आजकल एविडेंस बेस्ड मेडिसिन के जमाने में डॉक्टरों को टेक्नोलॉजी से 90% तक मदद मिलती है

पुणे की प्रसिद्ध गायनेकोलॉजिस्ट व टीबी निर्मूलन में काम करनेवाली डॉ. वैजयंती पटवर्धन से खास मुलाकात

    09-Aug-2023
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पुणे की प्रसिद्ध गायनेकोलॉजिस्ट (प्रसूति विशेषज्ञ) डॉ. वैजयंती पटवर्धन अपने 30 साल की गायनैक प्रैक्टिस में अब तक 5000 डिलीवरी कर चुकी हैं. इसके साथ हाल ही में वे नेशनल ट्यूबरक्लोसिस एलिमिनेशन प्रोग्राम की स्टेट कमेटी में सह सचिव की भूमिका निभाते हुए अधिक से अधिक लोगों को टीबी से बचने के लिए जागरूक कर रही हैं. पेश है डॉ. वैजयंती पटवर्धन की खास ‘आज का आनंद' के लिए विशेष प्रतिनिधि रिद्धि शाह द्वारा ली गई मुलाकात के कुछ अंश...
 
   सवाल : आप कहां से हैं? आपका फैमिली बैकग्राउंड क्या है?
  
जवाब : मेरा जन्म मुंबई में हुआ था और मैंने अपनी पूरी पढ़ाई मुंबई में ही की है. शादी के बाद 1989 में मैं पुणे आ गई, तब से पुणे ही मेरी कर्मभूमि है. मेरी माताजी की मुंबई में कोचिंग क्लास हुआ करती थी और मेरे पिताजी सेल्स टैक्स में असिस्टेंट कमिश्नर थे. हालांकि वे दोनों अभी इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन मेरी छोटी बहन है जो अभी मुंबई में वैलनेस कंसलटेंट है. मेरे घर में मैं ही पहली डॉक्टर थी. मेरे पति डॉ. संजीव पटवर्धन एमएस जनरल सर्जन थे. उनका 51 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था. अब मेरी फैमिली में मेरे दो बेटे हैं और दो बहुएं हैं. मेरा बड़ा बेटा स्वप्निल पटवर्धन दुबई की एक इंटरनेशनल कंपनी में इंजीनियर है और मेरी बड़ी बहू एमटेक में जॉब करती है. मेरा छोटा बेटा डॉ. साकेत पटवर्धन एमडी रेडियोलॉजिस्ट है और पुणे के यूरोकुल और मेडिपॉइन्ट हॉस्पिटल में प्रैक्टिस करता है. मेरी छोटी बहू पुणे की एक कंपनी में कंपनी सेक्रेटरी है.
 
सवाल : मेडिकल की पढ़ाई में आपके जाने की क्या वजह थी और आपने गायनोकोलॉजी को ही अपना स्पेशलाइज्ड एरिया क्यों चुना?
 
 जवाब : स्कूल में मैं हमेशा प्रथम आती थी और मुझमें एक जूनून था कि मुझे समाज के प्रति कुछ अच्छा काम करना है. उस वक्त मेडिकल प्रोफेशन का स्वरुप डॉक्टर को भगवान मानने जैसा था. मैं दसवीं की बोर्ड रैंक में आई थी और बारहवीं में भी मैं प्रथम आई थी. 1989 में ही मैं टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज, मुंबई से एमडी पासआउट हो गई थी. जीवन में सामाजिक जिम्मेदारी के प्रति झुकाव और अभिरुचि के कारण मैंने गायनेकोलॉजी को चुना.
  
सवाल : गायनेक की प्रैक्टिस करते हुए आपको कितने साल हो गए? इतने सालेों की प्रैक्टिस में क्या बदलाव हुआ है?
 
