देश-विदेश में `सुहाना` एवं `अंबारी`, प्रतिष्ठित ब्रांड माने जाते हैं. पिछले 7 सालों से उद्योगपति आनंद चोरड़िया अपनी फैक्ट्री में होने वाली गतिविधियों को, प्रकृति की संरचना से जोड़ने का एक अनोखा प्रयोग कर रहे हैं. प्रकृति के प्रति केवल सम्मान की भावना ही न रखते हुए बल्कि सृष्टि के एक घटक के रूप में किए गए अपने प्रयासों से उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सराहा जा रहा है. हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित एक प्रदर्शनी में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आनंद चोरड़िया से `इको फैक्ट्री` की अवधारणा के बारे में जाना. प्रस्तुत है, इसी संदर्भ में आनंद चोरड़िया से की गई खास बातचीत के कुछ प्रमुख अंश-
प्रश्न : इस प्रकल्प की अवधारणा आपके मन में कैसे आई? इसका पहला चरण क्या था?
आनंद : ‘सुहाना` एवं `अंबारी` ब्रांड से चलने वाला हमारा मसालों एवं खाद्य पदार्थों का पारिवारिक उद्योग तो हमें बढ़िया ढंग से चलाना ही है. साथ ही जिन कृषि आधारित घटकों से हमारा दैनिक संबंध है; उनका जतन करने के विचार से हमने यवत एवं भुलेेशर के गोडाउनों एवं फैक्ट्रियों में पर्यावरण पूरक उपक्रम आरंभ किए. हमने फैक्ट्री में उत्पन्न वेस्ट मटेरियल का उसी जगह अवशोषण करने, उनका पुनरुपयोग करने और प्रकृति को होने वाली हानि रोकने के साथ ही उसे पर्यावरण पूरक बनाने के अपने विचार को अमली जामा पहनाया.
प्रश्न : `सुहाना` एवं `इको फैक्ट्री` को आपस में कैसे जोड़ा गया?
आनंद : सुहाना` को वेस्ट फ्री करने और अपने देश में स्वच्छता की भावना विकसित करने के विचारों ने मुझे प्रेरणा दी. मेरा मानना था कि इसकी शुरुआत भी मुझसे ही होनी चाहिए. पिछले 5- 7 वर्षों से यह उत्साह और प्रेरणा कायम है. जिस तरह इस बात का ध्यान रखा जाता है कि मसालों एवं अन्य खाद्य पदार्थों में क्या सुधार किए जाने चाहिए, ग्राहकों को क्या चाहिए, इन खाद्य पदार्थों में कौन-कौन से घटक होने चाहिए; ठीक उसी तरह हमने इस बात का ध्यान भी रखा कि पर्यावरण की रक्षा कैसे की जानी चाहिए. हम `सुहाना` के प्रोडक्ट डेवलपमेंट के लिए जिस सिद्धांत का पालन करते हैं, `इको फैक्ट्री` फाउंडेशन के विस्तार के लिए भी उसे ही अमल में लाते हैं. इसी कारण अब हम इस अवस्था में पहुंच गए हैं कि फैक्ट्री में प्रतिवर्ष उत्पन्न होने वाले लगभग 3,000 टन प्रोडक्ट वेस्ट मटेरियल को न फेंकते हुए, उसका पुनः उपयोग करते हैं अथवा उनसे विभिन्न तरह का उत्पादन करते हैं. अब हमें वेिशास है कि हम 10,000 टन वेस्ट मटेरियल पर प्रक्रिया कर सकते हैं.
प्रश्न : इस फाउंडेशन की स्थापना के लिए आपको किस तरह से समर्थन एवं बल मिला?
