मैना ने गरीबी में रहने के बावजूद राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर मुक्केबाजी में पदक जीते हैं और वह भारत के लिए ओलंपिक पदक जीतने का सपना देखती है, लेकिन उनकी राह आसान नहीं रही है. वह मां चित्रलेखा मुंडा के त्याग की बदाैलत ही अपने सपने साकार करने में सक्षम रही है.मैना ने बताया कि उसके प्रशिक्षण की सामग्रियाें काे खरीदने के लिए उसकाे मां काे अपनी गायाें काे बेचना पड़ा. उसे विश्वास है कि वह अपने और मां के सपने काे साकार करेगी.चित्रलेखा ने कहा, मैंने मैना काे कभी भी कमजाेर पड़ने नहीं दिया. हमेशा पूरी लगन से लक्ष्य हासिल करने की सलाह दी. जब वह अपना लक्ष्य हासिल कर लेगी तभी लड़कियां और यहां तक कि लड़के भी आपका अनुसरण करेंगे.उन्हाेंने कहा कि मैना की कहानी भारत में लड़कियाें की बढ़ती संख्या का सिर्फ एक उदाहरण है जाे विपरीत परिस्थितियाें काे पीछे छाेड़कर खेल में अपने सपनाें काे साकार कर रही हैं.
यूनिसेफ इंडिया के यू-ट्यूब चैनल ने पिछले साल बाल दिवस के अवसर पर मैना की धैर्य और लिंग के बारे में चुनाैतीपूर्ण सामाजिक मापदंडाें की कहानी दिखाई थी. वह वीडियाे में बताती है कि कैसे उसने लाेगाें की आलाेचना सही और कैसे उसने सामाजिक ताने-बाने का जवाब देने से इन्कार कर उस पर काबू पाया.आज भारत के बड़े शहराें और दूर-दराज के क्षेत्राें से महिलाएं क्रिकेट से लेकर फुटबाॅल, हाॅकी, बैडमिंटन, मुक्केबाजी, कुश्ती, कबड्डी के अलावा और भी बहुत कुछ क्षेत्राें में राज्य, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलाें में भाग ले रही हैं. ये लड़कियां परंपराओं, रीति- रिवाजाें और उससे उत्पन्न बाधाओं काे पीछे छाेड़कर अपना मुकाम हासिल कर रही हैं और कुछ महिलाएं ताे पहले ही खेल जगत में सेलिब्रिटी का दर्जा हासिल कर चुकी हैं. इसके अलावा कई महिलाएं खेल जगत में अपनी पहचान बनाने का प्रयास कर रही हैं और उनकी सफलता अक्सर उनके माता-पिता में विशेषकर उनकी माताओं के समर्थन पर निर्भर करती है.
इसी तरह पायल प्रजापति की कहानी भी है, जाे राजस्थान के अजमेर जिले के एक गांव की रहने वाली हैं, जहां अक्सर लड़कियाें की शादी कम उम्र में कर दी जाती है. पायल इन सबसे अलग है. वह गांव की पहली लड़की है जाे फुटबाॅल खेल रही है और और पायल ने सावित्री पवार और निशा रावत जैसे अन्य लाेगाें काे उनके नक्शेकदम पर चलने के लिए प्रेरित किया है. शादी करने के सामाजिक दबाव के बावजूद पायल और उसके दाेस्त राष्ट्रीय स्तर पर खेलने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं.पायल की मां संताेष प्रजापति ने उसके सपनाें काे साकार करने में पूरा साथ दिया. संताेष ने गर्व से कहा, पायल जहां भी जाना चाहती हैं उसे जाने की पूरी इजाजत है चाहे वह मणिपुर, जयपुर, लखनऊ, दिल्ली हाे. मैं चाहती हूं कि वह अपना मुकाम हासिल करने के लिए देश के हर छाेर की यात्रा करे.