शादी-ब्याह में फिजूलखर्ची पर रोक व बच्चों को संस्कार देना जरूरी

अग्रवाल समाज के गणमान्यों ने रेणु अग्रवाल से बातचीत में समाज को खुशहाल बनाने के दिए कई सुझाव

    26-Mar-2024
Total Views |
 
aaaaa
 
   
समाज को खुशहाल बनाने के लिए बदलाव की बहुत आवश्यकता है. दिखावे के लिए फिजूलखर्ची करने पर रोक लगनी चाहिए. इसके साथ ही परिवार में बच्चों की इच्छाएं पूरी करने के साथ-साथ उन्हें संस्कारित बनाने पर विशेष जोर देना चाहिए. विशेषकर लड़कियों को इस तरह के संस्कार देने चाहिए कि वेदो परिवारों को मजबूती से जोड़ने में अहम रोल निभाएं. यह विचार अग्रवाल समाज के गणमान्यों ने दै.आज का आनंद की रेणु अग्रवाल से बातचीत में व्यक्त किए. उनसे बातचीत के प्रमुख अंश.
 
 
 
r1

रेणु अग्रवाल
(मो. 8830670849)
 
    
आपसी समझदारी से रिश्ते निभाने चाहिए
 
 
r1
 
 
समाज में हर शादी ब्याह में होने वाले खर्चों के लिए एक अधिकतम राशि तय कर लेनी चाहिए. इस धनराशि से अधिक पैसा कोई भी व्यक्ति शादी ब्याह में नहीं लगाए. यह कड़ा नियम बना लेना चाहिए. अगर किसी परिवार के पास ज्यादा पैसा है तो वह किसी अन्य परिवार की मदद कर उनकी दुआएं भी ले सकते हैं. शादी के बाद दोनों परिवारों को आपसी समझदारी से रिश्ते निभाने चाहिए. अगर उनके बच्चे नासमझी में कोई गलत फैसला ले तो माता-पिता को अपने-अपने बच्चों को रिश्तों का महत्व समझाना चाहिए.
 
- मनीषा नवेंदु गोयल, खड़की
 
कैरियर और पर्सनल लाइफ में समन्वय होना चाहिए
 
 
r1
 
लड़कियों को कैरियर और पर्सनल लाइफ दोनों को ही एक समान महत्व देकर दोनों में बैलेंस बनाए रखना चाहिए. लड़कियों को भी अपने जीवन में हमेशा नई-नई चीजें सीखते रहनी चाहिए. लड़कियों और महिलाओं को आजकल बहुत आजादी मिल गई है. इसलिए लड़कियों को भी उसका गलत इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
  - खुशी संजय अग्रवाल, एम्पायर इस्टेट, चिंचवड़
 
बच्चों की शादी सही उम्र में की जानी चाहिए
 
 
r1
 
 
माता-पिता को अपने बच्चों की शादी की सही उम्र अर्थात 24 से 27 साल के बीच कर देनी चाहिए. शादी से पहले ही लड़का और लड़की दोनों सेटल हो जाएं तो बहुत ही अच्छा है. यदि किसी कारणवश कैरियर बनाने में देरी हो रही हो तो उसके लिए शादी में देरी न करें, क्योंकि देरी से शादी करने के फायदे कम और नुकसान ज्यादा हैं. हर महिला को चाहिए कि अपना हुनर पहचानकर अपनी लाइफ में कुछ न कुछ काम करके बिजी रहें. इससे मानसिक तनाव भी नहीं होगा और खासकर महिलाओं में पाई जाने वाली हार्मोनल इनबैलेंस की समस्या भी कम हो जाएगी क्योंकि मन खुश रहे तो तन भी खुश रहता है.
 - राखी विशाल अग्रवाल, औंध रोड
 
 शादियों में दिखावा नहीं होना चाहिए
 
 
r1
 
  
अग्रवाल समाज में अमीर और गरीब सभी प्रकार के लोग हैं. सभी को शादी जैसे पवित्र संस्कार में दिखावा नहीं करते हुए पूरे रीति-रिवाज से शादी करनी चाहिए. लड़कियों को भी ससुराल में जाकर सास-ससुर को अपना समझकर उनकी सेवा करनी चाहिए. सास-ससुर को भी अपनी बहू को आदर-सम्मान देना चाहिए. शादियों में अनावश्यक खर्च को टालकर उसी पैसे का उपयोग किसी अच्छे काम के लिए या फिर बच्चों के भविष्य के लिए संजोकर रखना चाहिए.
 