आनंद : इस सफर की शुरुआत, ‘सुहाना` को वेस्ट फ्री करने के विचार से हुई. मुझे यह बताते हुए गर्व महसूस हो रहा है कि हमने सैकड़ों लोगों से बात की, इस काम की शुरुआत की और 4-5 वर्षों में ही सुहाना को सफलतापूर्वक बेस्ट फ्री कर दिया. इसके साथ ही जैविक कृषि का भी आरंभ किया गया. अब लगभग 50-55 एकड़ जैविक कृषि में सुरक्षित तरीके से वेस्ट मैनेजमेंट किया जा रहा है. इस वेस्ट से कई तरह के उत्पाद बनाए जा रहे हैं. इतना ही नहीं, हमने प्लास्टिक वेस्ट पर भी काम करना शुरू कर दिया है. हमारा ध्यान इस ओर गया कि हम अपनी शिक्षा का उपयोग छोटी सोसायटियों, इंस्टीट््यूशनल कैंपसों एवं सिटी ऑफिसों आदि के लिए भी कर सकते हैं. इस विचार का क्रियान्वयन करके, भारत के पहले वेस्ट मैनेजमेंट पार्क एंड लर्निंग सेंटर को प्रत्यक्ष साकार किया गया. हमने अपने यवत के प्लांट में वेस्ट टू वेल्थ, ट्रैश टू कैश, गार्बेज टू गोल्ड यानी कचरे से कंचन बनाने के अभियान एक साथ चलाए. हमने भारत के लगभग 25-30 उद्योगपतियों को सशक्त बनाया है और वे टेक्नोलॉजी का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं. फिर यह विचार सामने आया कि यह सब करने के लिए एक स्पेशल पर्पज व्हीकल (एसपीवी) बनाना पड़ेगा. इसी से `इको फैक्ट्री` फाउंडेशन की स्थापना हुई. इस फाउंडेशन के माध्यम से कार्य का प्रचार-प्रसार शुरू हुआ. हमने अनुभव किया कि इसके माध्यम से सस्टेनेबिलिटी, वेस्ट मैनेजमेंट, नेट जीरो इंडिया, ग्लोबल वार्मिंग से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं. इनसे संबंधित काम करते हुए अपने आप ही इन शब्दों के अर्थ एवं उनकी अनुभूति हुई.
प्रश्न : आपका फाउंडेशन मुख्यतः किन उद्देश्यों पर आधारित कार्य करता है?
आनंद : हमारा फाउंडेशन मुख्यतः तीन क्षेत्रों में कार्यरत है- सस्टेनेबिलिटी इन रूरल एरिया, सस्टेनेबिलिटी इन अर्बन एरिया एवं सस्टेनेबिलिटी इन इंडस्ट्री. भुलेेशर वेयर हाउस में हमने इस कल्पना को प्रत्यक्ष साकार कर दिखाया है. नेट जीरो इंडस्ट्री कैसी होनी चाहिए, यह इसका उदाहरण है. हम 3,000 टन बायो -डिग्रेडेबल वेस्ट, प्लास्टिक, मेटल, ई-वेस्ट को योग्य स्थान पर री-साइकिलिंग के लिए पहुंचाते हैं और उससे संबंधित जागरूकता भी उत्पन्न करते हैं. हमने भारत की पहली ग्रीन डायरेक्टरी उपलब्ध कराई है. भुलेेशर के भवन को आईजीबीसी प्लेटिनम रेटेड ग्रीन बिल्डिंग एवं अन्य पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं. नेट जीरो के रूप में मान्यता प्राप्त करने वाला यह देश का संभवतः पहला भवन है. देश के आयुष मंत्रालय ने भी इस फाउंडेशन के कार्यों की सराहना की है. इस फाउंडेशन द्वारा एक कॉल सेंटर शुरू किया जा रहा है जिसके माध्यम से लोगों को सस्टेनेबिलिटी, नेट जीरो, प्लांटेशन, नेटिव ट्रीज आदि के बारे में सारी जानकारी निशुल्क दी जाएगी.
प्रश्न : पर्यावरण जैसे व्यापक विषय पर यदि कोई कंपनी अपनी अगुवाई में कुछ कार्य करे तो क्या उससे कोई अंतर आता है?
आनंद : मुझे लगता है कि उद्योग या इंडस्ट्री में एक तरह की मसल पॉवर होती है. एक इंडस्ट्री इवोल्यूशन से रिवॉल्यूशन तक का सफर तय कर सकती है. उद्योग समूह इस तरह की जिम्मेदारी ले तो उसे मिलने वाली ऊर्जा, प्रचार और गति किसी अन्य के मुकाबले उल्लेखनीय होती है.