 जवाब : मुझे 34 साल से ज्यादा समय हो गया, गायनैक की प्रैक्टिस करते हुए. पुणेसातारा रोड पर पटवर्धन हॉस्पिटल जो मेरा खुद का हॉस्पिटल है, वहां और पुणे के अलग-अलग हॉस्पिटल में भी मैं गायनैक की प्रैक्टिस करती हूं. मेडिकल वह प्रोफेशन है जो इंसान को अनुभव संपन्न कर देता है. मैंने अपने करियर में कम से कम 5000 हजार डिलीवरी की हैं. हर डिलीवरी बहुत कुछ सिखाती है, हर डिलीवरी अलग तरह से पेश आती है. खतरनाक स्थिति तब होती है जब डिलीवरी नॉर्मल दिखती है लेकिन होती नहीं, क्योंकि कभी-कभी ऐन वक्त पर बच्चे की कॉर्ड राउंड हो गई और ज्यादा टाइट हो गई या बच्चेा रोया नहीं तो हमें उस वक्त वॉर फुटिंग पर कोशिश करनी पड़ती है ताकि जच्चा और बच्चा दोनों सुरक्षित रहें. हर डिलीवरी का रिस्पांस अलगअलग होता है. आजकल सुविधाएं बहुत हैं और मेडिकल फील्ड में बहुत नई-नई तकनीक आ गई हैं. अभी टेक्नोलॉजी का जमाना है. 30 साल पहले मैंने प्रैक्टिस की थी या अभी जो प्रैक्टिस कर रही हूं, उसमें काफी बदलाव आए हैं. टेक्नोलॉजिकल अपग्रेडेशन, मुझ में आया बड़ा बदलाव है. लेकिन मेरी जनरेशन वाले डॉक्टर्स सिर्फ मॉनिटर रिपोर्ट या सोनोग्राफी रिपोर्ट पर निर्भर नहीं होते. हम लोग उसमें पहले हमारा क्लीनिकल जजमेंट करते हैं. मेरी जनरेशन के डॉक्टर्स क्लीनिकल सपोर्ट के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हैं ताकि डिलीवरी में रिस्क कम हो जाए. अब मैं काफी टेक्नोसेवी भी हो चुकी हूं. वहीं अब मैं पब्लिक हेल्थ में रिसर्च के साथ ज्यादा जुड़ गई हूं. मैं अपने पेशेंट्स को पेशेंट कम और ह्यूमन बीइंग की तरह ज्यादा समझती हूं. इसलिए मेरा जो अभी प्रोफेशन है, वह सिर्फ गायनैक तक ही लिमिटेड नहीं है. अब मैेंं एक पब्लिक हेल्थ काउंसलर भी हूं और मैंने हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर मैनेजमेंट, हेल्थ मिनिस्ट्री का डिप्लोमा कोर्स भी कम्पलीट किया है. फिर मैंने मास्टर्स इन पॉपुलेशन साइंस में मुकाम हासिल किया. आज मुझे पुणे में जितने लोग गायनेकोलॉजिस्ट के रूप में जानते हैं उतने ही लोग मुझे सोशल वर्कर के तौर पर भी जानते हैं और 2011 से मैं अपना खुद का काउंसिलिंग सेंटर भी चलाती हूं जिसका नाम हीलिंग स्पेस है जहां पर मैं लोगों को काउंसिलिंग देती हूं जिसकी टैगलाइन है ‘डोंट सफोकेट, स्पीक अप'.
 
 
सवाल : गायनैक की प्रैक्टिस में क्या-क्या चैलेंजेस रहते हैं? अधिकतर लेडी गायनैक को जेंट्स गायनैक के मुकाबले ज्यादा प्रिफर किया जाता है. तो आपको लेडी गायनैक होने का क्या फायदा मिला?
 
