‘मुहर्रम` कोई त्योहार नहीं बलिदान की याद दिलाता है...

    08-Aug-2022
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इस्लाम धर्म के नए साल की शुरुआत ‘मुहर्रम‘ महीने से होती है, यानी कि मुहर्रम का महीना इस्लामी साल का पहला महीना होता है, उसी तरह एक बात यहां स्पष्ट कर दूं कि, मुहर्रम यह कोई खुशी से भरा त्यौहार नहीं बल्कि बलिदान की याद दिलाता है. मुहर्रम की 10 तारिख को हजरत मुहम्मद पैगंबर (स.) के (नवासे) नाती हसन और हुसैन का बलिदान उजागर किया जाता है. हसन और हुसैन दोनों करबला (इराक ) में हुए धर्मयुद्ध में शहीद हो गये थे. उनकी स्मृति में मुस्लिम बांधव इस महिने की 10 तारीख को ‘मुहर्रम` के नाम से मातम (शोक) व्यक्त करते हैं. प्रस्तुत है ‘दैनिक आज का आनंद` के पाठकों के लिए यह लेख....
 
 
 
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लेखक : मुहम्मद शकील
ताजमुहम्मद जाफरी
मंचर, पुणे. मो. 9867929589
 
 
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार इस्लामी साल का पहला महीना मुहर्रम होता है. यह महीना बड़े ही गमों और दुःख का है. इसी महीने की 10 तारीख मुहर्रम 61 हिजरी (680 ई.) में पैगंबर साहब हजरत मुहम्मद (स,) के नवासे (नाती) इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को तीन दिनों तक भूखा और प्यासा रखकर, उनके सहित 72 साथीयों को बड़ी ही बेरहमी से शहीद कर दिया गया. उनकी शहादत के बाद, उनके पवित्र परिवार की महिलाओं और बच्चों को कैद करके विभिन्न तरीकों से प्रताड़ित किया गया. उनकी आंखों के सामने शहीदों के शरीर पर घोड़ों को दौड़ाया गया. घोड़ों से रौंदकर शवों को क्षत-विक्षत किया गया. मृत शहीदों के सरों को तन से काटकर भाले पर चढ़ाकर जुलूस निकाला गया.
इस्लामी इतिहास में यह आतंकवाद तथा क्रूरता का सबसे घिनौना कृत्य था. अब दुनिया में जहां कंही भी इस्लाम के नाम पर आतंकवाद फैलाया जा रहा है, इसमें कोई शक नहीं कि यह अधर्मी यजीद लानतुल्लाह की शिक्षाओं से प्रेरित राक्षसों द्वारा ही किया जा रहा है. यह हजरत पैगंबर मुहम्मद (स.) साहब और पवित्र कुरान की शिक्षाओं का हिस्सा नहीं है. प्रतिवर्ष दुनिया भर में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के सत्य और मानवता के बलिदान की याद को जीवित रखने और इस बलिदान से प्रेरणा लेने के लिए ‘मुहर्रम` मनाया जाता है. अभी प्रश्न यह उठता है के आखिर ऐसा क्यों हुआ? इसका कारण था कि अपने जीवनकाल के दौरान पैगंबर साहब मुहम्मद (स.) ने इमाम अली अलैहिस्सलाम को ‘गदीर` क्षेत्र में अपना उत्तराधिकारी घोषित किये थे. लेकिन उनके पश्चात्त कुछ असामाजिक तत्वों ने लोगों को डरा धमकाकर और दौलत का लोभ देकर सत्ता हथिया ली थी. इसकी परिणति कर्बला की घटना में हुई. यजीद लानतुल्लाह बनी उमय्या जनजाति का था, उस पापीने अपना पूरा जीवन कुकर्मों व अधर्म गतिविधियों में बिताया. हमेशा शराब के नशे में रहने वाला यह दानव इस्लाम के नाम पर जुआ, व्यभिचार, अन्याय और उत्पीड़न जैसे पाप कार्य करता था. इन सभी पापों को इन्हे इस्लाम के नाम से फैलाया करता था.
 
इन पापकर्मों का विरोध करने पर इस दानव ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को शहीद करवाया था. दोस्तों! जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पर उनकी शहादत से पहले यजीद लानतुल्लाह द्वारा इस दानव ने अधिपत्य स्वीकारने या लड़ाई करने के लिए दबाव डाला गया. तब पैगंबर साहब मुहम्मद (स) नवासे, इमाम अली अलैहिस्सलाम और फातेमा सलामुल्लाअलैहा के सुपुत्र एवं इमाम हसन अलैहिस्सकाम के छोटेभाई इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अत्याचारी यजीद लानतुल्लाह के आधिपत्य को स्वीकार करने और लड़ने से भी इनकार किए थे.
उन्होंने यजीद लानतुल्लाह से शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए भारत देश में जाने देने की इच्छा जाहिर की थी. लेकिन दुष्ट यजीद लानतुल्लाह और उसकी सेना ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की इस इच्छा को पूरी करने से इनकार कर दिया. दोस्तों! आज हमें भारतीय होने पर गर्व है. क्योंकि हम उस देश में पैदा हुए हैं, जहां इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम आना चाहते थे. यह हमारे लिए गर्व की बात है कि उन्हे हम भारतीयों पर भरोसा था. इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का बलिदान किसी एक धर्म के लिए नहीं था बल्कि पूरे मानवता के लिए था. दोस्तों! आइए, सत्य और मानवता के लिए हम इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम द्वारा दिए गए बलिदानों को न भूलते हुए हर तरह के अन्याय व अत्याचार के विरोध जात धर्म भूलकर एक हो जाए. इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम द्वारा सिखाए गए मानवतावाद को अमल में लाकर पूरे वेिश में विशेषतः अपने देशमें शांती एवं राष्ट्रीय एकात्मता को प्रस्थापित करना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजली साबित होगी.