वेश्या व्यवसाय मामले में गिरफ्तार आरोपी को ज्यादा दिनों की पुलिस रिमांड नहीं मिलती

    01-Dec-2023
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एड. राशिद सिद्दीकी
(मो. नं. 9595957126)
Pune Session Bar Code 12848 
 
वेश्या व्यवसाय मामलों की अगर बात करें तो ऐसे मामले वर्तमान स्थिति में काफी तेज रफ्तार से बढ़ रहे हैं. पहले यह मामले दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई जैसे मेट्रोपोटियन शहरों में ही देखने को मिलते थे. परंतु अब यह मामले देश के सभी छोटे-बड़े शहरों में देखने को मिलते हैं. वेश्या व्यवसाय एक गंभीर अपराध है. इस बात को ध्यान में रखते हुए सरकार ने 1956 में प्रिवेंशन ऑफ इम्मोरल ट्रैफिकिंग एक्ट लागू किया था. सन 1986 में इस कानून में संशोधन किया गया. इस कानून के तहत वेश्या व्यवसाय करने वाली लड़की या महिला को 6 महीने की सजा और साथ ही जुर्माने का प्रावधान था.
 
वेश्या व्यवसाय करने वाली कॉलगर्ल के साथ पकड़े जाने वाले ग्राहकों के लिये सजा का प्रावधान अलग है, जिसमें 5 वर्ष से लेकर 7 वर्ष तक की सजा का प्रावधान है. और अगर वेश्या व्यवसाय करने वाली युवती की उम्र 18 वर्ष से कम है और उसके साथ कोई ग्राहक गिरफ्तार होता है तो उसे 10 साल या अधिक सजा हो सकती है. इस प्रकार की जानकारी क्रिमिनल एड. राशिद सिद्दिकी ने ‌‘आज का आनंद' प्रतिनिधि को दी उन्होंने आगे बताया कि 1956 में बनाये गये कानून को जब 1986 में संशोधित किया गया उसके बाद भी ऐसे मामलों में कोई खास रोकथाम नहीं हुई तो इन्हें सन्‌‍ 1999 में आई.पी.सी. की धारा 370,370अ और मानव तस्करी के साथ जोड़ा गया.
 
मानव तस्करी गंभीर अपराध है जो गैरजमानती है. परंतु खास बात यह है कि इन मामलों में गिरफ्तार आरोपियों को ज्यादा दिन की पुलिस रिमांड नहीं मिलती है ओर दोष आरोप पत्र दाखिल होने से पहले आरोपी को जमानत मिल जाती है. वेश्या व्यवसाय पर विराम लगाने के लिये अलग-अलग राज्य सरकारों द्वारा पुलिस के महिला सुरक्षा विभाग बनाये गये हैं. महाराष्ट्र राज्य में इस सेल को ‌‘महिला अत्याचार विरोधी पथक' के नाम से जाना जाता है. यह ‌‘महिला अत्याचार विरोधी सेल' ब्यूटी पार्लर, मसाज सेंटर की आड़ में चल रहे वेश्या व्यवसाय के वहां फर्जी ग्राहक भेजकर सही जानकारी निकालकर यहां छापेमारी करते हैं. कॉलगर्ल के साथ-साथ ग्राहक और दलालों को गिरफ्तार करके न्यायालय के समक्ष हाजिर करते हैं, जहां सरकारी वकीलों द्वारा पुलिस कस्टडी की मांग की जाती है.
 
परंतु बचाव पक्ष उस समय अपनी दलील में कहता है कि पकड़ी गयी सभी लड़कियां 20 साल से ज्यादा उम्र की हैं. यह अपना भला-बुरा बखूबी जानती हैं. इन्होंने जो किया अपनी मर्जी से किया. जो कुछ पुलिस को इनके पास से बरामद करना था, वो हो चुका है. इस मामले में पुलिस जांच के नाम पर आरोपी को गैरकानूनी ढंग से टॉर्चर करना चाहती है. बचाव पक्ष की बहस सुनने के बाद ऐसे मामलेों में आरोपियों को ज्यादा दिन की कस्टडी नहीं मिलती. एड. राशिद सिद्दिकी ने आगे बताया कि पीटा एक्ट आई.पी.सी. की धारा 370,370अ में सबसे अहम बात यह है कि इस मामले में ग्राहक और दलालों कानून दोषी मानता है! वेश्या व्यवसाय में लिप्त महिलाओं और युवतियों को जेल नहीं भेजा जाता. सन्‌‍ 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी गाइडलाइन जारी करते हुए स्पष्ट कहा है कि वेश्या व्यवसाय करना कानूनी अपराध नहीं है. वेश्या व्यवसाय कराने के लिये मजबूर करना, अपराध दबाव डालना, उन्हें पैसों का लालच देकर इस धंधे में ढकेलना, ऐसा करवाने वाले आरोप सजा के हकदार हैं.
 
