महावीर स्वामी का जीवन

14 Apr 2022 11:19:14
 
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भारतवर्ष में महावीर जयंती जैन समाज द्वारा भगवान महावीर के जन्म उत्सव के रूप में प्रतिवर्ष चैत्र मास में मनाई जाती है. ढाई हजार साल पूर्व महावीर स्वामी का जन्म बिहार के वैशाली जिले में कुण्डग्राम नामक स्थान में इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहाँ चैत्र शुक्ल तेरस को हुआ था. उनके बचपन का नाम वर्धमान था. वर्धमान का अर्थ है - हमेशा बढ़ता हुआ. जब वे पैदा हुए थे, तो उनके पिता राजा सिद्धार्थ को बहुत समृद्धि प्राप्त हुई्‌‍. ये जैन धर्म के 24 वें और अंतिम तीर्थंकर थे. जैन ग्रंथों के अनुसार वर्तमान में प्रचलित जैन धर्म भगवान आदिनाथ (ऋषभदेव) के समय से प्रचलन में आया, यहीं से जो तीर्थंकर परंपरा प्रारंभ हुई वह महावीर स्वामी तक चलती रही. जैन धर्म में तीर्थंकर उन 24 व्यक्तियों के लिए प्रयोग किया जाता है, जिसने स्वयं तप के माध्यम से कैवल्य ज्ञान प्राप्त कर लिया हो. तीर्थंकर को जैनेंद्र भी कहा जाता है.
जैन मत भारत की श्रमण परंपरा से निकला एक प्राचीन मत और दर्शन है. श्रमण का अर्थ साधक से है. जैन धर्म के उद्भव की स्थिति अस्पष्ट है, क्योंकि इसकी नींव श्रमण परंपरा के दर्शन पर आधारित है. सिंधु घाटी से मिले जैन अवशेष जैन मत को सबसे प्राचीन मत का दर्जा देते हैं. श्रमण परंपरा में साधक अपने तप, आध्यात्म, आत्मनिग्रह से आत्मज्ञान (ईेशर और मोक्ष) को प्राप्त करते हैं. इनके जन्म से पूर्व उनकी माता ने 16 दिव्य स्वप्न देखे थे. बचपन से ही वे आसाधारण बालक थे. माता-पिता की आज्ञा के अनुसार राजकुमारी यशोधा से उनका विवाह हुआ्‌‍. उनकी एक बेटी भी हुई जिसका नाम प्रियदर्शना था. जब वे 28 वर्ष के थे उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई्‌‍. 30 वर्ष की आयु में उन्होंने राजसी जीवन और ऐेशर्य त्याग दिया और कठोर तप में लीन हो गए्‌‍. ऋजुपालिका नदी के तट पर सालवृक्ष के नीचे उन्हें कैवल्य ज्ञान (सर्वोच्च ज्ञान) की प्राप्ति हुई जिसके कारण उन्हें ‘केवलिन` पुकारा गया.
इन्द्रियों को वश में करने के कारण ‘जिन` कहलाए एवं पराक्रम के कारण महावीर के नाम से विख्यात हुए. साढ़े बारह वर्ष तक उन्होंने कठोर तपस्या की. महावीर स्वामी ने पांच प्रमुख सिद्धांत बताए. जिनका जैन मुनि कठोरता से पालन करते हैं. अहिंसा- कर्म, वाणी, व विचार से किसी को कोई कष्ठ न हीं पहुंचाना, सत्य- सत्य बोलना, अपरिग्रह- त्याग, अस्तेय- चोरी नहीं करना, बृह्मचर्य- भोग विलास से दूर रहना.30 वर्षों तक महावीर स्वामी ने अपने सिद्धांतों की शिक्षा दी. 72 वर्ष की उम्र में बिहार के पावापुरी स्थान पर (जिला नालंदा बिहार में निर्वाण प्राप्त किया).
महाराष्ट्र के एलोरा गुफाओं में पांच जैन मन्दिर की गुफाएं हैं, जिसमें इन्द्रसभा गुफा यह दर्शाती है कि जैन धर्म प्राचीन भारत में माना जाता था. भगवान महावीर के कुछ अनमोल वचन इस प्रकार हैं- अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है. आपकी आत्मा से परे कोई भी शत्रु नहीं है. असली शत्रु आपके भीतर रहते ह्‌ैं‍. वो शत्रु हैं - क्रोध, घमंड, लालच, आसक्ति और नफरत. खुद पर विजय प्राप्त करना लाखों शत्रुओं पर विजय पाने से बेहतर है. महावीर स्वामी ने यह शिक्षा दी कि सभी जीवित प्राणियों के प्रति सम्मान अहिंसा है और हर एक जीवित प्राणी के प्रति दया रखो, घृणा से विनाश होता है.
समस्त प्रकृति जिसमें न सिर्फ मनुष्य बल्कि पेड़-पौधे, पशु-पक्षी सभी जीव-जन्तु आते ह्‌ैं‍. उनके प्रति प्रेम व करूणा हमें महावीर स्वामी सिखाते हैं. अहिंसा और सत्य के सिद्धांतों पर चलकर वेिश बच सकता है. महावीर जयंती का पर्व हमें महावीर स्वामी के बताए हुए सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारने की प्रेरणा देता है. महावीर जयंती हमें स्मरण कराती है कि प्रेम, करुणा, सत्य, अहिंसा के मार्ग पर चलकर हम अपने जीवन को शांत, सफल और सुखी बना सकते हैं.
 
- छवि अनुपम, पुणे
 
 
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