हड़पसर, 12 नवंबर (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
आखिरकार शरद पवार के राष्ट्रवादी कांग्रेस में शामिल होने की कोशिश करने वाले अजित पवार गुट के विधायक चेतन तुपे के सामने चुनौती बढ़ गई है. नगरसेवक रहते हुए मगरपट्टा, साढ़ेसतरानली और मुंढवा क्षेत्र से उन्होंने प्रतिनिधित्व किया था, उन क्षेत्रों के सभी नगरसेवक अब शरद पवार गुट में शामिल हो गए हैं. साथ ही, इस क्षेत्र के मुस्लिम और दलित समाज ने भी महाविकास आघाड़ी के शरद पवार गुट के उम्मीदवार प्रशांत जगताप को उम्मीदवार के रूप में चुना है, जिससे तुपे के लिए यह चुनाव और भी चुनौतीपूर्ण हो गया है. उम्मीदवारी के लिए आवेदन वापस लेने के बाद हड़पसर विधानसभा क्षेत्र का दृश्य स्पष्ट हो गया था. वर्तमान विधायक चेतन तुपे, महाविकास आघाड़ी के शरद पवार गुट के उम्मीदवार प्रशांत जगताप और मनसे के साईंनाथ बाबर के बीच त्रिकोणीय मुकाबला हो रहा है. राष्ट्रवादी कांग्रेस में फूट के बाद हड़पसर क्षेत्र के अधिकांश नगरसेवक और कार्यकर्ता शरद पवार के राष्ट्रवादी कांग्रेस गुट में शामिल हो गए हैं. यहां तक कि, चेतन तुपे जिन प्रभाग से नगरसेवक थे, वहां के बंडू गायकवाड़, हेमलता नीलेश मगर और पूजा कोद्रे भी शरद पवार के गुट में शामिल हो गए हैं. चेतन तुपे अकेले पड़ गए हैं. इससे पहले, शिवसेना में फूट के बाद यहां के अधिकांश शिवसैनिक उद्धव ठाकरे गुट में चले गए थे. महाविकास आघाड़ी में कांग्रेस के साथ गठबंधन होने के बाद इसका असर लोकसभा चुनाव में दिखा था. इसके कारण, पिछले साल अजित पवार गुट में शामिल होने वाले चेतन तुपे ने पिछले कुछ महीनों से शरद पवार गुट में शामिल होने के प्रयास शुरू कर दिए थे. हालांकि, पार्टी ने शरद पवार के साथ एकजुट रहकर और कठिन परिस्थितियों में शहर अध्यक्ष पद पर मेहनत करने वाले प्रशांत जगताप पर वेिशास जताया है. उम्मीदवारी घोषित होने के बाद, नाराज कार्यकर्ताओं को समझा कर उन्हें अपने साथ लाने के साथ ही कर महाविकास आघाड़ी के मित्र दलों कांग्रेस और शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट के साथ निर्दलीय उम्मीदवारों द्वारा नामांकन वापस लेकर एक प्रकार से प्रशांत जगताप नेतृत्व का प्रमाण दिया.
प्रचार में आ रही हैं दिक्कतें
महाविकास आघाड़ी में शुरुआत में काफी खींचातानी दिखाई दे रही थी. लेकिन, बाद में सभी एकत्रित होकर चुनाव प्रचार जुट गए है. जिससे वोटों का बंटवारा होता नजर नहीं आ रहा है. वोटों में बंटवारा होता तो महायुति के चेतन तुपे को जरूर फायदा होता. लेकिन अब वैसा नहीं होने से तुपे के सामने प्रचार के दौरान काफी दिक्कतें आ रही हैं. साथ ही इस क्षेत्र में मतदान के लिए भाजपा का प्रत्याशी नहीं होने से कमल का चिन्ह नहीं होगा. जिससे भाजपा को मानने वाले मतदाताओं में भी निरूत्साह दिखाई दे रहा है. जिससे मतदान का औसत भी प्रभावित होने की आशंका है.