जानते हैं इन मामले में पुलिस की प्रक्रिया क्या होती है ?
पुलिस शहर के किसी भी ठिकाने से वेश्या व्यवसाय मामले में जब आरोपियों को गिरफ्तार कर न्यायालय के सामने पेश करती है. तो पुलिस प्रॉसिक्यूशन स्टोरी में लिखती है कि फलां-फलां जगह से हमने तीन ग्राहक और चार लड़कियों को हिरासत में लिया है. जबकि यह धंधा चलाने वाला (मुख्य आरोपी फरार है) ऐसी परिस्थिति में न्यायाधीश आरोपी ग्राहकों को मजिस्ट्रेट कस्टडी में भेज देता है. और वेश्या व्यवसाय में पकड़ी गयी युवतियों को महिला बाल विकास मंडल को सौंप देता है. महिला बाल विकास मंडल यानि वुमन एंड चाइल्ड वेलफेयर कमेटी, इस कमेटी के पैनल पर कई सामाजिक संस्थाएं भी काम कर रही हैं. यह संस्था इन महिलाओं की काउंसिलिंग करते हुए उनका मार्गदर्शन करता है.
 
इसके लिये इन युवतियों को संस्था द्वारा तरह-तरह के रोजगार के सिखाये जाते हैं ताकि वे भविष्य में कोई गलत काम न करते हुए अपने पैरों पर खड़ी हो सकें. पर जमीनी हकीकत देखें तो मामला कुछ और है. होता यूं है कि बड़े शहरों में जिस्म फरोशी का धंधा करने वाली ये लड़कियां बाहरी राज्यों की होती हैं, और साथ ही कुछ लड़कियां विदेश से भी होती हैं. जिसमें ज्यादातर बांग्लादेश और नेपाल का नाम आता है. सरकारों द्वारा चलाई जा रही पुनर्वास की योजना के तहत जब इनकी काउंसिलिंग की जाती है. तब यह लड़कियां नियमानुसार सब कामकाज करती हैं. परंतु जब 30 दिन से लेकर 45 दिन की इनकी कस्टडी समाप्त होने पर इनसे धंधा कराने वाले दलालों द्वारा कोर्ट का ऑर्डर लेकर इन्हें छुड़ाया जाता है और फिर दूसरे शहर में भेजा जाता है. फिर यह कभी कोर्ट नहीं आती हैं, जिसके चलते आरोपी ग्राहक व दलाल निर्दोष मुक्त हो जाते हैं.
 
मानव तस्करी मामलों में किन-किन धाराओं का प्रयोग किया जाता है
बच्चों की तस्करी में शोषण के उद्देश्य से बच्चों की भर्ती परिवहन आश्रय या प्राप्ति शामिल है. बच्चों का व्यवसायिक यौन शोषण कई रुप का हो सकता है जिसमें बच्चों को वेश्यावृत्ति में ढकेलना या अन्य प्रकार का यौन शोषण शामिल है. ऐसी परिस्थिति में आई. पी.सी. की धारा 370, 370अ के साथ उपराध 28 और 29 लगाये जाने का प्रावधान है. इसी के साथ-साथ किसी से जबरन काम कराना, जबरन विवाह करना, कम उम्र की लड़की को शादी के लिये बेच देना आदि भी मानव तस्करी की श्रेणी में आता है जिसमें इस कानून की उपधारा 30 और 31 लगाये जाने का प्रावधान है. मानव तस्करी मामलों की रोकथाम के लिये भारतीय संविधान आर्टिकल 34, की धारा 41 मे उल्लेख किया गया है.