जवाब : 30 साल से समाज में काफी बदलाव आए हैं और वो भी खासकर महिलाओं में क्योंकि आजकल की महिलाएं काफी करियर ओरिएंटेड रहती हैं जो बहुत अच्छी बात है. मेरा यह मानना है कि सभी महिलाएं या सभी लोग वेल एजुकेटेड हो गए हैं, उसके कुछ नेगेटिव साइड इफेक्ट्स भी हैं जैसे कि आजकल स्ट्रेस बढ़ गया है जिसकी वजह से वहीं प्रोफेशनल लाइफ से पर्सनल लाइफ पर काफी प्रभाव पड़ रहा है. ट्रेंड के चलते आजकल की महिलाएं शादी देरी से कर रही हैं जिसकी वजह से बच्चे समय पर नहीं हो रहे हैं क्योंकि महिलाओं की फर्टिलिटी में प्रॉब्लम आ रही है. हमारा माइंडसेट अभी पूरा वेस्टर्न नहीं हुआ है तो उसे न होने दें. हर महिला या परिवार को लगता है, कम से कम एक बच्चा तो होना चाहिए लेकिन आजकल की महिलाएं तब जागती हैं जब करियर में या परिवार में कुछ डाउनफॉल आता है फिर उस वक्त आपकी बायोलॉजिकल बॉडी साथ नहीं देती और ओवरीज में एग्स कम हो जाते हैं, हॉर्मोन्स बदल जाते हैं, किसी को बढ़ती उम्र के चलते शुगर की प्रॉब्लम हो जाती है, या किसी को थायराइड हो जाता है, जिसके चलते महिला को गर्भ धारण करने में तकलीफों का सामना करना पड़ता है. सबसे बड़ा चैलेंज यह है कि आजकल कोई भी व्यक्ति अपनी खुद की हेल्थ की जिम्मेदारी खुद लेने को तैयार नहीं है. वहीं खाने के मामले में भी आजकल लोग फास्ट- फूड प्रिफर करते हैं जो हेल्थ के लिए 1% भी पोषित नहीं होता. एक लेडी गायनैक होने का मुझे या पेशेंट को यह फायदा मिलता है कि वह अपनी तकलीफें विस्तार से बता सकती हैं. एक औरत ही औरत से खुलकर बात कर सकती है जिससे मुझे उनका इलाज करने में आसानी हो जाती है. जेंट्स डॉक्टर देखकर वह कुछ बातें छुपा देती है या शर्म के मारे बता ही नहीं पाती.
 
 

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सवाल : पुणे में कुल कितने गायनेकोलॉजिस्ट हैं? उनमें जेंट्स और लेडीज का क्या अनुपात है?
 
जवाब : पुणे में लगभग 1000 क्वालिफाइड गायनेकोलॉजिस्ट हैं. पुणे में जेंट्स और लेडीज गायनेकोलॉजिस्ट का अनुपात लगभग सामान्य है और वह 50-50% है.
 
सवाल : मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया छोड़कर, पुणे में गायनेकोलॉजिस्ट डॉक्टरों की कोई अलग एसोसिएशन है क्या?
 
जवाब : जी हां, पुणे ओब्स्टेट्रिक एंड गायनैकोलॉजिकल सोसाइटी है (POGS). वहीं फोग्सी आपने सुना होगा जो फेडरेशन ऑफ ओब्स्टेट्रिक एंड गायनेकोलॉजिस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया (FOGSI) तो इस फोग्सी का जो पुणे चैप्टर है वह है (POGS). इस पीओजीएस की ही मैं मैनेजिंग काउंसिल मेंबर हूं. पुणे में कुल इस संगठन के 1000 मेंबर्स हैं.
 
सवाल : क्या मेडिकल लॉ के अनुसार सेक्स डिटरमिनेशन अपराध है? इस लॉ के लिए आपकी क्या राय है?
 
जवाब : प्री-कॉन्सेप्शन एंड प्री-नटल डायग्नोस्टिक टेक्निक्स (PCPNDT) एक्ट पर मैंने सेव गर्ल चाइल्ड, जेंडर इशू जैसे अभियान में मैं पिछले 20 सालों से काम कर कर रही हूं और मैं इस विषय में एक्टिविस्ट भी हूं. मैं इस कमेटी की सदस्य हूं. मैंने इसमें डिस्ट्रिक्ट कमेटी में काम किया है. 2005 से 2015 तक मैंने कार्पोरशन की एडवाइजरी कमेटी में काम किया है. यह लॉ देश के लिए काफी अच्छा लॉ है. इसका उद्देश्य काफी अच्छा है. यह एक कम्पलीट लॉ है जिसमें प्री-कॉन्सेप्शन से लेकर, एबॉर्शन तक कैसे इम्प्लीमेंट करना है, कैसे सजा देनी है, इस लॉ में पूरी तरह से प्रोविजन दिए हुए हैं. एक छोटी सी गलती अगर पेशेंट द्वारा फॉर्म भरने में हो गई तो डॉक्टर्स की मशीनों को सील कर दिया जाता है. इसलिए हॉस्पिटल द्वारा इन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखा जाना चाहिए.
 
सवाल : गायनैक में तकनीकों के मामले में क्या क्या-फर्क आए हैं?
 
