पुणे, 16 दिसंबर (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
हम पूजा करते हैं, भगवान से प्रार्थना करते हैं, इन सभी को पूरे मन से करना चाहिए. हम जितनी अधिक ईमानदारी से प्रार्थना करेंगे, उतने ही अधिक विश्वास के साथ भगवान हमें स्वीकार करेंगे. यह हमारी आस्था है कि समुद्र मंथन से 14 रत्न निकले. जैसे समुद्र की गहराई का पता नहीं चलता, वैसे ही दिल की गहराई का पता नहीं चलता. अत: हमें इस हृदयरूपी समुद्र का मंथन करते रहना चाहिए, आशा है कि अंत में हमें अमृत कलश अवश्य मिलेगा. प्रसिद्ध कवि डॉ. कुमार विश्वास ने पुणे में अग्रवाल भाई-बहनों का मार्गदर्शन करते हुए यह विचार व्यक्त किए. पुणे जिला अग्रवाल समाज की ओर से आरटीओ के पास एसएसपीएमएस ग्राउंड में 3 दिवसीय ‘अपने-अपने राम' कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. इसके दूसरे दिन शनिवार, 16 दिसंबर को डॉ. कुमार विश्वास ने दर्शकों का मार्गदर्शन किया. इस संगीतमय राम ऊर्जा सत्र के लिए पुणे, पिंपरी-चिंचवड़ और अन्य जिलों से समाज के 7 हजार से अधिक सदस्य उपस्थित थे.
इस कार्यक्रम के माध्यम से वर्तमान में श्रीराम कथा के महत्व और भगवान श्रीराम के जीवन मूल्यों को बहुत ही सरल शब्दों में प्रस्तुत कर युवाओं को धर्म से जोड़ने का प्रयास किया गया है. कार्यक्रम के प्रारंभ में रामनाम का जाप किया गया. कार्यक्रम की शुरुआत राम राम रटे रटे...बीती रे उमरिया, जो सुख पायो राम भजन माई, बोलो जय हनुमान समेत कई सुरमयी गीतों/भजनों की प्रस्तुति से हुई. कविता तिवारी ने अपनी सुमधुर शैली में कार्यक्रम की प्रस्तावना पेश की. डॉ. कुमार विश्वास ने कहा, समुद्र मंथन के आरंभ में विष निकला. वैसे ही आज के समय में हर किसी को शुरुआत में जहरीले अपमान का सामना करना पड़ता है.
इसके बाद ही हमें उपहार में मिली गाय यानी ‘कामधेनु' मिलती है. उसके बाद हमें ‘उच्चैश्रवा' घोड़ा मिलता है जो धीरे-धीरे हमारे संकल्प को तीव्र करता है. जो व्यक्ति इस पर बैठकर संघर्ष करता है और संसार को आध्यात्मिक दृष्टि से देखता है उसे ‘ऐरावत' हाथी मिलता है. उन्होंने आगे कहा, ऐसी सफलता के हाथी पर सवार होकर दुनिया अपने माथे पर ‘कौस्तुभ मणि' के रूप में विजय तिलक लगाती है. तब हमें ‘कल्प वृक्ष' मिलता है जो हमारी मांगी हुई इच्छा पूरी करता है. साथ ही वासना रूपी अप्सरा ‘रंभा' के प्रकट होने की भी संभावना है. यदि उस ऊर्ध्वगामी प्रवृत्ति पर विजय प्राप्त कर ली जाए तो मां ‘लक्ष्मी' हम पर प्रसन्न होती हैं और शीतलता से ‘चन्द्र' विराजमान हो जाते हैं.
साथ ही हमारी जीत का नारा ‘पांचजन्य' के माध्यम से दुनिया में गूंजता है. अंतिम चरण में ‘धनवंतरि' की प्राप्ति होती है जिससे संसार के कष्टों का निवारण होता है और अंत में ‘अमृत' की प्राप्ति से हम मृत्यु के बाद भी जीवित रहते हैं. यही समुद्रमंथन, 14 रत्नों और मानव जीवन के संबंधों का सार है. उन्होंने कहा, लगन से किया गया कार्य पाप से परे होता है. तभी रावण को भी मोक्ष मिला. ईश्वर को हल्के में लेना कोई अपराध नहीं है, बल्कि ईश्वर को अपनी आस्था में कैद करना ही असली अपराध है. वह अपराध आज हम कर रहे हैं. जब मोहरूपी माया मर जाती है, तो संज्ञानात्मक जिज्ञासा पैदा होती है. उन्होंने कहा, इसलिए बिना किसी प्रलोभन में आए हमें उससे आगे बढ़कर सोचना चाहिए.
