रोबोटिक जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी ज्यादा सटीक होने से पेशेंट के लिए फायदेमंद

साईश्री हॉस्पिटल के एमडी व चीफ रोबोटिक जॉईंट रिप्लेसमेंट सर्जन और स्पोर्ट्‌स इंज्यूरी स्पेशलिस्ट डॉ. नीरज आडकर की सलाह

    03-Dec-2022
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sai
 
  
डॉ. नीरज आडकर
चीफ रोबोटिक जॉईंट रिप्लेसमेंट सर्जन
और स्पोट्‌‍र्स इंज्यूरी स्पेशालिस्ट
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डीपी रोड, औंध, पुणे 411007
फोन:  020-67448600/25888600
मोबा:  9689930608/12
web : www. saishreehospital.org
 
 
अनियमित जीवनशैली और पर्याप्त शारीरिक गतिविधियों के अभाव से जॉइंट की बीमारियां बढ़ गई हैं. लेकिन अत्याधुनिक उपचार पद्धति से इन बीमारियों का इलाज किया जा सकता है. कई बार सर्जरी करने की जरूरत भी पड़ती है. इसकी टेक्नोलॉजी आधुनिक होने से पेशेंट को जल्द आराम मिलता है. सर्जरी करने से पहले कुछ जरूरी टेस्ट करने होते हैं. पुणे स्थित साईश्री हॉस्पिटल के संचालक और स्पोर्ट्स इंजुरी विशेषज्ञ डॉ. नीरज आडकर से इस बारे में कुछ प्रश्न पूछे गए, उन्होंने इसके विस्तार से उत्तर देकर शंकाओं का समाधान किया.
 
डॉक्टर, जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी के क्या फायदे हैं?
 
उत्तर : कमाल की सटीकता (Precision) रोबोटिक जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी का सबसे बड़ा फायदा है. हड्डी में छेद करने से पहले उसके क्या परिणाम हो सकते हैं, इसकी जानकारी सर्जन को मिलती है. इससे अंग प्रत्यारोपण (इम्प्लांट) उचित पद्धति से होकर जॉइंट के आस-पास के टिश्यू (Tissue) और मांसपेशियों का कम से कम नुकसान होता है. इस तरह की सर्जरी से पेशेंट कम समय में ठीक होता है. जॉइंट रिप्लेसमेंट की सर्जरी के दौरान रोबोट किसी निपुण सहायक की तरह सर्जन की मदद करता है, इसके अच्छे परिणाम मिलते हैं. इस पद्धति से की गई सर्जरी द्वारा लगाए गए इम्प्लांट लंबे समय तक चलते हैं, यह बात कई रिसर्च में स्पष्ट हुई है. शुरूआती रोबोटिक सिस्टम की तुलना में वर्तमान समय का सिस्टम ज्यादा आधुनिक होने से इसमें ज्यादा सटीकता होती है.
 
जॉइंट रिप्लेसमेंट की सर्जरी से पहले क्या सीटी स्कैन  कराना उचित साबित होता है?
 
उत्तर : सर्जरी करने से पहले हिप, घुटने और टखने का पैर के साथ संरेखण या एकीकरण (Alignment) निर्धारित करने के लिए सीटी स्कैन किया जाता है. इससे यह पता चलता है कि सर्जरी के दौरान कितने अंश का कोण रखा जाना चाहिए. सीटी स्कैन की इमेजेस से पेशेंट के लिए इम्प्लांट की साइज और टाइप कौन सा उचित रहेगा, यह पहले ही पता चलता है. एक्सरे की जांच से नहीं मिलने वाली जानकारी सीटी स्कैन से मिलती है. संक्षेप में बताया जाए तो सीटी-स्कैन के कारण सर्जन सर्जरी की प्लानिंग पहले ही कर सकता है, जिससे सर्जरी सटीक होती है. इसका फायदा पेशेंट की तबीयत कम समय में सुधारने में होता है. इसलिए जॉइंट रिप्लेसमेंट की सर्जरी से पहले सीटी स्कैन के लिए 10 मिनट का समय निकालना समझदारी का फैसला होता है.
 