जवाब : हर 5 साल में पूरी मेडिकल फील्ड में तकनीक के मामले में बदलाव आते रहते हैं. लेकिन आज की स्थिति में हर दिन, हर महीने नई टेक्नोलॉजीस आ रही हैं. गायनैक प्रैक्टिस की बात करूं तो सोनोग्राफी टेक्नोलॉजी एक बड़ा वरदान है क्योंकि बच्चे के अंग महिला के पेट में रहते हैं जिनको आंखों से देख पाना बहुत मुश्किल होता है. आजकल प्रेग्नेंट महिला की सोनोग्राफी में बच्चे के हर अंग अच्छे से दिख जाते हैं जिससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ हैं. पुराने दौर में किसी भी परेशानी के लिए पेट काटना पड़ता था और उसे ऑपरेट करना पड़ता था लेकिन अब मिनिमली इनवेसिव सर्जरी टेक्नोलॉजी से हम लोग छोटे से छोटे शीड से यूट्रस तक पहुंच सकते हैं, एंडोस्कोपी टेस्ट के माध्यम से. आजकल एविडेंस बेस्ड मेडिसिन का जमाना है जिससे हमें 90% टेक्नोलॉजी से मदद मिल जाती है.
 
सवाल : गायनैक होते हुए भी टीबी में काम करने का विचार आपको कैसे सूझा? इसमें काम करते हुए क्या आपने गायनैक की प्रैक्टिस जारी रखी है?
 
जवाब : इंडियन मेडिकल एसोसिएशन में मैंने जब से काम शुरू किया तो मुझे समाज की इस बीमारी के बारे में पता चला तो मैं इसमें एक्टिव हो गई 2010 से मैंने पब्लिक हेल्थ पर काम करना शुरू किया और 2022 से मैंने नेशनल ट्यूबरक्लोसिस एलिमिनेशन प्रोग्राम के लिए काम करना शुरू किया. इस प्रोग्राम के माध्यम से हमारे पीएम नरेंद्र मोदीजी का सपना है कि भारत को टीबी मुक्त देश बनाया जाए, इसलिए मुझे भी इसमें काम करने की इच्छा हुई. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन महाराष्ट्र की मैं सह सचिव के पद पर हूं. मेरा इस प्रोग्राम से जुड़ने का एक ही मकसद है कि मैं लोगों और प्राइवेट हॉस्पिटल्स को टीबी से बचाव के लिए जागरूक कर सकूं. इस पद के अंतर्गत मैं प्राइवेट हॉस्पिटल्स को भी टीबी इम्प्लीमेंटेशन के बारे में बताती हूं और साथ ही महाराष्ट्र सरकार को भी सुझाव देती हूं, जिससे टीबी एलिमिनेट हो जाए और समय की कमी को देखते हुए मैंने अपने गायनैक की प्रैक्टिस कर दी है लेकिन कंसल्टेंसी बंद नहीं की. मैं अपना ज्यादा से ज्यादा समय अब इस प्रोग्राम को देती हूं.
 
सवाल : क्या टीबी बीमारी जन्म से रहती है? इस बीमारी का मुख्य कारण क्या है? क्या टीबी पूरी तरह से खत्म की जा सकती है?
 
जवाब : नहीं, जन्मजात बीमारी नहीं है यह एक जंतु है जिसे मेडिकल टर्म में माइक्रोबैक्टीरियम कहा जाता है और यह अधिकतर हवा से फैलने वाली बीमारी है. टीबी हमारे नाखून और बाल को छोड़कर किसी भी ऑर्गन को हो सकती है. टीबी आंतों को भी हो सकती है, टीबी फेफड़ों को भी हो सकती है और जो फेफड़ों की टीबी होती है वह पेशेंट की सांस से वह जंतु हवा में जाता है. यह जब कोई टीबी पेशंट रास्ते पर थूंकता हैं तो उस जगह पर भी ये जंतु निवास कर जाते हैं और ये जंतु आसपास के लोगों में हवा के माध्यम से प्रवेश कर जाते हैं. लेकिन फिर भी लोग टीबी को हल्के में ही लेते हैं, जब तक इससे किसी की जान ना चली जाए. टीबी में भी समय पर सावधानी नहीं बरती तो वह जान पर भारी पड़ जाती है. इसलिए लोगों ने कोविड के पीरियड में जैसे मास्क और सैनिटाइजर से खुद को सुरक्षित रखा था, वैसे ही हमें टीबी के प्रिकॉशन लेकर खुद को सुरक्षित रखना है. अगर कोई टीबी पेशेंट है तो उसको मास्क का उपयोग हमेशा और अवश्य करना ही चाहिए जिससे आसपास के लोग सुरक्षित रहें.
 
