सेस के मुद्दे पर रविवार काे राज्य के व्यापारियों की बैठक

राज्य सरकार द्वारा अध्यादेश वापस लेने से व्यापारी आक्रामक : व्यापारियों के हितों पर होगी बैठक

    18-Oct-2024
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गुलटेकड़ी, 17 अक्टूबर (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)

महाराष्ट्र कृषि उपज बाजार समिति में व्यवसायिक और जनता के हित में सेस कम करने का फैसला किया था. लेकिन, सरकार ने इस फैसले को वापस लेकर व्यापारियों के साथ-साथ जनता के साथ भी बड़ा धोखा किया है, ऐसा व्यापारियों का मानना है. ऐसे में महाराष्ट्र में व्यापारियों की क्या भूमिका होनी चाहिए..? इस विषय पर विचार करने के लिए रविवार (20 अक्टूबर) सुबह 11 बजे महाराष्ट्र राज्य एक्शन कमेटी के पदाधिकारियों की बैठक आयोजित की गई है. द पूना मर्चेंट्स चैंबर में होने वाली इस बैठक में राज्य के व्यापारी संगठनों के पदाधिकारी शामिल होंगे. बता दें कि इस मुद्दे पर 26 अगस्त को उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बैठक की थी. इस एक्शन कमेटी की उच्च स्तरीय बैठक में विपणन विभाग को व्यापारियों, किसानों के प्रतिनिधियों और सरकारी अधिकारियों की एक कमेटी बनाकर 1 महीने के भीतर निर्णय लेने का आदेश दिया गया था. लेकिन, लगातार फॉलोअप के बाद भी इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं हो सकी. अचरज की बात यह हुई के चार दिन पहले मार्केट फीस घटाने के फैसले की घोषणा की गई थी. लेकिन, महज चौबीस घंटे में ही वो फैसला पलट दिया गया. इससे व्यापारियों में काफी आक्रोश है. बैठक का उद्देश्य इस नाराजगी को सझमना और व्यापारियों की भावनाओं को ध्यान में रखकर भविष्य की दिशा तय करना है. बताया गया कि विदेश से आयातित माल पर भी मण्डी समिति द्वारा सेस लगाया जा रहा है, जिसका किसानों और मण्डी समिति से कोई सम्बन्ध नहीं है. इससे ग्राहकों पर अनावश्यक बोझ पड़ रहा है. बाजार कमेटी मार्केटयार्ड परिसर के बाहर कोई सुविधा उपलब्ध नहीं कराती है. इसलिए अनुचित उपकर लगाने पर तत्काल रोक लगाई जाए. दि पूना मर्चेंट्स चैंबर के अध्यक्ष रायकुमार नहार ने बताया कि एक्शन कमेटी के माध्यम से सभी उम्मीदवारों को मांग का विवरण दिया जाएगा कि किसी भी कर का बोझ अंतिम उपभोक्ताओं पर पड़ता है. उन्होंने कहा सरकार को कई बातों को ध्यान में रखते हुए बाजार शुल्क (सेस) खत्म करना चाहिए और पहले से ही महंगाई की मार झेल रहे उपभोक्ताओं को राहत देनी चाहिए. व्यापारियों का कहना है कि यह परिवर्तन उन पारंपरिक व्यवसायों को पुनर्जीवित करने और बनाए रखने के लिए आवश्यक है जो राज्य और देश में बड़ी संख्या में अकुशल श्रमिकों को रोजगार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जबकि भारत का लक्ष्य अपनी अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ाना है.  
 
कृषि उपज पर दोबारा सेस लगाना गलत गौरतलब है कि बाजार समिति अधिनियम के बाद अस्तित्व में आए पैकिंग अधिनियम, एफएसएसएआई अधिनियम, वजन और माप अधिनियम आदि के प्रावधानों ने बाजार परिसर में पैक किए गए सामानों की बिक्री को कानून द्वारा अनिवार्य बना दिया है. व्यापारी बताते हैं कि किसानों के यहां से आने वाली कृषि उपज को विभिन्न स्थानों पर साफ-सुथरा और प्रसंस्कृत कर आकर्षक पैकेजिंग में उपलब्ध कराया जाता है. इस पर दोबारा सेस लगाना गलत है. कई मण्डी समितियों से निर्वाचित निदेशक मंडल के स्थान पर प्रशासक नियुक्त कर मण्डी समिति का कामकाज क्यों संचालित किया जा रहा है..? सरकार को भी इस बारे में सोचना जरूरी है.
 
क्या है व्यापारियों के विरोध का कारण ?
-साल 2017 में जीएसटी लागू करते समय सरकार ने एक देश, एक टैक्स की घोषणा की थी. इसके बावजूद भी बाजार समिति सेस लगाया जा रहा है.
-अनाज और खाद्य पदार्थों पर जीएसटी लागू होने के बाद कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां आईं. परिणामस्वरूप, बाजार समितियों के बीच पारंपरिक व्यापार में तेजी से गिरावट आई है.
-अनाज, खाद्यान्न और प्रसंस्कृत वस्तुओं पर 5% जीएसटी लगाया जाता है. इसका 2.5 फीसदी हिस्सा राज्य सरकार को मिल रहा है.
-अधिकांश बाजार समितियों में आय का 50 फीसदी से अधिक हिस्सा स्थापना और वेतन पर खर्च हो जाता है.
-बाजार कमिटी द्वारा एक ही वस्तु पर बार-बार मण्डी शुल्क लगाया जाता है. इससे, ग्राहकों के लिए वे सामान महंगे हो रहे हैं.
-मुक्त व्यापार की अवधारणा के अनुसार, कृषि उपज बाजार समिति अधिनियम में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, मॉल, निजी बाजार समितियाँ, किसान-से-उपभोक्ता बिक्री, अनुबंध खेती आदि जैसे कई प्रावधान किए गए हैं. इनमें से कई प्रावधानों ने पारंपरिक व्यवसायों के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है.