एट्रोसिटी एक्ट के तहत दर्ज होने वाले केस ज्यादातर झूठे होते हैं ः एड.राशिद सिद्दीकी

18 Feb 2024 13:02:18
 
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एड. राशिद सिद्दीकी
(मो. नं. 9595957126)
Session Bar Code- 12848
 
जाति के नाम पर भेदभाव करने की अगर बात की जाये तो यह समाज के लिये एक बड़ा चिंता का विषय है. वर्ष 2015, 2016 की तुलना में 2019 और 2021 में इन मामलों मे दोगुनी वृद्धि हुई है. समाज में आर्थिक और सामाजिक रुप से निचले पायदान पर स्थित लोगों के साथ हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए सरकार ने कई तरह के कानून बनाये. उन्हीं मेें से एक कानून जिसे हम आम भाषा में एट्रोसिटी एक्ट 1989 के नाम से जानते हैं. एट्रोसिटी का सरल भाषा में अर्थ है- क्रूरता, जघन्य अथवा जाति को धर्म के साथ-साथ, ऊंच-नीच पर किसी से भेदभाव करना. वर्तमान स्थिति में यह मामले काफी तेजी से बढ़ रहे हैं. वर्ष 2021 में इन बढ़ते मामलों पर चिंता जताते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है, कुछ लोग इस कानून का दुरुपयोग कर अपनी दुश्मनी निकालते हैं. इसलिए मामला दर्ज करने से पहले पुलिस को सही ढंग से जांच-पड़ताल करनी चाहिए. इस प्रकार की जानकारी क्रिमिनल लॉयर एड. राशिद सिद्दीकी ने आज का आनंद प्रतिनिधि को चर्चा के दौरान दी.
 
उन्होंने आगे कहा कि, मेरी प्रैक्टिस के दौरान मैंने कई एट्रोसिटी के केस चलाये. इन सभी केसेस में ज्यादातर मामले झूठे होते हैं. कई बार हमने देखा कि किरायेदार और मकान मालिक के बीच चल रहे विवाद को एट्रोसिटी का नाम दिया गया. परंतु ऐसे मामले कोर्ट में ट्रायल के समय टिक नहीं पाते. क्या है एट्रोसिटी और कितनी सजा का प्रावधान है, आइये जानते हैं.... एट्रोसिटी एक्ट सरकार द्वारा वर्ष 1989 में देश भर में लागू किया गया था. इस एक्ट का पूरा नाम अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 है. यह एक्ट विशेष प्रकार का कानून है जिसे भारतीय संविधान के आर्टिकल 15 की उपधारा 4 के अंतर्गत बनाया गया था. यह कानून दलित वर्ग के लिए विशेष प्रावधान करने की छूट देता है, साथ ही एफ.आई.आर. दर्ज होते ही विभाग द्वारा पहले चरण में लाभार्थी को तुरंत आर्थिक सहायता पहुंचाने का प्रावधान है.
 
एट्रोसिटी एक्ट को इंग्लिश में एस.सी.एस.टी. एक्ट भी कहते हैं. इसमें सजा के प्रावधान की बात करें तो एट्रोसिटी एक्ट 1989 की उपधारा 3 (1) में स्पष्ट रुप से कहा गया है कि, कोई पिछड़े वर्ग के व्यक्ति के साथ जाति को लेकर उसके साथ गाली-गलौज करता है, उसके साथ कोई ऐसा दुर्व्यवहार करता है, जिससे सामने वाले व्यक्ति को शर्मिंदगी हो, ऐसी परिस्थिति में उपधारा 3 (1) लगाई जायेगी, जिसमें दोषी को कम से कम 3 साल की सजा से लेकर 5 वर्ष तक की सजा का प्रावधान है. एट्रोसिटी एक्ट स्पेशल केस की श्रेणी में आता है. जिसे विशेष जिला व सत्र न्यायाधीश के समक्ष चलाया जाता है.
 
इस मामले में फरियादी तुरंत एफ. आई.आर. नहीं करा सकता क्योंकि एट्रोसिटी एक ऐसा कानून है कि पहले मामले की जांच ए.सी.पी. या डी.वाई.एस.पी. द्वारा की जाती है. जांच में ए.सी. पी. या डी.वाई.एस.पी. को लगा कि मामला सत्य है तो एफ.आई.आर. दर्ज करके मामले की जांच की जाती है. एड.सिद्दीकी ने आगे बताया कि, इस मामले में जांच के दौरान अगर पुलिस अधिकारी को लगा तो आरोपी को गिरफ्तार किया जाता है, नहीं तो कानून के नियमानुसार सी.आर.पी.सी. की धारा 41-अ के तहत आरोपी को नोटिस देकर पुलिस स्टेशन बुलाकर उसका बयान दर्ज किया जाता है और जब मामले की जांच-पड़ताल पूरी हो जाये तो दोष- आरोपपत्र यानि फाइनल इंवेस्टिगेशन रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल की जाती है, 20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुसूचित जन-जाति अत्याचार निवारण को संशोधित किया गया.
 
जानते हैं क्या-क्या बदलाव किये गये !
 
 
सुप्रीम कोर्ट द्वारा एस.सी.एस.टी. एक्ट को संशोधित करते हुए सभी याचिकाओं पर निर्णय देते हुए इसकी संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है.
 
1) सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च 2018 को अपने पूर्ववर्ती निर्णय को पलटते हुए स्पष्ट रुप से कहा है कि इस कानून के तहत गिरफ्तारी से पूर्व प्राथमिक जांच-पड़ताल की आवश्यकता नहीं है.
 
2) साथ ही इस तरह के मामलों मे गिरफ्तारी से पहले किसी भी उच्च ॲथोरिटी से अनुमति लेना अनिवार्य नहीं है.
 
3) सुप्रीम कोर्ट ने अपनी गाईडलाइन में यह भी स्पष्ट किया है कि आरोपी अपने विरुद्ध दर्ज हुई एफ.आई.आर. को रद्द कराने के लिए न्यायालय की शरण में जा सकता है.
 
4) न्यायालय के समक्ष आरोपी द्वारा दाखिल किये गये सबूतों के अभाव पर न्यायालय को लगा मामला झूठा है तो न्यायालय को FIR रद्द करने का पूरा अधिकार है.
 
5) सुप्रीम कोर्ट ने अपनी अगली गाईडलाइन में कहा है कि एस.सी. एस.टी. एक्ट के तहत मामला दर्ज करते समय जांच अधिकारी को इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि फरियादी के पास अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र है या नहीं. उस प्रमाणपत्र की जांच करना अनिवार्य है.
 
6) इसी के साथ-साथ यह कानून पीड़ितों को विशेष सुरक्षा व आर्थिक लाभ प्रदान करता है. पीड़ित व्यक्ति को अलग-अलग अपराध से पीड़ित होने की परिस्थिति में 75,000 से लेकर 8 लाख 50 हजार रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान करता है.
 
7) एस.सी.एस.टी. एक्ट मामलों का निपटारा जल्द से जल्द हो सके, इस बात को ध्यान में रखते हुए इस कानून के लिये सभी जगहों पर विशेष न्यायाधीश को नियुक्त किया गया है.
 
8) इस कानून के तहत अगर पीड़ित महिला हो तो उसे आर्थिक सहायता के साथ-साथ उसके स्वास्थ्य की जांच और मेडिकल सुविधा प्रदान की जायेगी.
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