टीबी के जंतु गंदगी में और स्लम एरिया और भीड़भाड़ वाली जगह, या घर की दीवारों पर अगर नमी है तो ज्यादा पाए जाते हैं. अगर टीबी का जंतु आपके अंदर गया भी तो आपको पता नहीं चलेगा क्योंकि वह एकदम से आप पर हावी नहीं होता. लेकिन यह जंतु तब हावी होगा जब आपकी इम्युनिटी वीक हो. ऐसा माना जाता है हमारे देश में हर तीसरे व्यक्ति के शरीर में टीबी के जंतु मौजूद होते हैं. शायद आपमें मुझमें टीबी के जंतु मौजूद हैं लेकिन हम टीबी पेशेंट नहीं हैं और तब तक नहीं है जब तक हमारी इम्युनिटी मजबूत है इसीलिए कभी भी अपनी इम्युनिटी कमजोर नहीं होने दें और टीबी के जंतुओं से बचने के लिए स्वच्छता का ध्यान रखें प्रिकॉशन लेते रहें और अपने खाने-पीने का अवश्य ध्यान रखें और हमेशा अपनी इम्युनिटी बनाए रखें.
 
बात करें टीबी को जड़ से खत्म करनी की तो मोदीजी ने जैसा टारगेट बनाया है टीबी एलिमिनेशन उसके कुछ क्राइटेरिया हैं जबसे पहला क्राइटेरिया न्यू केसेस रिडमशन मतलब जो नए केसेस बन रहे हैं उसको हमें खत्म करना है. 80% तक नए केसेस को रिड्यूस करना है. यह बीमारी जन्मभर वाली बीमारी नहीं है. अगर आपको सेंसिटिव टीबी है तो 6 महीने के सही इलाज से इस बीमारी को खत्म किया जा सकता है. लोगों की इस बीमारी के चलते मृत्यु न हो यह इस एलिमिनेशन टारगेट का दूसरा क्राइटेरिया है. तीसरा उद्देश्य यही है कि कोई भी पेशेंट अपनी इस बीमारी के चलते अपनी जेब से पैसा न दे.
 
सवाल : क्या टीबी एलिमिनेशन के लिए भारत सरकार ने कोई कमेटी बनाई है?
 
जवाब : हां, इसके लिए सरकार का एक पूरा डिपार्टमेंट है, वह है नेशनल टीबी एलिमिनेशन प्रोग्राम (एनटीईपी), यह सेंट्रल गवर्नमेंट का डिपार्टमेंट है जो मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर के तहत आता है और इसके यूनिट्स जो हैं वो हर स्टेट में स्टेट टीबी सेल के नाम से जाने जाते हैं. वहीं महाराष्ट्र की बात करें तो महाराष्ट्र के 80 जिले टीबी मैनेजमेंट के लिए बनाए गए हैं. जबकि एडमिनिस्ट्रेटिव डिस्ट्रिक्ट्स हमारे सिर्फ 36 ही हैं. लेकिन टीबी के इलाज के लिए महाराष्ट्र में 80 जिले बनाए गए हैं. हर स्टेट में टीबी एलिमिनेशन कमेटी बनाई गई है और यहां सभी काम करने वाले गवर्नमेंट द्वारा पेड एम्प्लॉइज हैं.
 
सवाल : आप इस कमेटी में कितने सालों से हैं? यह कमेटी क्या काम करती है?
 
जवाब : जनवरी 2022 से मैंने इस कमेटी को ज्वाइन किया था तबसे मैं इस कमेटी से जुड़ीं हूं. यह कमेटी स्टेट कमेटी को टीबी के नोटिफिकेशन प्रोवाइड करती है कि आपके एरिया में इतने टीबी पेशेंट होने की संभावना है तो हर हफ्ते स्टेट कमेटी द्वारा रिव्यू लिए जाते हैं. फिर हमारे द्वारा उन पेशेंट्स को टेक्निकल सपोर्ट दिया जाता है और पूरा गाइड किया जाता है.
 
