चिकित्सा काेई सामान्य व्यवसाय की तरह नहीं है .उसे र्सिफ किसअी टेक्नाेलाॅजी की तरह मत समझाे, क्याेंकि उसमें तुम्हें आदमियाें पर काम करना पड़ता है. जब तुम किसी व्यक्ति की चिकित्सा करते हाे ताे ऐसा नहीं कि तुम किसी मशीन काे ठीक कर रहे हाे. केवल जानकारी का सवाल नहीं है, यह प्रेम का गहरे से गहरा सवाल है.चिकित्सा के क्षेत्र में जाे लाेग इस तरह जाते हैं जैसे वे इंजीनियरिंग में जा रहे हाें वे लाेग डाॅक्टर बनने के लिए ठीक नहीं हैं- वे गलत लाेग हैं. जाे लाेग जीवन के प्रति प्रेम से भरे हुए नहीं हैं, वे चिकित्सा के व्यवसाय के लिए गलत हैं. उन्हेें किसी की काेई परवाह नहीं हाेगी, वे मनुष्याें के साथ मशीनाें जैसा व्यवहार करेंगे. वे मनुष्याें के साथ ऐसा व्यवहार करेंगे जैसा काेई माेटर मेकेनिक कार के साथ करता है. वे मरीज के प्राणाें काे ताे महसूस ही नहीं कर पायेंगे.
वे व्यक्ति का इलाज नहीं करेंगे, केवल उसके लक्षणाें का इलाज करेंगे. यह बात अलग है कि वे जाे भी करेंगे उसके प्रति वे पूरी तरह विश्वास से भरे हाेंगे- टेक्नीशियन काेअपने काम पर विश्वास हाेता ही है. लेकिन जब तुम मनुष्याें के साथ काम कर रहे हाे ताे तुम इतने निश्चित नहीं हाे सकते. वहां झिझक स्वाभाविक है. व्यक्ति कुछ भी करने से पहले दाे-तीन बार साेचता है क्याेंकि एक कीमती जीवन का सवाल है- जीवन जिसका सृजन नहीं किया जा सकता, जाे एक बार गया ताे बस गया. चिकित्सक आग से खेल रहा हाेता है. झिझक स्वाभाविक है.मरीज के प्रति श्रद्धा का भाव रखाे. और उसका इलाज करते हुए दिव्य ऊर्जा के माध्यम बन जाओ. डाक्टर ही मत बने रहाे, आराेग्य ऊर्जा के माध्यम बन जाओ.
बस वहां मरीज हाे और परमात्मा हाे- तुम प्रार्थना की एक दशा में आ जाओ और परमात्मा काे अपने से मरीज की ओर बहने दाे. मरीज ताे बीमार है, वह उस ऊर्जा से संबंधित नहीं हाे पा रहा. वह उस ऊर्जा से दूर पड़ गया है. वह स्वयं अपना उपचार करने की भाषा भूल गया है. वह असहाय अवस्था में है, उस पर तुम कुछ आराेपित नहीं कर सकते. जाे व्यक्ति स्वयं स्वस्थ हाे, वह यदि माध्यम बन जाये ताे बहुत सहयाेगी हाे सकता है. और यदि वह स्वस्थ व्यक्ति शरीर की संरचना के विषय में भी जानता हाे ताे उसकी भूमिका और भी महत्वपूर्ण हाे जाती है. क्याेंकि दिव्य ऊर्जा उसे सूक्ष्म इशारे दे सकती है. तुम्हें उन इशाराें काे डीकाेड भर करना है.
चिकित्सा के क्षेत्र में उतराे ताे ध्यान भी शुरू कराे.