साध्वी श्री काव्यलताजी म.सा.
पर्यूषण का हृदय है क्षमापना. अपने अपराध के लिए क्षमा मांगना और दूसरों के अपराधों को भूलना, माफ करना यह क्षमा का महान दान है. अपने घर को स्वर्ग बनाने का पर्व है क्षमा याचना. क्षमा याचना से चित्त में आनन्द की अनुभूति होती है.
जैन परम्परा में संवत्सरी महापर्व आता है. उस दिन सायंकालीन प्रतिक्रमण के बाद चौरासी लाख जीव योनि से खमत खामणा कर स्वयं को हल्का बनाने का प्रयत्न करते हैं. यह वर्ष में एक बार आता है. इस दिन केवल साधु-साध्वी ही नहीं, बल्कि बालक, गृहस्थ भी परस्पर एक दूसरे से गले मिलकर, प्रेम की धारा प्रवाहित कर खमत खामणा करते हैं. यह मैत्री का महान पर्व है. भादव मास में आता है. किसी के साथ अविनय, आसतना व्यवहार हुआ हो, या हमारे व्यवहार से किसी को कष्ट हुआ हो, तो हम खमत खामणा कर मन को साफ कर लेते हैं. इसका महत्वपूर्ण आधारभूत श्लोक है- खामेंमि सव्वेजीवे, सव्वे जीवा खमन्तु में मिती में सम्वभूएसु वेरं मज्झन केणई इसका अर्थ है- मैं सभी जीवों को क्षमा देता हूं. सभी जीव मुझे क्षमा करें. सभी प्राणियों के प्रति मेरा मैत्री भाव है. किसी भी प्राणी के प्रति मेरे मन मे वैरभाव नहीं है. यह केवल बोलना नहीं है. वैसी अनुभूति भी होनी चाहिए. संवत्सरी पर्व के दूसरे दिन क्षमा पर्व मनाया जाता है. जिस दिन व्यक्ति एक एक व्यक्ति के पास जाकर क्षमा मांगता है. यह बहुत अच्छी बात है. पर विशेष बात यह है कि अपने भाई के साथ पति या पत्नी के साथ करना चाहिए जिनके साथ हमारा अधिक काम पडता है. उनसे खमत - खामण करना ही इस पर्व का राज है.
खमन खामणा का आधार तत्व है सहनशीलता
हमारे भीतर सहन करने की शक्ति आए, तो हम दूसरों के अच्छे बुरे विचारों को सहन करेंगे. तो क्रोध नहीं आएगा. क्रोध न आने से हमारे भीतर क्षमा का दीप जलेगा. क्षमारूपी शस्त्र जिसके हाथ में है दुर्जन व्यक्ति उसका क्या अनिष्ट कर सकता है..? अग्नि में ईंधन नहीं डालने से वह अपने आप शांत हो जाती है. आदमी इस पर्व से प्रेरणा लेकर अपने मन की गांठों को खोलने का प्रयत्न करें. यही परम लक्ष्य की प्राप्ति में उपयोग बन सकता है. जहाँ आचार्य भगवंत साधु-साध्वियों का चार्तुमास होता है, उस स्थान पर पर्यूषण महापर्व का समापन इस क्षमापर्व से होता है. क्षमा वीरस्य भूषणम्. क्षमा वीरों का भूषण है. हमें वीर बनकर महावीर के दर्शन को जीवन में उतारना है.