनमें सूजन आ सकती है. ये लक्षण घर में रहते हुए भी समझे जा सकते हैं; हालांकि इसका उपचार तो डॉक्टर के पास जाकर ही करवाना पड़ता है.
 
गाउट के उपचार के लिए कौन सी दवाएँ उपलब्ध हैं?
 
डॉ. झँवर- गाउट के उपचार के लिए मुख्यतः दो तरह की दवाएँ उपलब्ध हैं. इनमें से Colchicine, NSI Ds   जैसी दवाएँ गाउट के कारण होने वाली जलन को कम एवं खत्म करने के लिए उपयोग में लाई जाती हैं. llopurinol, Febuxostat जैसी दवाएँ, रक्त में यूरिक एसिड का स्तर कम करने के लिए उपयोग में लाई जाती हैं.
 
विभिन्न विज्ञापनों में, गाउट को बिना दवाओं के ठीक करने का दावा किया जाता है. इनमें कितना तथ्य होता है?
 
डॉ. झँवर- बिना दवाएँ लिए गाउट से मुक्ति पाने वाले लोगों की संख्या नगण्य है. इस तरह के उपचार में मुख्यत: मरीजों की जीवन शैली तथा खान-पान की आदतों में आवश्यक बदलाव कर अपेक्षित परिणाम हासिल किए जाते हैं. हालांकि, अधिकांश प्रकरणों में ये उपचार, अस्थायी उपाय ही साबित होते हैं. इस तरह के उपचारों में बेवजह समय तो व्यर्थ होता ही है, साथ ही मरीज में गाउट के फिर उभर आने की संभावना बनी रहती है. अतः गाउट के लिए विशेषज्ञ डॉक्टरों द्वारा उपचार करवाना ही बेहतर है.