प्रश्न : क्या वेिश भर में अपनाई जाने वाली डिजाइन थिंकिंग अवधारणा को भी आपने यहां साकार किया है?
आनंद : यदि हम साइंस एवं क्रिएटिविटी- इन दो पहलुओं को पूरी कार्य क्षमता से उपयोग में ला सकें तो यह पूरे वेिश के लिए एक बड़ा इंपैक्ट मेकर साबित हो सकता है. इनोवेशन डिपार्टमेंट में रहते हुए मैंने इसी बात पर जोर दिया. हमारे प्रोडक्ट या पैकेजिंग रेंज से उपजी ‘डिजाइन थिंकिंग` नामक टर्म का स्मार्ट उपयोग कर, मैं कई नए विचारों तक पहुंच सका. ‘सुहाना` में बाजार, ग्राहकों की पसंद, स्वाद, एवं विशेषत: सुरुचिसंपन्न भारतीय ग्राहक द्वारा अपेक्षित प्रोडक्ट बनाने के बाद इसके आगे विचार करना शुरू किया. ऐसा लगा कि व्यवसाय के रूप में हम जो `फार्म टू फोर्क` पर आधारित काम करते हैं उसके साथ ही हमारी इंडस्ट्री को वेस्ट फ्री भी होना चाहिए. वास्तव में हमारे यहां उत्पन्न वेस्ट, अपरिचित स्रोत अथवा रॉ मटेरियल है. मुझे यह बताने में गर्व महसूस हो रहा है कि भारत में एफएमसीजी के क्षेत्र में अभी तक ऐसा कार्य किसी ने नहीं किया.
प्रश्न : आपके पास फैक्ट्री की जगह थी. क्या यह बात आपके लिए फायदेमंद साबित हुई?
आनंद : हमने यवत की फैक्ट्री में इस पार्क की शुरुआत की. अपनी जगह होना सबसे बड़ा स्रोत होता है. पहले यहां फैक्ट्री चलती थी और बची हुई जगह में खेती की जाती थी. आज वही जगह ऑर्गेनिक, एग्रो, और हुर्डा (होला) के लिए पुणे का नंबर वन डेस्टिनेशन बन गया है. वहां वेस्ट मैनेजमेंट पार्क, एग्रो टूरिज्म, मेडिटेशन सेंटर हॉल , जैविक कृषि के बारे में जानकारी देने वाला केंद्र, आधुनिक गौशाला एवं फैक्ट्री से युक्त एक हॉलिस्टिक डिजाइन बनाई गई है.
प्रश्न : वेस्ट मैनेजमेंट पार्क का उपयोग इको टूरिज्म के तौर पर करने के लिए उसमें क्या बदलाव किए गए अथवा उनमें क्या कुछ नया जोड़ा गया?
आनंद : न्यूजीलैंड में पढ़ाई के दौरान, मैंने वहां फार्म टूरिज्म की अवधारणा को प्रत्यक्ष साकार होते देखा था. यवत के फैक्ट्री परिसर में हमने वही किया. हमने इको टूरिज्म, वर्ल्ड टूरिज्म जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर इसका प्रचार किया. यानी लोग यहां आएं, मजा भी करें और घर जाते हुए कुछ संदेश, स्वच्छता के विचार भी लेकर जाएं. इस वेस्ट मैनेजमेंट पार्क, अवेयरनेस एंड लर्निंग सेंटर का प्रारंभ 2017 में शुरू हुआ. तब से अब तक लगभग 10-15 हजार लोग यहां आ चुके हैं. यहां कुछ फिल्में दिखाई जाती हैं, जन जागृति पर जोर दिया जाता है, नई-नई तकनीकें बताई जाती हैं तथा उन्हें भारत में उपलब्ध कराने वालों के संपर्क नंबर भी दिए जाते हैं. कुल मिलाकर दो-तीन घंटों की सफारी में इस विषय में लोगों को पूर्ण सक्षम कैसे किया जाए, इसका विचार किया गया है. वेस्ट मैनेजमेंट पार्क देखकर जाने के बाद कई लोगों ने कंपोस्टिंग मशीनें खरीदी हैं. कई सोसायटियों ने हमें ट्रेनिंग देने के लिए बुलाया है. हम कॉर्पो रेट विजिट को भी प्रमोट करते हैं. उससे भी हमें लाभ हो रहा है.
