पुणे, 18 जुलाई (आ.प्र.)
मानसून भले ही बाधा बन रहा है लेकिन महाराष्ट्र स्टेट रोड़ डेवलपमेंट कॉर्पो रेशन (एमएसआरडीसी) के इंजीनियरों को उम्मीद है कि मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे पर चुनौतीपूर्ण मिसिंग-लिंक प्रोजेक्ट दिसंबर 2023 या 2024 की शुरुआत तक पूरा हो जाएगा. लोनावला-खंडाला क्षेत्र में टाइगर वैली से 100 मीटर की ऊंचाई पर काम कर रहे इंजीनियरों ने कहा कि 640 मीटर लंबे केबल- स्टैड ब्रिज का 34 प्रतिशत काम पूरा चुका हैं और इस प्रोजेक्ट का 13 किमी लंबा सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा इस महीने नया मुकाम हासिल करेगा और पुल के एक अन्य प्रमुख हिस्से की पहली लोड टेस्टिंग पुणे-बाउंड कॉरिडोर पर होगी. केबलस्टेड ब्रिज पर काम कर रहे इंजीनियरों के लिए मानसून ने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है, बारिश के चलते काम कर रहे इंजीनियरों के काम में बाधा आ रही है.
यह हिस्सा घाट सेक्शन में आता है, जहां मानसून के दौरान प्रतिदिन 50 से 65 से भी ज्यादा बारिश होती है इसी पर एमएसआरडीसी के मुख्य इंजीनियर राजेश पाटिल ने कहा कि बरसात के दिनों में हम केवल 50 प्रतिशत समय ही इस हिस्से पर काम कर पाते हैं.जब बारिश 50 मिमी के आसपास होती है तो काम धीमी गति से ही सही लेकिन चलता रहता है लेकिन काम तब रुक जाता है जब बारिश 65 मिमी से अधिक हो जाती है. क्या हैं मिसिंग लिंक प्रोजेक्ट मिसिंग लिंक प्रोजेक्ट, मुंबई की ओर खोपोली से शुरू होता है. इसका बजट 6,600 करोड़ रुपये है . 60 मीटर ऊंचाई पर बना यह 840 मीटर लंबा पुल एक्सप्रेसवे को बाईपास करता है फिर 1.75 किमी लंबी सुरंग में प्रवेश करता है और फिर 100 फीट ऊंचाई वाले 640 मीटर लंबे केबलस्टेड ब्रिज पर प्रवेश करता है और उसके बाद 8.9 किमी लंबी एक और सुरंग में प्रवेश करता है.
सुरंग का एक हिस्सा जमीन से 170 फीट नीचे है और इसके ऊपर लोनावला झील है, जो सिंहगढ़ इंस्टीट्यूट के पास से निकलती है. जबकि मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे के साथ खोपोली और सिंहगढ़ संस्थान के बीच की दूरी 19 किमी है, जिसमें खड़ी ढलानें और घाट हैं और यह वाहनों की गतिसीमा पर प्रतिबंध लगाता है. यह मिसिंग लिंक प्रोजेक्ट 5.7 किमी दूरी को कम कर देगा और आवागमन समय में 20-30 मिनट की बचत करेगा. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि मोटरचालकों को घाटों से होकर गाड़ी नहीं चलानी पड़ेगी और वे 120 किमी प्रति घंटे तक की तेज गति से गाड़ी चला सकेंगे. मिसिंग लिंक प्रोजेक्ट के साथ एमएसआरडीसी का लक्ष्य मानसून के दौरान खंडाला क्षेत्र में सड़क के किनारे की पहाड़ियों से गिरने वाले पत्थरों के कारण होने वाले ट्रैफिक जाम एवं बारिश में हर साल होने वाली समस्या को हल करना है.
