एन.डी.पी.एस. एक्ट में जमानत जल्दी नहीं मिलती : एड.राशिद सिद्दिकी

    19-Nov-2023
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पुणे प्रतिनिधि (आ.प्र.)
 
एन.डी.पी.एस. एक्ट यानि दि नार्कोटिक्स, ड्रग्स एंड सायकोट्रॉपिक सब्स्टेंसेज एक्ट 1985 की धारा 60 के अंतर्गत अवैध दवाइयों, नशीली दवाइयों, नशीले पदार्थों का उत्पादन करना, उन्हें बेचना, उनकी तस्करी करना आदि शामिल हैं. एन.डी.पी.एस. एक्ट में सबसे खास बात यह है कि इसकी चार्जशीट दाखिल करने के लिए प्रॉसिक्यूशन के पास 180 दिन से अधिक समय होता है. पुणे प्रतिनिधि- एन.डी.पी.एस. एक्ट की अगर हम बात करें तो इसका फुल फॉर्म नार्कोटिक्स ड्रग्स एंड सायकोट्रॉपिक सब्स्टेंसेज एक्ट 1985 है. एन.डी.पी.एस. एक्ट में अलग-अलग नशीले पदार्थों पर ंअलग-अलग धाराएं पुलिस द्वारा लगाई जाती हैं.
 
इस अधिनियम में प्रस्तुत धारा का मूल रुप धारा 60 है, जिसमें अवैध दवाइयों, पदार्र्थेों, पौधों और वस्तुओं का अधिहरण किये जाने का मकसद होना शामिल है. जब कभी इस अधिनियम के अधीन दंडनीय कोई अपराध किया गया है तब ऐसी स्वापक औषधि मनप्रभावी पदार्थ, नियंत्रित पदार्थ अफीम, पोस्त, कोका के पौधे, केनेबिस के पौधे, या इन पौधों से तैयार होने वाली नशीली सामग्री आदि सेक्शन 60 की श्रेणी में आती है. इस प्रकार की जानकारी क्रिमिनल लॉयर एड. राशिद सिद्दिकी ने आज का आनंद प्रतिनिधि को दी. उन्होंने आगे कहा कि नशीली दवाइयों और बढ़ते नशीले पदार्थों पर लगाम कसने के लिए सरकार ने 1985 में एन.डी. पी.एस. एक्ट पारित किया था. इस मामले में आरोपी की गिरफ्तारी व मामले की जांच-पड़ताल करने के लिए क्राइम ब्रांच में नार्कोटिक इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो की स्थापना की गयी है.
 
जिसे एन.सी.बी. के नाम से भी जाना जाता है. 1985 में बने इस कानून को 1988,2001 और 2014 में तीन बार संशोधित किया गया है. यह कानून शुरुआती दौर में दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, चंडीगढ़ में लागू हुआ था. सन 1988 के बाद देश भर में लागू किये गये एन.डी.पी.एस. एक्ट में आने वाले मामलों में चरस, गांजा, अफीम, ड्रग्स, हेरोइन, गरद आदि शामिल हैं. एन.डी.पी.एस. एक्ट मामलों में 1 साल से लेकर 20 वर्ष तक की सजा का प्रावधान है. इस एक्ट में सबसे अहम बात यह है कि इसमें चार्जशीट दाखिल होने के लिये कम से कम 180 दिन लगते हैं और अगर जांच अधिकारी यानी आई.ओ.(खज) चाहे तो सरकारी वकील की सहायता लेकर 180 दिन के बाद भी अदालत से और समय मांग सकता है, उसके लिये भी इस एक्ट में कानूनी प्रावधान है.
 
