नागरिकों को पुलिस के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का अधिकार है : एड. राशिद सिद्दीकी

    13-Oct-2023
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एड. राशिद सिद्दीकी
(मो. नं. 9595957126)

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महाराष्ट्र स्टेट पुलिस कम्प्लेंट अथॉरिटी
तक्रार निवारण प्राधिकरण मुंबई का पता
 
चौथा मंजला, कूपेरेज टेलिफोन एक्सचेंज,
महर्षि कर्वे रोड, नरीमन पॉइंट, मुंबई 40021
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पुणे डिवीजन : सर्वे नं. 29/219 पहला मजला
आनंत हाईट्स, जाधव नगर,
सिंहगढ़ रोड, नांदेड़ सिटी 411 068 पुणे.
 
 
पुणे प्रतिनिधि (आ.प्र.)
 
पुलिस का गठन राज्य सरकारों द्वारा नागरिकों की सुरक्षा व्यवस्था के लिए किया गया. शहर में कानूनी व्यवस्था बनी रहे. पुलिस का भय अपराधियों पर कायम रहे, इसके लिए प्रतिक्रिया संहिता यानी सी.आर.पी.सी. धारा 41 के तहत पुलिस को पॉवर दी गयी है कि बिना नोटिस बिना किसी सूचना के पुलिस आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है. अगर मामला छोटा-मोटा है यानि कोई गंभीर आरोप नहीं है तो पुलिस सी.आर.पी.सी. की धारा 41 (ए) के तहत आरोपी को पुलिस अधिकारी के सामने हाजिर होने के लिए नोटिस दे सकती है, परंतु आये दिन फर्जी एफ. आई. आर करना व झूठे केस में फंसाने की धमकी देते हुए रिश्वत मांगना मामले को बढ़ा-चढ़ा कर कोर्ट में पेश करना, पुलिस कस्टडी में आरोपी के साथ मारपीट करना, किसी परिवार के एक सदस्य ने अगर किसी क्राइम को अंजाम दिया परंतु पुलिस द्वारा पूरे परिवार को गैरकानूनी ढ़ंग से हिरासत में रखना, यह आये दिन सुनने में आता है.
 
नागरिकों के मन में अब सवाल यह आता है कि इन गैरजिम्मेदार पुलिस अधिकारी व कर्मचारी के खिलाफ शिकायत कहां करें और कैसे करें सन 2006 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसके लिए एक अलग से विभाग बनाया गया है, जिसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है. यह जानकारी क्रिमिनल लॉयर एड. राशिद सिद्दीकी ने आज का आनंद प्रतिनिधि को चर्चा के दौरान दी. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के सामने प्रकाश सिंह v/s दिल्ली सरकार मामला सन 2006 में आया था, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने मामले का संज्ञान लेते हुए (पुलिस कम्प्लेंट अथॉरिटी) प्रत्येक राज्य में गठन करने का निर्दे श दिया था. पुलिस कम्प्लेंट अथॉरिटी देश के 11 राज्यों में कार्यरत है. असम, चंडीगढ़, दिल्ली, हरियाणा, जम्मू- कश्मीर, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, पंजाब और महाराष्ट्र, तेलंगाना, आदि राज्य शामिल हैं पुलिस कंम्प्लेंट अथॉरिटी को महाराष्ट्र राज्य में तक्रार निवारण प्राधिकरण के नाम से जाना जाता है.
 
(पुलिस कंम्प्लेंट अथॉरिटी) तक्रार निवारण प्राधिकरण कैसे काम करती है ?
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गयी यह अथॉरिटी राज्य सरकार के आधीन काम नहीं करती है. यह अथॉरिटी एक स्वतंत्र है. इसी के साथ-साथ इस अथॉरिटी का पुलिस से कोई संबध नहीं है. इस अथॉरिटी की अध्यक्षता सेवानिवृत्त न्यायाधीश करते है. जब किसी भी व्यक्ति को किसी पुलिस अधिकारी व कर्मचारी द्वारा किसी केस में फंसाने की धमकी दी जाए या फिर उससे रिश्वत मांगी जाए या उसके परिजनों को परेशान किया जा रहा हो. और शिकायतकर्ता के पास इसका सबूत हो तो ऐसी परिस्थिति में मामले की जांच इस अथॉरिटी के अधिकारियों द्वारा कराए जाने के बाद उक्त अधिकारी के खिलाफ नामजद एफ. आई. आर कराई जाती है. साथ ही उसे उसकी पदवी से तुरंत हटाया जाता है.
 
