अहिंसा से भी सम्यग्ज्ञान का महत्व ज्यादा

खानदेश मराठा भवन में आयोजित समारोह में रत्नसेनसूरीश्वरजी ने कहा

    21-Aug-2023
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chatrumas
 
 
निगड़ी, 20 अगस्त (आ.प्र.)
 
ज्ञान और अहिंसा में सर्वप्रथम ज्ञान का महत्त्व है . उसके बाद अहिंसा को स्थान दिया गया है, क्योंकि ज्ञान के बल से ही जीव और अजीव आदि तत्त्वों का बोध होगा, जिससे व्यवहार में शुद्धि आयेगी . ऐसे ज्ञान को धारण करने वाले ज्ञानी भी ज्ञान के समान पूजनीय हैं. यह बात खानदेश मराठाभवन में आयोजित धर्मसभा में रत्नसेनसूरीश्वरजी ने कहा. ज्ञान यह आत्मा का मूल स्वभाव है. ज्ञान को स्व-पर प्रकाशक कहा है. जिस प्रकार दीपक के प्रकाश से अन्य पदार्थ देखे जा सकते है, तो स्वयं दीपक भी देखा जा सकता है. दीपक के समान ज्ञान भी स्व पर प्रकाशक माना गया है.ज्ञान की आराधना के प्रभाव से आत्मा निर्मल ज्ञान प्राप्त करती है और ज्ञान की विराधना से अज्ञान के अंधकार में ही गोते खाती है.
 
आज जगत में जितना ज्ञान बढ़ा है, उसके साथ ज्ञान की आशातनाएँ भी बढ़ी हैं. खाते-खाते, झूठे मुंह टी. वी. आदि देखा जाता है, अखबार पढ़ा जाता है. लिखे हुए कपड़े पहने जाते हैं, अखबार आदि कागजों से मल मूत्र आदि स्वच्छ किये जाते हैं. इसके फलस्वरूप आत्मा ज्ञानावरणीय कर्मबंध करके दुर्गति के गर्त में डूब जाती है. सम्यग्ज्ञान से ही जीवों के स्वरूप का बोध होता है. जीव-अजीव के भेद को समझनेवाला ही जीवन में अहिंसा धर्म की सच्ची आराधना कर सकता है.जिसे जीव तत्त्व का सही बोध नहीं हैं, वह हिंसा-अहिंसा का विवेक कैसे पाएगा?
 
विशेष : प्रतिदिन सुबह 9 बजे खानदेश मराठा भवन में संतश्री के प्रवचन होंगे.