जबकि सेशन कमिट और मामलो में ऐसा नहीं होता है. ट्रायल बाय सेशन किसी भी केस की चार्जशीट 90 दिनों के अंदर दाखिल होती है और ट्रायल बाय जे.एम.एफ.सी मामलों में 60 दिन के अंदर चार्जशीट दाखिल होती है. इस कानून को बनाते समय सरकार का लक्ष्य था कि नशीली दवाओं के तस्कर माफियां, ड्रग्स तस्कर माफिया, नशीले पदार्थों की खेती करने वाले माफिया ज्यादा से ज्यादा दिनों तक सलाखों के पीछे रहेें, इसलिये इस एक्ट में चार्जशीट समय पर दाखिल नहीं होती ओर जब तक चार्जशीट कोर्ट के सामने नहीं आती तब तक आरोपी को जमानत नहीं मिलती.
 
अब बात करते हैैं कौन-कौन सी धाराएं इस एक्ट में लगती हैं
एन.डी.पी.एस. एक्ट 1985 की धारा 8(उ) उस परिस्थिति में लागू होती है, जब कोई व्यक्ति नशीले पदार्थों का सेवन करता है, उसे बेचता या उसकी तस्करी करता है जिसमें चरस, गांजा, अफीम, डोडा, ड्रग्स, गरद आदि शामिल हैं. एन.डी.पी.एस.एक्टकी धारा 22 के तहत इन सभी मामलों में 10 साल से लेकर 20 साल तक की सजा का प्रावधान है. एन.डी.पी.एस. एक्ट 1985 की धारा 21 और 22,23 की अगर बात की जाये तो नशीले पदार्थों का व्यापार करना देश-विदेश में इसकी तस्करी करना, उत्पादन करना, और जिस सामग्री से इस तरह के ‌‘नशीले पदार्थ बनते हैं, उनकी खेती करना आदि शामिल है. इन सभी धाराओं में कम से कम 10 साल की सजा और 1 लाख के दंड का प्रावधान हैैं.
 
एड.राशिद सिद्दिकी ने आगे कहा कि, एन.डी. पी.एस. एक्ट मामलों में सबसे अहम बात यह है कि ड्रग्स, हेरोइन, चरस, गांजा कितना बरामद हुआ, उसका बाजार मूल्य क्या है, उस पर पूरा केस निर्भर होता है. परंतु समझो, एक आरोपी के पास 50 ग्राम माल बरामद हुआ, उसको पुलिस ने 250 ग्राम दिखा दिया अपनी रिपोर्ट में और उसकी कीमत लाखों में दिखाई तो ऐसी परिस्थिति में बचाव पक्ष को न्यायालय के समक्ष कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है और जिसमें ज्यादातर ट्रायल कोर्ट जमानत नहीं देती. बचाव पक्ष को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है. नार्केोटेक ब्यूरो अपनी रिपोर्ट में कितना भी माल कागज पर दिखा सकती है, क्योंकि उसे मालूम है कि यह माल कोर्ट में पेश नहीं करना है.
 
नार्केोटेक ब्यूरो को बरामद किये गये माल को नष्ट यानि डिस्ट्रॉय करने का अधिकार होता है और कोई नार्कोटेक ब्यूरो से यह पूछ नहीं सकता कि बरामद माल कहां है, कितना है. इस बात का फायदा जांच अधिकारी को होता है. वह माल नष्ट करे, उसे बेचे या अपनी चार्जशीट में दोगुना दिखाये, बाकी सेशन कमिट केसों में ऐसा नहीं होता है. उदाहरण के तौर पर अगर कोई पुलिस अधिकारी हत्या, डकैती, किडनैपिंग, मामले की जांच करता है तो उसे कोर्ट में दिखाना पड़ता है कि फलां-फलां आरोपी के पास से लूटा गया सोना बरामद किया है, जिसकी कीमत इतनी है, हत्या के मामले में फलां-फलां आरोपी के पास से एक गाड़ी बरामद की है जो पुलिस स्टेशन में सीज की गई है. कहने का अर्थ यह है कि यह बरामद माल फरियादी सी.आर.पी.सी.की धारा 457 के तहत कोर्ट से मांग सकता है. कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस को यह माल देना होता है. परंतु नार्केोटेक अधिकारी से इस बरामद किये गये माल को कोई मांग नहीं सकता, इसलिये वह अधिकारी जितना चाहे कागज पर दिखा सकता है.