पुणे, 28 मई (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
दिन-ब-दिन बढ़ते शहरीकरण की वजह से बहुत-सी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं. उन्हीं में से एक समस्या हाल ही में सामने आई है. पुणे में बढ़ते शहरीकरण की वजह से श्मशान भूमि अब बस्ती तक आ पहुंची है. इसका परिणाम लोगों के स्वास्थ पर होते हुए दिख रहा है. श्मशान भूमि के करीब रहने वाले लोगों को श्मशान भूमि से निकलने वाला धुआँ और जलते शवों की बदबू का सामना करना पड़ रहा है और साथ ही सांस लेने में तकलीफ जैसी नई समस्या निर्माण हुई है. बस्तियां पहुंचीं श्मशान घाट तक शहर में बहुत-सी बस्तियां हैं, जो श्मशान भूमि के करीब हैं. इनमे वैकुंठ श्मशान भूमि, वड़गांव बुद्रुक, पुणे स्टेशन स्थित कैलास श्मशान भूमि, हड़पसर, धनकवड़ी, कात्रज और येरवड़ा ये श्मशान घाट बस्तियों के करीब हैं. क्या इसका स्वास्थ्य पर परिणाम होता है? श्मशान भूमि करीब होने से निवासियों को स्वास्थ्य संबंधी खतरा हो सकता है. नागरिक बताते हैं कि, जलते शवों का धुआँ और बदबू से बच्चे और वृद्धों को सांस लेने में तकलीफ हो रही है.
150 किलो लकड़ी बचाने की योजना
श्मशान विभाग पुणे द्वारा श्मशान भूमि से होने वाले वायु प्रदूषण को रोकने के लिए एक नई नियंत्रण योजना बनाई गई है. शव को जलाने के बाद तैयार होनेवाली गैस पानी के स्क्रबर में इनलेट कराई जाती है. उसमें से कार्बन को सोख कर फिल्टर की गई गैस हवा में छोड़ी जाती है. इस अभिनव उपक्रम से करीब 150 किलो लकड़ी की बचत होती है.
20 साल पहले गांव के बाहर हुआ करती थी श्मशान भूमि
बीस से पच्चीस साल पहले श्मशान भूमि गांव के बाहर हुआ करती थी. पर अब पिछले कुछ सालों से बढ़ती आबादी और शहरीकरण की वजह से श्मशान भूमि बस्तियों तक आ पहुंची हैं और इसका परिणाम यह हो रहा है कि नागरिकों का स्वास्थ्य अब खतरे में है.