रवींद्र धंगेकर के सामने प्रदर्शन बरकरार रखने की चुनौती

कसबा विधानसभा क्षेत्र में हेमंत रासने या ब्राह्मण समाज को प्रतिनिधित्व देने को लेकर असमंजस

    14-Oct-2024
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  पुणे, 13 अक्टूबर (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
 
भाजपा को लोकसभा चुनाव में कसबा विधानसभा क्षेत्र में अच्छी बढ़त मिली है, जबकि, वह पिछले साल उपचुनाव में हार गई थी. इससे भाजपा से दावेदारों की संख्या बढ़ गई है. इच्छुकों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण, आगामी चुनाव में भाजपा से किसे उम्मीदवारी मिलेगी, इस पर फिलहाल अनिश्चितता बनी हुई है. भाजपा के सामने बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि, हेमंत रासने या ब्राह्मण समाज के प्रतिनिधि को उम्मीदवारी देने की बड़ी चुनौती. दूसरी ओर, विधानसभा उपचुनाव में जाइंट किलर बने कांग्रेस के रवींद्र धंगेकर को लोकसभा में हार के बाद विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन को बरकरार रखने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. कसबा निर्वाचन क्षेत्र से लगातार 5 बार विधानसभा जाने वाले गिरीश बापट के पिछले लोकसभा चुनाव जीतने के बाद पूर्व महापौर मुक्ता तिलक को 2019 में कसबा निर्वाचन क्षेत्र से उम्मीदवारी मिली थी. उन्होंने कांग्रेस के मौजूदा शहराध्यक्ष अरविंद शिंदे को बड़े अंतर से हराया था. पहले मुक्ता तिलक और फिर गिरीश बापट की मृत्यु के बाद पिछले साल मार्च में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के रवींद्र धंगेकर ने भाजपा उम्मीदवार हेमंत रासने को हराया था. धंगेकर की जीत से कांग्रेस और बाद में महाविकास आघाड़ी को अच्छा बढ़ावा मिला. धंगेकर की सफलता के कारण पार्टी ने उन्हें हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया. लेकिन इस चुनाव के बाद सियासी गणित बदल गया है. विधानसभा उपचुनाव में महाविकास आघाड़ी में राकांपा के एकजुट होने का भी धंगेकर को फायदा मिला. लेकिन, इस साल अजित पवार के नेतृत्व में एनसीपी के एक धड़े के बाहर निकलने के कारण निर्वाचन क्षेत्र में महाविकास आघाड़ी की ताकत कुछ कम हुई है. इसके साथ ही देखा गया कि कई लोगों ने शासकों के खिलाफ अपनी नाराजगी व्यक्त करने और उपचुनाव के नतीजे के कारण राज्य में सत्ता में कोई बदलाव नहीं होने के कारण शिवसेना टूटने को लेकर नाराजगी को व्यक्त करने के लिए धंगेकर को वोट दिया. धंगेकर के लिए इस गणित को फिर से सुलझाना अहम होगा. विधायक बनने के बाद धंगेकर ने इनकम टैक्स में 40 फीसदी छूट का मुद्दा उठाया था. वह कुख्यात ड्रग तस्कर ललित पाटिल और कल्याणीनगर में पोर्श दुर्घटना मामले को उठाने के लिए भी दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गए हैं. धंगेकर के साथ-साथ कांग्रेस से पूर्व महापौर कमल वैश्य, पूर्व नगरसेवक मुख्तार शेख और आघाड़ी में शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट के पूर्व नगरसेवक विशाल धनवड़े ने भी इस क्षेत्र से उम्मीदवारी के लिए प्रयास शुरू कर दिए हैं. लोकसभा में मिले बहुमत के दम पर बीजेपी ने वापसी की है. उपचुनाव में हार के बाद हेमंत रासने ने क्षेत्र में जनसंपर्क बढ़ाने पर ज्यादा जोर दिया है. निर्वाचन क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर संपर्क कार्यालय खोले गए हैं और विभिन्न सामाजिक समूहों को जोड़ने का प्रयास किया गया है. उन्हें बीजेपी शहराध्यक्ष धीरज घाटे से कड़ी चुनौती मिल रही है. ऐसा भी देखा जा रहा है कि इन दोनों के बीच उम्मीदवारी को लेकर जोरदार पोस्टर वार भी चल रहा है. घाटे कट्टर हिंदूवाद की भूमिका पेश करते रहे हैं और उनकी फैन फॉलोइंग भी बहुत बड़ी है. वहीं, मुक्ता तिलक के बेटे कुणाल तिलक और दिवंगत सांसद गिरीश बापट की स्नुषा स्वरदा बापट ने भी इस निर्वाचन क्षेत्र से उम्मीदवारी पाने के लिए प्रयास शुरू कर दिए हैं.
 
 शहर में ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या काफी ज्यादा
 
देखा गया है कि पुणे शहर में ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या काफी है और ये मतदाता हमेशा बीजेपी के साथ खड़े रहे हैं. इसलिए देखा गया है कि भाजपा ने जानबूझकर इस समाज को लोकसभा, विधानसभा और मनपा में भी मौका दिया है. लेकिन सांसद गिरीश बापट और मुक्ता तिलक की मृत्यु के बाद लोकसभा और विधानसभा में ब्राह्मण समाज का प्रतिनिधित्व शून्य हो गया. इसीलिए भाजपा ने मौजूदा विधायक प्रो. मेधा कुलकर्णी को इस साल की लोकसभा से पहले राज्यसभा में नियुक्त कर पूर्व मेयर मुरलीधर मोहोल को लोकसभा के मैदान में लाकर इस समाज के गुस्से को कम किया. लेकिन बीजेपी के लिए विधानसभा में ब्राह्मण समाज को साधने की चुनौती रहेगी. पश्चिमी महाराष्ट्र से बीजेपी ने अब तक पुणे और सांगली में ब्राह्मण समाज का प्रतिनिधित्व किया है. सांगली से लगातार दो बार जीत हासिल करने वाले सुधीर गाडगिल ने ऐलान किया है कि वह इस साल विधानसभा नहीं लड़ेंगे. चूंकि उस सीट के लिए ब्राह्मण उम्मीदवार मिलना फिलहाल मुश्किल है, इसलिए पुणे में बीजेपी पर हर हाल में ब्राह्मण समाज के प्रतिनिधित्व करने का दबाव होगा. चूंकि कसबा निर्वाचन क्षेत्र से ब्राह्मण समाज से तीन इच्छुक हैं, इसलिए रासने को उम्मीदवारी के लिए और ब्राह्मण समाज के वोटों को बनाए रखने के लिए दोहरी मेहनत करनी होगी.
 
 
मनसे उम्मीदवार हुआ तो धंगकर को नुकसान !
 
महाविकास आघाड़ी में शामिल शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट ने भी कसबा विधानसभा क्षेत्र के लिए प्रयास शुरू कर दिए हैं. शिवसेना नगरसेवक विशाल धनवड़े ने इस निर्वाचन क्षेत्र से उम्मीदवारी के लिए अपने प्रयास शुरू कर दिए हैं. जबकि मनसे के वरिष्ठ कार्यकर्ता एड. गणेश सातपुते ने भी इसी विधानसभा क्षेत्र से जांच शुरू कर दी है. उपचुनाव में धंगेकर मनसे के वोट खींचने में सफल रहे. लेकिन इस साल होने वाले चुनाव में अगर मनसे का उम्मीदवार आता है तो धंगेकर को नुकसान हो सकता है.