शिवाजी महाराज को स्वराज्य की प्रेरक राजमाता जीजाबाई

राष्ट्र चेतना के आधुनिक प्रणेता स्वामी विवेकानंद तथा राजमाता जीजाबाई का जन्म एक ही दिन

    12-Jan-2024
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jija
 
 
छत्रपति शिवाजी महाराज को स्वराज्य की प्रेरणा देने वालीं तथा समय-समय पर उनका मार्गदर्शन करने वालीं राजमाता जीजाबाई, राष्ट्रप्रेरणा की अक्षय स्रोत हैं. यह अद्भुत संयोग है कि राष्ट्र चेतना के आधुनिक प्रणेता कहे जाने वाले स्वामी विवेकानंद तथा राजमाता जीजाबाई का जन्म, एक ही दिन हुआ था. हमें राष्ट्रीय युवा दिवस के उपलक्ष्य पर, इन दोनों ही विभूतियों के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए.
 
स्वामी विवेकानंद, राष्ट्र चेतना को जागृत करने वाले वे आधुनिक ऋषि हैं जिन्होंने पूरे वेिश में डंके की चोट पर कहा कि भारत, वेिशगुरु बनने योग्य है. उन्होंने प्रगाढ़ देशभक्ति एवं धर्म की ठोस नींव पर, अध्यात्म की स्थापना की. छत्रपति शिवाजी महाराज को स्वराज्य की प्रेरणा देकर, समय-समय पर उनका मार्गदर्शन करने वालीं राजमाता जीजाबाई के जीवन का भी यही संदेश है. राजमाता जीजाबाई ने छत्रपति शिवाजी महाराज को, अराजकता की पृष्ठभूमि में हिंदू स्वराज्य की स्थापना करने हेतु ईमानदारी एवं सदाचार की घुट्टी पिलाई थी. उन्होंने यत्र-तत्र बिखरे देशबंधुओं को एकता के सूत्र में पिरोकर, स्वराज के लिए जन-आंदोलन करने का पाठ पढ़ाया. ऐसी राजमाता जीजाबाई की जीवनी अत्यंत प्रेरक है!
 
यह जीजाबाई का दृढ़ निश्चय ही था जिसने शिवाजी महाराज को 'छत्रपति' बनाया. इसके फलस्वरुप समाज इस पराजित मानसिकता से बाहर निकलने में सक्षम हुआ कि कोई हिंदू, राजा बन ही नहीं सकता. जीजाबाई की प्रेरणा से आगे चलकर न केवल मराठा साम्राज्य स्थापित हुआ अपितु शिवाजी महाराज के पराक्रम ने, छत्रसाल बुंदेला से लेकर सुदूर असम में लाचित बोड़फुकन आदि को भी स्वराज्य की प्रेरणा लेने पर विवश कर दिया. निस्संदेह इन सबकी प्रेरणास्रोत जीजाबाई ही थीं. जीजाबाई केवल इतने पर ही संतुष्ट नहीं हुईं वरन उन्होंने शिवाजी महाराज की कई मंत्रणाओं एवं विचार- विमर्श में भी अपना सक्रिय योगदान दिया. उन्होंने, शिवाजी महाराज के आगरा में बंदी रहने के दौरान स्वराज का पूर्ण उत्तरदायित्व अपने कंधों पर ले लिया. सामान्यतः ऐसा माना जाता है कि बालक को सदाचार एवं प्रेम की धरोहर अपनी माँ से तथा कार्य करने की प्रेरणा अपने पिता से मिलती है. हालांकि छत्रपति शिवाजी के संदर्भ में इन दोनों ही भूमिकाओं को, जीजाबाई ने बड़ी ही सक्षमता से निभाया.
 
अब उनकी इस धरोहर को जीवित रखने का कार्य हमें करना है. 'राजमाता जिजाऊ गौरव पुरस्कार प्रदान सोहळा' (राजमाता जीजाबाई गौरव पुरस्कार प्रदान समारोह), जीजामाता की इसी धरोहर को जीवित रखने के लिए किये जा रहे प्रयासों का एक अंश है. हमारी 'माय होम इंडिया' संस्था की स्थापना को 18 वर्ष हो चुके हैं. इस संस्था ने अपने कार्य का आरंभ, पूर्वोत्तर भारत से शिक्षा के लिए शेष भारत के शहरों में आने वाले विद्यार्थियों को समय-समय पर सहायता का हाथ आगे बढ़ाने से किया है. हमने निरंतर इस बात की आवश्यकता अनुभव की है कि पूर्वोत्तर भारत की प्रचुर भौगोलिक एवं सांस्कृतिक विविधता तथा विशिष्टताओं से, शेष भारत को परिचित करवाया जाए चाहिए.
 
 फलस्वरुप हमने ऐसे अभियान चलाए जिनसे लोगों को पूर्वोत्तर भारत के जनजातीय समाज की विशेषताओं की जानकारी हो तथा उनके प्रति गलतफहमियों को दूर किया जा सके. अब तक विभिन्न माध्यमों से, 10,000 से भी अधिक छोटे-बड़े कार्यक्रमों के द्वारा, देश भर के करोड़ों नागरिकों तक द्वारा यह जानकारी संप्रेषित की जा चुकी है. संस्था द्वारा ऐसे अभियान चलाए गए जिसमें गणेशोत्सव, दशहरा, दीपावली, होली आदि त्यौहार मनाने के लिए पूर्वोत्तर भारत के अपने इन बंधु-भगिनियों को सम्मिलित किया गया. इसके फलस्वरुप 'फ्रेटर्निटी कप फुटबॉल प्रतियोगिता' जैसे कार्यक्रमों का सूत्रपात हुआ. 'माय होम इंडिया' ने पिछले 8 वर्षों में, पूर्वोत्तर भारत के लगभग 500 तथा देश भर के 3,000 से भी अधिक बालकों को बालगृह/ सुधारगृह के बंधन से मुक्त कराकर उन्हें उनके पालकों तक पहुँचाने का सराहनीय कार्य किया है.
                                                                                       - सुनील देवधर (लेखक 'माय होम इंडिया' संस्था के संस्थापक)