जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकरों में बाइसवें तीर्थंकर नेमिनाथ

    13-Nov-2023
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jain
 
तीर्थंकर शब्द ‌‘तीर्थ' और ‌‘संसार' दो शब्दों से बना है. तीर्थंकर वो हैं जो अपने कठोर तप से सर्वोच्च आध्यात्मिक अवस्था प्राप्त करते हैं और संसार के जीवन-मरण के चक्र से, मोक्ष तक के मार्ग (तीर्थ) को प्रशस्त करते हैं.
 
नेमिनाथ भगवान वर्तमान कालचक्र के 22वें तीर्थंकर हैं. शौरीपुर (द्वारिका) के यदु वंश के राजा समुद्रविजय और रानी शिवदेवी के पुत्र थे. मां ने दिव्य स्वप्न में रत्नों के चक्र को देखा था इसलिए उनका नाम ‌‘नेमी' जिसका अर्थ है ‌‘चक्र की आकृति' रखा गया. जैन ग्रंथ जैसे त्रिशष्टी-शलका-पुरुष-चरित्र में उनको कृष्ण के चचेरे भाई के रूप में वर्णित किया गया है. श्रीकृष्ण ने ही नेमि का विवाह राजा उग्रसेन की पुत्री राजुल से तय कराया था. पर जब बरात रास्ते में थी नेमी ने पशुओं के करुण क्रंदन की कारण, कि वे विवाह के भोज के लिये बध किये जाने वाले हैं, सुनकर द्रवित नेमी ने वैराग्य ले लिया. और तपस्वी बन गये. जीवन भर विवाह नहीं किया.
 
होने वाली दुल्हन राजुल कुमारी ने उनका अनुसरण किया. राजुल भी साध्वी बन गयीं. जैसे कि जैन ग्रन्थ मानते हैं कि तीर्थंकर जन्म से पहले आत्मा कई जन्म ले कर उच्च आध्यात्मिक अवस्था में तीर्थंकर जन्म से पहले पहुंचती है. नेमी और राजुल भी पति पत्नी रूप में इस जन्म से पहले नौ जन्म ले चुके थे, स्वर्ग के भिन्न भिन्न आयामों में भी. पर इस जन्म में वे तपस्वी हुए और मोक्ष प्राप्त किया. नेमिनाथ और राजुल की प्रेम कथा पर इतिहास में कई काव्य रचे जा चुके हैं . नेमि ने गिरनार पर्वत पर कठोर साधना की और 56 दिन बाद उनको महावेणु वृक्ष के नीचे ‌‘कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई.
 
भगवान्‌‍ नेमिनाथ के लिये श्लोक इस प्रकार है:
हे पूज्य प्रभु ! परम सिद्धियों से सम्पन्न, आपने शुद्ध एकाग्रता से कर्म-ईंधन को जलाया था; तुम्हारी आंखें खुली जल कुमुदिनियों की तरह चौड़ी थीं. आप हरि वंश के प्रमुख थे और आपने श्रद्धा और इंद्रियों के नियंत्रण की निष्कलंक परंपरा का प्रचार किया था. आप सदाचार के सागर थे, और चिरयुवा थे. - स्वयंभूस्तोत्र (22-1-121) नेमिनाथ का चिन्ह ‌‘शंख' है. पारलौकिक आयाम से तीर्थंकर भगवान्‌‍ की सेवा में यक्ष ‌‘गोमेध' और यक्षिणी ‌‘अंबिका' उपस्थित रहतें हैं. दीर्घकाल तक जगत में आलोक प्रकाशित करने के पश्चात, गिरनार पर्वत की सर्वोच्च चोटी उर्जयंत पर संथार और ध्यान करते हुए पर्यंकासन में निर्वाण प्राप्त किया. नेमिनाथ, महावीर, ऋषभनाथ, पोर्शनाथ और शांतिनाथ समेत, पांच सबसे अधिक पूज्य तीर्थंकरों में से एक हैं.
                                                                                                                                                            - छवि अनुपम, पुणे