यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के कई अनपेक्षित परिणाम हुए हैं. उनमें से एक है कि अखबारों की छपाई के लिए उपयोग में आनेवाले कागज (न्यूजप्रिंट) की कीमत में भारी वृद्धि और कमी आई है. यह कागज मुख्य रूप से आयात किया जाता है. युद्ध और अन्य कारणों से आयात प्रभावित हुआ है, जिसने समाचारपत्र व्यवसाय को मुश्किल स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है.
शिवाजीनगर, 24 मार्च (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
पिछले कुछ वर्षों में, भारतीय समाचारपत्र उद्योग दो संकटों का सामना कर रहा है, ये है न्यूजप्रिंट की कमी और दूसरी उसकी आसमान छूती कीमतें. यह संकट अब युद्ध और अन्य कारणों से और गहरा हो गया है. रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध सहित कई कारणों की वजह से न्यूजप्रिंट की उपलब्धता में भारी कमी आई है. साथ ही अखबारी कागज की कीमतें आसमान छू रही हैं और भारतीय अखबार उद्योग बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. अखबार उद्योग को छपाई के लिए लगने वाला कागज 55 फीसदी से ज्यादा आयात करना पड़ता है. उसमें आधे से अधिक कागज रूस से आयात किया जाता है. वर्तमान में रूस भारत को अखबारी कागज का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है. इसके अलावा भारत अमेरिका, कनाडा, इंडोनेशिया, और दक्षिण कोरिया से अखबार का कागज (न्यूजप्रिंट) आयात करता है. चीन ने कुछ साल पहले न्यूजप्रिंट का उत्पादन बंद कर दिया था. साथ ही इंडोनेशिया और दक्षिण कोरिया में भी कईं न्यूज प्रिंट मिलें बंद हो गई हैं.
करीब ढाई साल से कोरोना संकट ने दुनिया को जकड़ रखा है. इस संकट ने कई अन्य व्यवसायों के साथ-साथ समाचारपत्र और कागज उद्योग को भी प्रभावित किया. अखबारी कागज का उत्पादन और आपूर्ति बाधित हो गई. इसका झटका भारत पर लगा और अखबारी कागज के दाम आसमान छूने लगे. उत्पादन घट गया. कुछ महीनों से हालात सुधर ही रहे थे कि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ गया. यह युद्ध लगभग 28 दिनों से चल रहा है. इसलिए कागजी संकट दिन-ब-दिन गहराता जा रहा है. अमेरिका सहित पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं. रूस से होने वाला निर्यात दबाव में है. रूस के समुद्र और दूसरे देशों से संपर्क के दूसरे रास्ते बंद कर दिए गए हैं. शिपिंग कंपनियां, कॉमर्शियल सामानों के यातायात से इनकार कर रहे हैं. ऐसी दुविधापूर्ण स्थिति ने कागज की अभूतपूर्व कमी और कीमतों में वृद्धि को जन्म दिया है. कई प्रमुख वैश्विक शिपिंग कंपनियों ने रूसी बंदरगाहों से सामान की आवाजाही के लिए बुकिंग बंद कर दी है.

रूसी बैंकों पर प्रतिबंधों से व्यापार और भी कठिन हो गया है. साथ ही प्राकृतिक गैस, कोयले की कीमतें बढ़ीं हैं, जो पेपर मिलों में अखबारी कागज के उत्पादन की लागत का लगभग 30 प्रतिशत है. फिनलैंड में एक बड़ी अखबारी कागज निर्माता कंपनी में हडताल चल रही है. इस निर्माता का चमकदार अखबारी कागज भारतीय आयात का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा है. फरवरी में, कनाडा के ट्रक ड्राइवर वैक्सीन जनादेश के खिलाफ हड़ताल पर चले गए. जिससे महत्वपूर्ण आपूर्ति श्रृंखलाओं के साथ कहर बरपा है. कनाडा का भारतीय अखबारी कागज के आयात में 40 प्रतिशत हिस्सा है. विदेश में एक तरफ ऐसी स्थिति के बावजूद भारतीय पेपर कंपनियों ने क्राफ्ट पेपर और पैकिंग पेपर के उत्पादन पर ध्यान केंद्रित किया है. नतीजतन, अखबारी कागज की कमी बढ़ गई है. समाचारपत्रों का प्रकाशन भी मुश्किल : पिछले छह महीने पहले न्यूजप्रिंट की कीमत 40,000 रुपये से 45,000 रुपये प्रति मीट्रिक टन थी. फिलहाल यह 80,000 रुपये प्रति टन से अधिक है. इसके अलावा, अखबार के कारोबार में स्याही, प्लेटस् रसायन और पार्सल परिवहन की लागत भी बढ़ रही है. नतीजतन, समाचारपत्र उद्योग, जो पहले से ही संकट में है, और अधिक धसता चला जा रहा है. ऐसी आशंकाएं हैं कि यदि कागज की कीमतों में वृद्धि जारी रही और न्यूजप्रिंट की कमी जारी रही तो रोजमर्रा के आधार पर समाचारपत्रों का प्रकाशन भी मुश्किल हो जाएगा.

