नकली आंसू को मगरमच्छ के आंसू क्यों कहा जाता है? जानिए इस कहावत के पीछे का इतिहास

14 Feb 2023 16:01:37
 
 
crocodile
 
 
नई दिल्ली - घड़ियाली आंसू मत बहाओ या मगरमच्छ के आंसू मत बहाओ. बचपन में हम ऐसे कहावतें और मुहावरे सुन्नते आ रहे है, जिन्हें हम इस्तेमाल भी धड़ल्ले से करते हैं. इस कहावत का काफी इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन क्या आप जानते है इसके पीछे की वजह. किसी को झूठे आंसुओं से भ्रमित करने के लिए घड़ियाली आंसू कहावत का इस्तेमाल किया जाता है.
 
यूं तो हर प्राणी दुखी होने पर आंखों से आंसू छलकाता है, लेकिन मगरमच्छ और घड़ियाल के आंसू कुछ ज्यादा ही मशहूर हैं. धरती पर रहने वाली हर प्राणी की आंखों से दुख में आंसू छलकते हैं, लेकिन मगरमच्छ और घड़ियाल के आंसू कुछ ज्यादा ही मशहूर हैं. वैज्ञानिकों ने इंसान से लेकर जानवरों के आंसुओं पर रिसर्च किया, तो उन्हें पता चला कि सभी के आंसुओं में एक जैसे कैमिकल ही होते हैं और ये टियर डक्ट से बाहर आते हैं. एक खास ग्लैंड से आंसू निकलते हैं और इनमें मिनरल्स और प्रोटीन होते हैं.
 
अब बात मगरमच्छ या घड़ियाल के आंसू की, साल 2006 में न्यूरोलॉजिस्ट D Malcolm Shaner और ज़ूलॉजिस्ट Kent A Vliet ने अमेरिकन घड़ियालों पर रिसर्च की. उन्हें पानी से दूर रखकर सूखी जगह पर खाने के लिए कुछ दिया गया. जब उन्होंने खाना शुरू किया तो उनकी आंखों से आंसू निकलने लगे. इनकी आंखों से बुलबुले और आंसू की धार निकल पड़ी. बायो साइंस में इस स्टडी का नतीजा ये निकाला गया कि इनकी आंखों के आंसू किसी दुख का परिणाम नहीं हैं, बल्कि ये खाते वक्त आंसू बहाते ही हैं.
 
बता दें कि शरीरिक तौर पर घड़ियाल और मगरमच्छ के बीच थोड़ा अंतर होता है. घड़ियाल का मुंह आगे से थोड़ी गोलाई लिए होता है और यू जैसा लगता है. वहीं मगरमच्छ के मुंह का आकार शार्प यानि वी की तरह होता है. हालांकि खाते वक्त आंसू दोनों ही बहाते हैं. इनके आंसू तो मक्खियां पीती हैं क्योंकि ये मिनरल्स और प्रोटीन से भरे होते हैं.
 
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