भारतीय मूल के देवसहायम काे पाेप फ्रांसिस द्वारा संत की उपाधि

    16-May-2022
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18वीं सदी में ईसाई धर्म अपनाने वाले हिंदू देवसहायम पिल्लई काे जन्म के 300 साल बाद संत की उपाधि मिली है. वेटिकन में पाेप फ्रांसिस ने उन्हें संत की उपाधि दी. संत की उपाधि पाने वाले वाे पहले भारतीय हैं.देवसहायम पिल्लई का जन्म 23 अप्रैल 1712 में तमिलनाडु के कन्याकुमारी में एक हिंदू नायर परिवार में हुआ था, जाे उस वक्त त्रावणकाेर साम्राज्य का हिस्सा था, उनके पिता हिंदू मंदिर में पुजारी थे. देवसहायम काे संस्कृत, तमिल और मलयालम भाषा आती थी. 1741 में एक डच नेवी कमांडर कैप्टन यूस्टाचियस डी लैनाॅय काे डच ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा त्रावणकाेर के नियंत्रण वाले एक बंदरगाह पर कब्जा करने के लिए भेजा गया.
 
त्रावणकाेर की सेना से युद्ध में डच कमांडर की अगुवाई वाली टुकड़ी हार गई.कमांडर और उनके सैनिकाें काे कैद में डाल दिया गया. कुछ वक्त बाद राजा की माफी मिलने पर डच कमांडर त्रावणकाेर की सेना का सेनापति बन गया, जिसने कई युद्ध जीते और कई क्षेत्र जीतकर त्रावणकाेर में मिला दिए. इसी दाैरान डच कमांडर और देवसहायम की मुलाकात और बातचीत हाेने लगी. डच कमांडर ने ही उन्हें ईसाई धर्म के बारे में बताया और 1745 में उन्हाेंने ईसाई धर्म अपना लिया. देवसहायम का नाम नीलकंठ पिल्लई था. बैप्टिज्म यानि वाे रस्म जिसमें ईसाई बनने की शपथ ली जाती है, के बाद उनका नाम बदलकर लेजारूस हाे गया.