प्रश्न : कचरे से कंचन की अवधारणा पर अमल करने के दौरान आपके लिए सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण क्या रहा?
आनंद : बायो-डीग्रेडेबल कचरे का महत्व स्वयं समझना और कंपनी के अन्य सहयोगियों को समझाना सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण था. लोगों को यह समझाना कि कचरा फेंकने योग्य नहीं बल्कि बहुत मूल्यवान है, और उन्हें इस विचार पर टिकाए रखना बहुत चुनौतीपूर्ण था. हालांकि जब लोगों को कचरे के प्रति मेरा दृष्टिकोण समझ में आया, तब इस कार्य के प्रति उनका नजरिया बदल गया.
प्रश्न : आपका कहना है कि बायो-डीग्रेडेबल वेस्ट एक तरह का रॉ मटेरियल है. ऐसा क्यों?
आनंद :हमारे `सुहाना` के उत्पाद ग्राहक केंद्रित होते हैं पर बड़ी सावधानी से तैयार किए जाते हैं. इस संपूर्ण प्रक्रिया में भारी मात्रा में बायो- डीग्रेडेबल वेस्ट भी निकलता है. हमने इसे 100% री-साइकिल, अप साइकल और री-फर्बिश करने का प्रयास किया. मैंने विचार किया कि यह कचरा, समस्या के बजाय ऊर्जा का स्रोत हो सकता है या फिर इसमें से कुछ वैल्यू क्रिएशन भी किया जा सकता है. तभी मेरे मन में यह विचार आया कि साइंस और क्रिएटिविटी दोनों का संगम किया जा सकता है. मुझे समझ आया कि यह कचरा किसी प्रोडक्ट का रॉ मटेरियल हो सकता है. मेरे मन में यह विचार उमड़ने लगा कि इसके द्वारा मैं एक नया उद्योग शुरू कर सकता हूं. मैंने अनुमान लगाया कि इस पूरे 3,000 टन बायो-डीग्रेडेबल कचरे पर कुछ प्रक्रिया कर उसे कई उत्पाद एवं प्रोसेसेस यानी बायोगैस, ब्रीकेटिंग, कंपोस्टिंग, वर्मी कंपोस्टिंग, रीसाइकिल्ड पेपर आदि का उत्पादन किया जा सकता है. हमने इस पर कार्य शुरू भी कर दिया है. फिलहाल, प्लास्टिक कप के विकल्प के तौर पर उपयोग में लाई जा सकने वाली इकोफ्रेंडली कटलरी पर हमारा शोध जारी है. करोड़ों स्ट्रॉ, प्लास्टिक ग्लास आदि फेंक दिए जाते हैं. इकोफ्रेंडली कटलरी द्वारा जहां प्रदूषण को रोका जा सकेगा वहीं क्रिएटिव इनीशिएटिव एवं थिंकिंग द्वारा एक अनोखे उद्योग और उसके साथ ही स्वच्छ भारत की संकल्पना को भी ताकत दी जा सकेगी.
प्रश्न : सुहाना` में उपलब्ध संसाधनों का उपयोग फैक्ट्री के बाहर के लोगों के लिए किया जाता है? इसका स्वरूप क्या है?
आनंद : हमारे व्यवसाय में अचार को स्टोर करने के लिए ड्रमों का उपयोग किया जाता है. पहले हम इसे कबाड़ में दे देते थे. अब हम ड्रम फार्मिंग को प्रोत्साहन दे रहे हैं. एक ड्रम एक वर्टिकल फार्म की तरह होता है. हमारे कुछ साथियों ने उनके गांव में इस अवधारणा को क्रियान्वित किया और उसे स्वच्छ ग्राम का पुरस्कार भी मिला. हम अपनी शिरवल की फैक्ट्री के पास स्थित गांवों में, सीएसआर के माध्यम से ड्रम वितरित कर रहे हैं और ट्रेनिंग भी दे रहे हैं. अब वहां ड्रम फॉर्मिंग की जा रही ह