भगवान पर भरोसा ऑनलाइन डिलीवरी जैसे ही रखिए
डॉ. वेिशास ने कहा,भगवान पर वैसे ही भरोसा रखिए जैसे व्यक्ति ऑनलाइन डिलीवरी पर रखते हैं. जैसे व्यक्ति अमेजॉन से कुछ मंगवाता है तो कैसे डिलीवरी के पहले ही राशि का भुगतान कर देता है, क्योंकि उसे आने वाली चीज या वस्तु को लेकर भरोसा होता है. ऐसे ही भगवान पर भी भरोसा रखिए. मन्नतें मांग कर उन पर दबाव न बनाएं बस अपनी प्रार्थना पर भरोसा रखिए परिणाम हमेशा अच्छे ही आएंगे.
ईश्वर को मान्यताओं में कैद करना अपराध
डॉ. कुमार विश्वास ने आगे बताया कि कोई इंसान अगर आस्तिक न हो तो यह अपराध नहीं है. ईश्वर को मान्यताओं में कैद करना अपराध है. इसलिए ईेशर को कभी बनावटी मान्यताओं में कैद मत कीजिए, इस अपराध को करने से बचें. जैसे एक व्यक्ति हमेशा सूतक मानता था और भगवान के समक्ष नहीं जाता था तब किसी ने उससे पूछा कि रोज कैसा सूतक किस बात का सूतक तो उसने जवाब दिया, मुझमें मोह रूपी माया हर रोज मरती है और ज्ञान रूपी भाव हर रोज पैदा होते हैं.
पुणे में गणेश चतुर्थी खुशी और दुःख की आस्था
गणेशोत्सव में पुणे में मिट्टी के गणेश का आगमन होता है, जिसके बाद उत्साहपूर्वक पूजा और विसर्जन किया जाता है. इस आगमन के समय पुणेकरों के चेहरे पर खुशी होती है और विसर्जन के समय आंखों में पानी की धार दिखाई देती है, दुख होता है. इसलिए पुणे में आस्था हर किसी में नजर आती है. लोकमान्य तिलक ने जेल में गीतारहस्य जैसी पुस्तक लिखी. महत्वाकांक्षा रखना गलत नहीं है, लेकिन इसका दीवाना होना गलत है. महत्वाकांक्षा अमृत है, जबकि उससे कुछ पाने की लालच जहर है. अध्यात्म के माध्यम से हम आज के युवाओं को यही बताने का प्रयास कर रहे हैं.
लक्ष्मी माता के पति यानी ‘लक्ष्मीपति' बनने के बजाय लक्ष्मी के पुत्र बनें
अग्रवाल समाज पर माता लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है. मां लक्ष्मी ने सोच समझकर इस समाज को चुना है. लेकिन हमें ‘लक्ष्मीपति' नहीं बल्कि लक्ष्मी पुत्र बनना चाहिए. पत्नी जा सकती है. जबकि, मां कभी हार नहीं मानती. डॉ. कुमार विश्वास ने कहा, अग्रवाल समाज में ऐसे घरों की संख्या सबसे ज्यादा है, जहां मां लक्ष्मी और मां सरस्वती की कृपा होती है.
भगवान के समक्ष प्रश्नों और इच्छाओं का पिटारा न ले जाएं
द्वितीय दिवस की कथा में डॉ. कुमार वेिशास द्वारा यह भी बताया गया कि अगर आप भगवान के समक्ष जाकर अपनी इच्छा मांगते हैं तो आप भगवान पर वेिशास नहीं करते क्योंकि अगर आप सच में भगवान को अपने माता-पिता या अपना गुरु मानते है तो आपको बोलने की जरुरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि वह आपके मन की सारी भावनाएं जानते हैं, आपको क्या चाहिए यह भी वे पहले से जानते हैं तो आपको बिना बोले वह चीज देंगे जिसकी आप कामना करते हो और जहां बोल कर अपनी इच्छाएं पूरी की जाएं वहां रिश्ता कैसा, वहां आस्था कैसी और वहां भक्ति कैसी? इसलिए जब भी भगवान के समक्ष जाएं तो नेक दिल और साफ मन से जाएं, प्रश्नों और इच्छाओं का पिटारा न ले जाएं.