पिंपरी, 30 अक्टूबर (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
‘अखिल सजीव और निर्जीव पदार्थ ईश्वर ने अपनी सामर्थ्य से निर्माण किए. वह सामर्थ्य उसी के पास सदा रहती है, इस तात्पर्य से भेद नहीं आता. अविद्या के कारण मनुष्य अनित्य को नित्य और अपवित्र को पवित्र समझता है, जबकि विद्या से दुखों से छुटकारा मिलता है और इसी से मोक्ष की प्राप्ति होती है.' आर्य समाज के सक्रिय प्रसारक, कार्यकर्ता व वेदों के विद्वान साईंनाथ पुन्ने ने महर्षि दयानंदजी के पूना प्रवचन सार व सत्यार्थ प्रकाश ग्रंथ का आधार लेकर ये बातें कहीं. आर्य समाज-पेिंपरी के सभागृह में आयोजित प्रवचन सभा में पुन्ने संबोधित कर रहे थे.
इस अवसर पर समाज के प्रधान सुरेंद्र करमचंदानी, मंत्री हरीश तिलोकचंदानी, उपमंत्री कमलेश धर्मानी व दत्ता सूर्यवंशी, कोषाध्यक्ष जयराम धर्मदासानी, प्रकाशन विभाग प्रमुख अतुल आचार्य, पुस्तक विभाग के सचिव दिनेश यादव, आर्य विद्या मंदिर के सचिव संजय वासवानी, अभिमन्यु करमचंदानी, दिगंबर रिद्धिवड़े, जयचंद वाधवानी, मनोहर सेवानी, तथा कई गणमान्य लोग उपस्थित थे. पुन्ने ने कहा कि ऋषिवर का सत्यार्थ प्रकाश ग्रंथ काफी लोगों तक पहुंचा है. इसके प्रचार की उतनी जरूरत नहीं है. बल्कि आवश्यकता तो ऋषिवर के पूना प्रवचन को जन-जन तक पहुंचाने की है. सत्यार्थ प्रकाश का सार समीक्षा है और आर्य समाज हर बात की समीक्षा चाहता है.
पूना प्रवचन जीवन को नई दिशा देता है. उन्होंने कहा कि दयानंद के अनुसार जिससे विद्या सभ्यता, धर्मात्मा जितेन्द्रियता आदि की वृद्धि हो और अविद्या दोष दूर हो उसे शिक्षा कहते हैं. विद्या के पांच लक्षण हैं- विद्या प्रदान करना, सभ्य बनाना, धर्मात्मा बनाना, जितेन्द्रियता बढ़ाना और अविद्या से मुक्ति दिलाना. इस प्रकार शिक्षा में लौकिक और पारलौकिक सभी 14 विद्याएं आती हैं. प्रवचन से पूर्व पं. विवेक शास्त्री के सान्निध्य में समाज के परिसर में हवन भी किया गया.