भारतीय संस्कृति में धार्मिक व पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीगणेशजी की अपार महिमा है. समस्त देवताओं में श्रीगणेशजी की पूजा ही सर्वोपरि है. सनातन हिन्दू धर्मावलंबी अपने समस्त कार्य श्रीगणेश पूजन से ही प्रारंभ करते हैं. गौरीनंदन श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना यूं तो कभी भी की जा सकती है, लेकिन चतुर्थी तिथि के दिन की गई पूजा विशेष फलदायी होती है.
सर्वविघ्नविनाशक अनन्तगुण विभूषित बुद्धिप्रदायक सुखदाता मंगलमूर्ति प्रथम पूज्यदेव भगवान श्रीगणेशजी के जन्मोत्सव का महापर्व उमंग व उल्लास के साथ मनाने की धार्मिक मान्यता है. गणेश पुराण के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन श्रीगणेशजी का प्राकट्य हुआ था. मध्याह्न के समय रहने वाली चतुर्थी तिथि के दिन जन्मोत्सव मनाया जाता है. शुक्लपक्ष के भाद्रपद की चतुर्थी तिथि को ‘ढेला चौथ' या ‘पत्थर चौथ' के नाम से भी जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन चन्द्रदर्शन का निषेध है. इस दिन चन्द्रदर्शन नहीं किया जाता है.
यदि भूलवश चन्द्रदर्शन हो भी जाए तो आरोप-प्रत्यारोप व मिथ्या कलंक लगने की संभावना रहती है. ग्रन्थों के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण पर स्यमन्तकमणि की चोरी का आरोप लगा था. चन्द्रदर्शन के दोष के शमन के लिए श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कन्धके सत्तावनवें अध्याय में वर्णित स्यमन्तकहरण के प्रसंग का कथन व श्रवण करना चाहिए. अथवा ‘ये श्रुण्वन्ति आख्यानम् स्यमन्तक मनियकम् | चन्द्रस्य चरितं सर्वं तेषां दोषो ना जायते॥' इस मंत्र का जप अधिक से अधिक संख्या में करने से इस दोष में कमी आती है.
प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि वरदवैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी एवं सिद्ध वैनायक श्रीगणेश चतुर्थी के नाम जानी जाती है. इस भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि सितंबर, मंगलवार को पड़ रही है. चतुर्थी तिथि 18 सितंबर, सोमवार को दिन में 12 बजकर 40 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 19 सितंबर, मंगलवार को दिन में 1 बजकर 44 मिनट तक रहेगी. स्वाती नक्षत्र 18 सितंबर, सोमवार को दिन में 12 बजकर 08 मिनट से 19 सितंबर, मंगलवार को दिन में 1 बजकर 48 मिनट तक रहेगा. मध्याह्न व्यापिनी चतुर्थी तिथि तिथि का मान 19 सितंबर, मंगलवार को होने से व्रत उपवास इसी दिन रखा जाएगा. श्रीगणेशजी का दर्शनपूजन करके व्रत रखने से जीवन में सुख-सौभाग्य की अभिवृद्धि होती है, साथ ही जीवन में मंगल कल्याण होता रहता है.
पूजा का विधान :
ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रतकर्ता को अपने दैनिक नित्य कृत्यों से निवृत्त होकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए. तत्पश्चात् पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गंध व कुश लेकर श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए. श्रीगणेशजी को दूर्वा एवं मोदक अति प्रिय है, जिनसे श्रीघणेश जी शीघ्र प्रसन्न होते हैं. श्रीगणेशजी का नयनाभिराम मनमोहक व अलौकिक श्रृंगार करके उन्हें दूर्वा एवं दूर्वा की माला, मोदक (लड्डू), अन्य मिष्ठान्न ऋतुफल र्पत करने चाहिए. विशेष तौर पर देशी घी एवं मेवे से बने मोदक य अर्पित किए जाने चाहिए.
- ज्योतिर्विद् श्री विमल जैन