 
बिल्कुल छोटी सर्जरी से पहले भी क्या संबंधित पेशेंट को खून के विभिन्न टेस्ट करने पड़ते हैं?
 
उत्तर : कई पेशेंट में अलग-अलग प्रकार बीमारियां होती हैं, लेकिन उसके कोई भी लक्षण दिखाई नहीं देते. इसलिए किसी भी सर्जरी से पहले खून के विभिन्न टेस्ट करने के साथ फिटनेस की जांच भी अनिवार्य होती है. पेशेंट के बीमारी की जानकारी प्राप्त किए बिना की गई सर्जरी जानलेवा खतरा रहता है. इसलिए किसी भी सर्जरी से पहले जरूरी सभी टेस्ट फिजीशियन की सलाह के अनुसार करा लेना उचित होता है.
 
सर, घुटनों के अस्थिबंधन  में चोट होने वाले पेशेंट ने सर्जरी नहीं कराई तो क्या होता है? पिछले साढ़े चार महीनों से मैं ‘एंटिरियर क्रूसिएट लिगामेंट'  से परेशान हूं. मुझे सर्जरी से डर लगता है.
 
उत्तर : अस्थिबंधन की कई चोटें समय के अनुसार ठीक हो जाती हैं और शायद सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ती. लेकिन अस्थिबंधन की चोटें आने के बाद आप डॉक्टर के पास गए हों और डॉक्टर ने सर्जरी की सलाह दी हो तो सर्जरी कराना महत्वपूर्ण होता है. हम एसीएल के बारे में बात कर रहे हैं, इस अस्थिबंधन में जख्म या चोट अपने आप ठीक नहीं होती, यह बात साइंटिफिकली स्पष्ट हुई है. लेकिन अस्थिबंधन में जख्म होते हुए भी अगर आप अपने रोजमर्रा के काम आसानी से कर रहे हैं तो यह जख्म और गंभीर हो सकता है. इसलिए भविष्य में ज्यादा जटिलता से बचने के लिए आप सर्जरी कराएं, यह मेरी सलाह है.
 
ऑस्टियो-आर्थराइटिस  क्या होता है? इसकी स्थिति कौन सी होती है?
 
उत्तर : बढ़ती उम्र के अनुसार हमारे जॉइंट की टूट-फूट (wear & tear) हो जाती है, जिसे ऑस्टियो-आर्थराइटिस कहा जाता है. हर जॉइंट में अपर लेयर (upper layer) होता है. सबसे ऊपरी स्तर को उपास्थि या कूर्चा (Cartilage) कहा जाता है. बिना दर्द के जॉइंट का मूवमेंट करा लेना उपास्थि का प्राथमिक कार्य होता है. उपास्थि में खून की सप्लाई नहीं होने से उसका नुकसान होता है. उपास्थि की टूट-फूट शुरू होने पर हड्डियां एक दूसरे से घिसने लगती हैं और इससे दर्द होता है. उपास्थि में खून की सप्लाई नहीं होने से उसका नुकसान होता है, जिससे वह फिर से बढ़ नहीं पाती या उसे ठीक भी नहीं किया जा सकता. उपास्थि की होने वाली टूट-फूट या नुकसान ही ऑस्टियो-ऑर्थराइटिस होता है. इसकी विभिन्न स्थितियां हैं, लेकिन शुरूआती, मध्यम (Intermediate) और आधुनिक (Advanced) यह तीन स्थितियां प्रमुख मानी जाती हैं. इस बीमारी के शुरुआती समय में दवाइयों और फिजियोथेरेपी के जरिए इलाज किया जा सकता है, लेकिन नुकसान ज्यादा होने पर पेशेंट को जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी करने की सलाह दी जाती है.