सुप्रीम कोर्ट ने इस अथॉरिटी का गठन करते समय स्पष्ट कहा था कि दंड सहिता के तहत अगर कोई व्यक्ति अपराध करता है और कोर्ट में साबित हो जाता है तो उसे सजा देने का प्रावधान है परंतु कोई पुलिस अधिकारी व कर्मचारी अपनी ड्यूटी की आड़ में कोई अपराध करता है तो वह भी सजा का हकदार है. अगर पुलिस किसी व्यक्ति को अनावश्यक रूप से परेशान करती है. किसी व्यक्ति की शिकायत दर्ज नहीं करती या घूसखोरी करती है, तब इस अथॉरिटी में उस पुलिस अधिकारी के खिलाफ शिकायत दर्ज की जा सकती है.
 
सुप्रीम कोर्ट ने अगली गाइडलाइन में कहा कि हर पुलिस स्टेशन में कई अधिकारी और बहुत सारे कर्मचारी होते हैं परंतु सबके खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं हो सकती क्योंकि सभी पुलिस अधिकारी एक जैसे नहीं होते हैं. इस बात को ध्यान में रखते हुए इस अथॉरिटी में उसी अधिकारी व कर्मचारी के खिलाफ शिकायत दर्ज करनी होगी जो अपना काम ईमानदारी से नहीं कर रहा है और अपने पद का दरुउपयोग कर रहा है. पुलिस कम्प्लेंट अथॉरिटी के समक्ष किसी भी पुलिस अधिकारी के खिलाफ शिकायत करने के लिए शिकायतकर्ता के पास कोई सबूत होना अनिवार्य है. सबूतों के अभाव में यदि पाया गया कि अधिकारी अपने पद का गलत फायदा उठा रहा था तो ऐसी परिस्थिति में उक्त अधिकारी के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज करायी जाती है साथ ही उसे उस पद से निलंबित किया जाता है.
 
इस अथॉरिटी की अगली गाइडलाइन में कहा गया है, यदि पुलिस अधिकारी रिश्वत मांगता है तो उसके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 1,2,3 के तहत एफ.आई. आर दर्ज कराई जायगी. एड. सिद्दीकी ने आगे बताया कि अगर पुलिस कस्टडी के दौरान आरोपी से पुलिस मारपीट करती है या जबरन उससे गुनाह कबूल कराती है तो आरोपी को पूरा अधिकार है कि जब उसे न्यायालय के समक्ष हाजिर किया जाये तो वह कोर्ट के सामने राष्ट्रीय मानवधिकार आयोग (एन. एच.आर.सी.) तहत कार्रवाई की मांग कर सकता है.
 
साथ ही CRPC की धारा 156 के तहत अपना मेडिकल कराने की भी मांग कर सकता है. पुलिस कस्टडी के दौरान अगर आरोपी की मौत हो जाये, ऐसी परिस्थिति में आरोपी के परिजन CRPC की धारा 176 के तहत उक्त पुलिस अधिकारी पर कार्रवाई की मांग कर सकता है उठझउ की धारा 176 में स्पष्ट रूप से कहा गया है किसी आरोपी की मौत पुलिस कस्टडी के दौरान होती है तो स्वयं मजिस्ट्रेट मामले की जांच किसी दूसरी एजेंसी से करवा सकता है. जांच में पुलिस अधिकारी यदि दोषी पाया जाता है तो उस पर हत्या का मामला दर्ज कराया जाता है.