अखबारों की कीमतें बढ़ाना ही एकमात्र विकल्प बचा है...
अगर अखबारों को बचाना है तो ऐसे में न्यूजप्रिंट की कमी के कारण अखबार के पन्ने कम करने पड़ेंगे. अखबारों की कीमतें भी बढ़ानी होंगी. दुनिया के सभी देशों में अखबारों की कीमतें न्यूजप्रिंट की कीमत पर निर्भर करती हैं. लेकिन, भारत में कम कीमतों पर समाचारपत्र बेचने की होड़ ने प्रतिस्पर्धा को बढ़ा दिया है. ऐसे में संकेत हैं कि अखबार के दाम बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा. अब राज्य के बड़े अखबारों से भी कीमतें बढ़ाए जाने की उम्मीद है. इसके बिना अखबार का व्यवसाय नहीं चलेगा.
रॉ मटेरियल की कमी से कागज उत्पादन बाधीत
कोविड काल में कागज का उपयोग कम हो गया था. नतीजतन, रीसाइक्लिंग के लिए उपयोग किए जाने वाले कागज के रॉ मटेरियल में कमी आयी. इसके अलावा, यूरोप से हर महीने 2 लाख टन वेस्ट पेपर का रॉ मटेरियल भारत में आयात किया जाता है, जिससे न्यूजप्रिंट बनाने में मदद मिलती है, यह फिलहाल बंद है. भारत में अगले कुछ दिनों में स्कूल और कॉलेज शुरू हो रहे हैं. इसलिए कागज की मांग बढ़ने वाली है. मांग और आपूर्ति के बीच की खाई के कारण अखबारी कागज की कीमत में लगभग 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. विशेष रूप से, भारतीय कागज निर्माताओं ने हाल ही में पैकेजिंग सामग्री का निर्माण बढ़ा दिया है. नतीजतन, न्यूजप्रिंट कागज की कीमत बढ़ रही है. यूरोप से रीसाइक्लिंग के लिए कच्चे माल के रूप में कागज की आपूर्ति सुचारू होने के लिए मई-जून तक इंतजार करना होगा, यह वर्तमान तस्वीर है.
- विजय भंडारी, निदेशक, मे. बी. जे. भंडारी पेपर्स लि.
भारतीय अखबारों की कीमतें बेहद कम
देखा गया है कि विदेशी अखबारों के दाम भारतीय अखबारों की कीमतों से काफी ज्यादा होते हैं. पड़ोसी देश पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है. लेकिन स्थानीय समाचारपत्र `डॉन` की कीमत 25 रुपये और जंग अखबार की कीमत 15 रुपये है. सीलोन टाइम्स की कीमत 80 रुपये है. अमेरिका के सबसे बड़े अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स की कीमत सुनकर ही कई लोगों को अचरज व धक्का लगेगा. न्यूयॉर्क टाइम्स के एक दैनिक अंक की कीमत 3 डॉलर यानी लगभग 225 रुपये है. उनके पन्नों की संख्या भी 80 से 100 होती है. न्यूयॉर्क टाइम्स की औसतन कीमत सवा दो रुपये में एक पेज है. हालांकि महाराष्ट्र में सिर्फ 4 रुपये में 16 से 40 पन्ने का अखबार मिलता है. यानि एक रुपये में 4 से 10 पेज पाठकों को दिए जाते हैं. एक अन्य प्रमुख समाचारपत्र, वाशिंगटन पोस्ट, की कीमत लगभग 2 से 3.5 डॉलर तक है. मतलब, 150 से लगभग 265 रुपये होती है. पोस्ट के डिजिटल संस्करण की मासिक सदस्यता लगभग 6 डॉलर्स यानि 450 रुपये है. मतलब एक डिजिटल इश्यू की कीमत 15 रुपये होती है, जो मराठी अखबारों की कीमत से लगभग चार गुना ज्यादा है.