सवाल : क्या भारत में टीबी पूरी तरह से एलिमिनेट हो सकती है अगर हां तो कब तक?
 
जवाब : 2025 तक टीबी का प्रमाण कम हो जाएगा लेकिन मुझे लगता है 2035 तक यह पूरी तरह खत्म हो जाएगी. इस बीमारी में अभी समाज की सहभागिता काफी कम है. पेशेंट को खुद से समझना चाहिए कि मुझे 2 हफ्ते से लगातार खांसी आ रही है तो मुझे जांच करवानी चाहिए. अधिकतर लोग इलाज आधा छोड़ देते हैं इसका परिणाम यह होता है कि उनको रेजिस्टेंस टीबी हो जाती है जिसका इलाज दो साल तक चलता हैं. उसके बाद रेजिस्टेंस टीबी में सक्सेस रेट भी कम हो जाता है, मरने के चान्सेस बढ़ जाते हैं. टीबी के अधिकतर केसेस 15 से 50 उम्र के लोगों में पाए जाते हैं. 15 से 50 उम्र काफी प्रोडक्टिव उम्र रहती है तो इस उम्र में टीबी के कारण देश की प्रोडक्टिविटी पर भी असर पड़ता है. अगर किसी को टीबी हुई है या टीबी के लक्षण दिखें तो उस इंसान को कम से कम 15 दिन के अंदर इलाज शुरू कर देना चाहिए. शुरूआती टीबी को 6 महीनों में खत्म किया जा सकता है. वहीं अगर कोई गर्भवती महिला को टीबी होती है तो यह उसके साथ-साथ उसके बच्चे के लिए हानिकारक साबित हो सकती है.
 
सवाल : क्या टीबी की दवाइयां महंगी आती हैं? क्या सरकार द्वारा टीबी की दवाइयां मुफ्त उपलब्ध कराई जाती हैं?
 
जवाब : टीबी (ट्यूबरकुलोसिस) 2 प्रकार की होती है ड्रग सेंसिटिव और ड्रग रेसिस्टेंट. ड्रग सेंसिटिव टीबी साधारण दवाइयों से ठीक हो सकती है. अगर आप इसकी दवाइयां खरीदते हैं तो इसका खर्च 15000 रुपए तक आता है और इसके लिए मात्र चार दवाइयां 6 महीने तक पेशेंट को खानी पड़ती हैं, जिसके बाद पेशेंट पूरी तरह से टीबी मुक्त हो जाता है. वहीं पेशेंट को अगर ड्रग रेसिस्टेंट टीबी हो गई तो उसका इलाज काफी महंगा होता है. अगर आप प्राइवेट हॉस्पिटल से अपना इलाज करवा रहे हैं तो आप मानकर यह चलिए, इसका खर्च आपको लाखों रुपए तक जाएगा. उसके लिए दवाई अलग-अलग ग्रुप की होती हैं. ड्रग रेसिस्टेंट टीबी का प्रमाण देश में 5 प्रतिशत है जो दुनिया में सर्वाधिक है. हर जिले में टीबी स्टेट कमेटी रहती है जो पेशेंट को इलाज करवाने में मदद करती है. वहीं सरकार टीबी पेशेंट के लिए मुफ्त दवाइयां, मुफ्त इलाज उपलब्ध कराती है और टीबी का सही इलाज प्राइवेट हॉस्पिटल से अच्छा सरकारी हॉस्पिटल में किया जाता है. सरकार उन पेशेंट्स को हर महीने 500 रुपए भी देती है, जब तक उनका टीबी का इलाज चलता रहता है.
 
सवाल : मेडिकल प्रोफेशन में आने वाले नए छात्रों के लिए आपकी क्या सलाह है?
 
जवाब : छात्रों के लिए बस यही सलाह है कि अभी मेडिकल प्रोफेशन का स्वरूप बहुत बदल गया है. आपको इस फील्ड में बहुत डेडिकेशन से काम करना होगा, फोकस बनाए रखना होगा. नए बनने वाले डॉक्टर्स को जन्म और मृत्यु के बीच बैलेंस करना होगा. आजकल बच्चे इस फील्ड में पैसा देखकर आ जाते हैं लेकिन इस फील्ड को पैसों के लिए न चुनकर किसी की जान बचाने के लिए चुनना चाहिए