- मंजू नंदकुमार अग्रवाल, टिंगरेनगर
 
  कैरियर के चक्कर में शादी में देरी नहीं होनी चाहिए
 
 

r1 
 
आजकल बच्चे शादी के नाम पर चिढ़ते हैं कैरियर सेट करने की दौड़ में वह इतने व्यस्त हो जाते हैं कि शादी की सही उम्र हाथ से निकल जाती है. यह जरुरी है कि कैरियर के साथ-साथ अपने व्यक्तिगत जीवन पर भी ध्यान देना चाहिए. लड़कियों के मन में हमेशा यह भय बना रहता है कि शादी के बाद उन्हें अपनी पहचान बनाने के लिए उतनी आजादी नहीं मिल पाएगी. वह अपनी मां के संघर्षों को देखकर बड़ी होती है. इसलिए लड़कियों को बेटी जैसा प्यार करने और अपने सपने सजाने का अवसर प्रदान करना चाहिए और लड़कियों को भी अपने बड़ों का आदर-सम्मान करना चाहिए. इससे रिश्तों में मजबूती आती है.
 
- दीक्षा मनोज अग्रवाल, टिंगरेनगर 
 
 
पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण नहीं होना चाहिए
 
 
r1
 
 
लड़कों की संख्या अधिक और लड़कियों की संख्या कम होने से शादी नहीं होना भी एक समस्या बन गई है. इसके साथ ही आजकल की लड़कियां व्यापार करने वाले लड़कों से शादी नहीं करना चाहती हैं. चाहे कितना भी बड़ा कारोबार हो वह सारा समय व्यापार में ही लगा रहता है और परिवार को ज्यादा समय नहीं दे पाता है. 9 घंटों की नौकरी और मोटी तनख्वाह वाले और शनिवार-रविवार की छुट्टी वाले लड़के कम ही मिल पाते हैं. आज लड़कियां सुशिक्षित हैं और वे अपने समान जीवनसाथी चाहती हैंत्र पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण करते हुए उनकी अपेक्षाएं भी वैसी ही होती जा रही हैं.
 
- रुपेश सुरेश गर्ग, खड़की
 
भारतीय विवाह पद्धति और आदर्श समाज रचना की जरुरत
 
r1
 
भारतीय विवाह पद्धति पूरे विश्व में एक उत्कृष्ट समाज की रचना हेतु अपनाई गई है. पुरातन काल में आठ प्रकार की विवाह पद्धतियां प्रचलित थीं. उनमें ब्रह्म विवाह पद्धति में पिता अपने पुत्र या पुत्री के लिए सही जीवनसाथी चुनता है लोक प्रचलित और लोकमान्य मानी जाती थी. यह पद्धति आगे भी जारी रहनी चाहिए थी. बदलती विचारधारा ने इस पद्धति को प्रभावित किया है. जहां विवाह पहले दो परिवारोंं को एक करता था वहां अब ‘मियां बीबी राजी' की कहावत चरितार्थ हो रही है. इस बदलती विचारधारा से अपने परिवार और समाज को बचाए रखना आवश्यक है. साथ ही हमारी जिम्मेदारी भी है. परिवार के एक साथ रहने से बच्चों में अच्छे संस्कार पैदा होते हैं. बड़ों का आदर, सही समय पर सोने और उठने की आदत, सही खानपान, अपने भाई-बहनों का आदर, सुखी संपन्न परिवार आदि की दृष्टि से देखा जाए तो समाज के लिए ब्रह्म विवाह पद्धति उत्कृष्ट है.
 
- दीप्ति विवेकानंद शर्मा, खड़की बाजार, मेहता टॉवर
 
शादियों में खाने की बर्बादी रोकनी चाहिए
 
 
r1
 
आजकल की शादियों में अलग-अलग प्रकार के और विभिन्न देशों के व्यंजन बनाए जाते हैं. इतने प्रकार के व्यंजन होने पर लोग खाना सिर्फ चखते हैं और बाकी छोड़ देते हैं. इससे खाना बेकार जाता है और अनाज का अनादर भी होता है. इसमें पैसा और खाना दोनों बर्बाद होते हैं. इससे बेहतर है कि कम करो और अच्छा करो'. हमें व्यंजनों की संख्या कम करके ऐसी अनावश्यक प्रणाली पर रोक लगानी चाहिए. भोजन ऐसा हो और इतना हो कि किसी को कम नहीं पड़े लेकिन ऐसा और इतना भी नहीं होना चाहिए कि कूड़ेदान में जाए.
 
 - आरती नितिन अग्रवाल, प्राधिकरण