राजेश पाटिल ने आगे बताया कि एक बार डेक स्लैब की 9 मीटर लंबाई तैयार हो जाने पर, इसे केबलों के साथ खंभों से बांध दिया जाएगा. चूंकि मध्य-स्पैन की लंबाई 305 मीटर है, इसलिए केबल को दोनों ओर से 152 मीटर पर डेक स्लैब से बांधा जाएगा. एमएसआरडीसी डेक स्लैब पर काम शुरू करने और इस साल अगस्त तक चार में से कम से कम एक खंभा पूरा करने का लक्ष्य बना रहा है. जबकि पुल का काम 70 प्रतिशत पूरा हो चुका हैं. पुणे-बाउंड कॉरिडोर पर (स्पैन लोड) परीक्षण इस माह में किया जाएगा और यहां दो पुल हैं, एक पुणे-बाउंड कॉरिडोर के लिए और दूसरा मुंबई- बाउंड कॉरिडोर के लिए. पुणे कॉरिडोर लगभग पूरा हो चुका है वही मुंबई जाने वाले कॉरिडोर पर भी काम चल रहा है. वही कॉन्ट्रेक्टर , इंडियन रोड कांग्रेस के दिशा निर्देशों (गाइडलाइन) के अनुसार स्पैन लोड की जांच करने के लिए पुल पर से भारी भार ले जाने वाले वाहनों को चलाएंगे.
कितनी होंगी सुरंगें ?
10.5 किमी से अधिक लंबी दो सुरंगों के लिए खुदाई का काम पूरा हो चुका है और सतह और पाइपलाइन सहित फिनिशिंग का काम प्रगति पर है. (मिसिंग-लिंक)की भूमिगत सुरंग एशिया की सबसे चौड़ी सड़क सुरंग होगी, जिसकी चौड़ाई 23.75 मीटर है और इसमें आठ लेन के साथसाथ दोनों तरफ 2.5-मीटर चौड़ी आपातकालीन लेन होंगी.
केबलस्टेड ब्रिज की मुख्य बातें
एमएसआरडीसी के मुख्य इंजीनियर राजेश पाटिल ने बताया कि पुल की अधिकतम स्पैन लंबाई 305 मीटर है, जबकि दोनों तरफ के अंतिम-स्पैन की लंबाई 165 मीटर है. खंभे की अधिकतम ऊंचाई 170 मीटर है.यह पुल सह्याद्रि घाटी के ऊपर से जाता है. यह एक केबलस्टेड पुल है, इसलिए हमे इसमें केवल चार खंभ और आठ स्तंभों की आवश्यकता है.उन्होंने आगे बताया कि काम शुरू होने के बाद यह दूसरा मानसून है. पिछले मानसून में, नींव का काम शुरू किया गया था. वर्तमान में इस पुल के चार खंभों का निर्माण कार्य चल रहा है और औसतन 65 मीटर की ऊंचाई तक पहुंच गया है. एक बार जब खंभे 100 मीटर की ऊंचाई तक पहुंच जाएंगे तो डेक स्लैब का निर्माण शुरू हो जाएगा. यह डेक स्लैब वह सतह होती है जो लोगों को चलते यातायात का समर्थन करती है.
मिसिंग-लिंक को पूरा करने की अंतिम तारीख
इस साल सितंबर तक, एमएसआरडीसी ने पर्याप्त काम पूरा करने की योजना बनाई है और केवल केबलस्टेड पुल पर ही काम बचा है, जिसे जल्द से जल्द पूरा किया जाएगा. हालांकि पूरे प्रोजेक्ट की समय सीमा दिसंबर 2023 है, देरी की स्थिति में, अधिकारियों का कहना है कि वे किसी भी हालत में इस प्रोजेक्ट को 2024 की शुरुआत में पूरा करने में सक्षम होंगे.
इंजीनियरिंग का कमाल
केबलस्टेड ब्रिज को 70 मीटर प्रति सेकंड या 252 किमी प्रति घंटे तक की हवा की गति का सामना करने के लिए डिजाइन किया गया है.जो आमतौर पर विमान और बड़े पुल के डिजाइन के लिए किया जाता है, केबलस्टेड ब्रिज के डिजाइन को पूरा होने से पहले, एक प्रोटोटाइप को डेनमार्क के फोर्स इंस्टीट्यूट में (विंड टनल टेस्टिंग) पवन सुरंग परीक्षण के अधीन किया गया था.