एड. राशिद सिद्दीकी
(मो. नं. 9595957126)
डशीीळेप इरी उेवश- 12848
एम.पी.आई.डी. एक्ट की बात की जाये तो यह कानून महाराष्ट्र के निवेशकों व मध्यम वर्ग और गरीब आर्थिक तबके से संबंधित जमाकर्ता के हितेों की रक्षा करता है. इस कानून को लागू करने के पीछे महाराष्ट्र सरकार का खास मकसद था जो डिपॉजिट धारकों और निवेशकों को ज्यादा ब्याज और ज्यादा मुनाफे का लालच देकर जनता के साथ धोखाधड़ी करते थे, उन लोगों पर कानून की नकेल कसी जा सके. महाराष्ट्र राज्य की बात करें तो महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा वित्तीय संस्थान, सहकारी बैंक व पतसंस्थाओं द्वारा निवेशकों और डिपॉजिट धारकों को ज्यादा ब्याजे का और ज्यादा मुनाफे का लालच देकर उन्हें अपनी ओर आकर्षित किया जाता था. उसके बाद फर्जी लोन कागज पर दिखाते हुए बैंके का पैसा कर्जदारों ने डुबा दिया.
इसलिए अब बैंक डूब गयीं. ऐसी परिस्थिति में यह कानून लागू होने से पहले डिपॉजिट धारक और निवेशक स्थानीय पुलिस की मदद लेते हुए बैंक के चेयरमैन, संचालक, और सी.ई.ओ. के खिलाफ इंडियन पैनल कोड 1860 की धारा 420,419 और 406 के तहत मामला दर्ज करवाते थे. परंतु इन धाराओें में इन संस्थानों को आसानी से जमानत मिल जाती थी और निवेशक जमाकर्ता डिपॉजिटधारक सालों साल कोर्ट के चक्कर मारते थे. इस बात को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने सन 1999 में (महाराष्ट्र प्रोटेक्शन ऑफ डिपॉजिटर्स फाइनेंशियल इस्टेब्लिशमेंट) अधिनियम लागू किया. इस प्रकार की जानकारी एड. राशिद सिद्दिकी ने दै. आज का आनंद प्रतिनिधि को चर्चा के दौरान दी.
उन्होंने बताया कि इस कानून को लागू करते समय इसकी रूपरेखा काफी सख्त बनाई गयी है. वित्तीय संस्थान के किसी भी अधिकारी और चेअरमैन या संचालक को आसानी से जमानत नहीं मिल सके. इस कानून को लागू करते समय प्रत्येक जिले में इसके लिये विशेष जिला न्यायाधीश को नियुक्त किया गया है. इस एक्ट में सबसे खास बात यह है कि जब किसी आरोपी की जमानत याचिका न्यायालय के समक्ष आती है तो कोर्ट सबसे पहले यह देखता है कि इस केस में फरियादियों की संख्या कितनी है, धोखाधड़ी की टोटल धनराशि कितनी है, उसके बाद जमानत याचिका पर दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद कोर्ट का पहला सवाल आरोपी के वकील से यह होता है कि डिपॉजिट धारकों और निवेशकों द्वारा जमा की गयी राशि में से 50% फीसदी आप जमा करने को तैयार हैं क्या? इस पर बचाव पक्ष के वकील ने सहमति नहीं दिखाई तो कोर्ट तुरंत जमानत रद्द कर देती है.
एड. राशिद सिद्दिकी ने चर्चा के दौरान आगे कहा कि इस कानून में इस बात का भी प्रावधान है कि जमाकर्ताओं और डिपॉजिटधारकों की डूबी हुई धनराशि इन संस्थान के उत्तराधिकारी की प्रॉपर्टी को कब्जे में लेकर उसे नीलाम करके जमाकर्ता और निवेशकों में बांटी जाये. अभी जमाकर्ताओं का पैसा डूबने वाली वित्तीय संस्थाओं में शिवाजीराव भोसले सहकारी बैंक, अजीत सहकारी बैंक, पुणे जिला व सहकारी बैंक, गुरूकृपा सहकारी पतसंस्था, सी.के.पी. सहकारी बैंक, अजीत नागरी सहकारी पतसंस्था, रूपी पेन अर्बन सहकारी बैंक आदि शामिल हैं. अगर महाराष्ट्र राज्य में आर.बी.आई.द्वारा की गई कार्रवाई में शामिल सहकारी बैंकों की बात की जाये तो वर्ष 2022 तक 217 बैंकों पर कार्रवाई हो चुकी है.
एक नजर राज्य की घोटोलेबाज बैंकों पर
2018-2019 2019-2020 2020-21
महाराष्ट्र 856 368 217
गुजरात 59 26 15
कर्नाटक 48 36 25
देशभर 1193 568 323
देशभर के सहकारी बैंकों द्वारा किये गये घोटाले की टोटल रकम 8 लाख 4 हजार 303 करोड़ है.
एम.पी.आई.डी. एक्ट में कितनी सजा का प्रावधान है
एम.पी.आई.डी एक्ट में सजा कितनी है तो यह पुलिस अधिकारी द्वारा जांचप डताल करने के बाद न्यायालय के समक्ष दाखिल किये गये दोष आरोपपत्र पर निर्भर होता है. वित्तीय संस्थान द्वारा किया गया घोटाला कितने करोड़ का है? फरियादी की संख्या कितनी है? जमाकर्ता द्वारा जमा की गयी राशि, उसके सबूत स्पष्ट है? वित्तीय संस्थान ने जमाकर्ता का पैसा अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया है क्या? इन सभी पहलुओं पर न्यायालय विचार करती हैं. इस एक्ट में ज्यादा से ज्यादा 7 वर्ष और कम से कम 3 वर्ष की सजा का प्रावधान है. एम.पी.आई. डी. एक्ट की जांच पड़ताल ए.सी.पी. या वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक रैंक के अधिकारी द्वारा की जाती है. इस एक्ट में पुलिस 14 दिन तक की रिमांड न्यायालय से मांग सकती है.
इस एक्ट में 90 दिनों के अंदर चार्जशीट न्यायालय में दाखिल करना अनिवार्य है. (इस एक्ट में बॉम्बे हाईकोर्ट की गाइडलाइन) वर्ष 2021 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपनी गाईडलाईन जारी करते हुए कहा है कि इस एक्ट के प्रावधान में तीन महत्वपूर्ण तत्व देखे गये हैं और यह निर्णय भविष्य के लेन-देन के लिये एक मिसाल के रुप में काम करेगा. यह बात एम.पी.आई.डी अधिनियम के दायरे में सभी वित्तीय प्रतिष्ठानों पर लागू होने की संभावना है. इस प्रकार मार्जिन स्वीकार करने वाले एक्सचेंज और ब्रोकर केवल जमा के अर्थ में आयेंगे. यदि यह सामग्री के साथ रिटर्न के परीक्षण को संतुष्ट करता है तो स्वाभाविक रुप से यह अधिनियम आवेदन तक ही सीमित रहेगा न कि लेनदेन प्रकृति तक.
इसी के साथ-साथ एम.पी. आई.डी. अधिनियम एन.एस.ई.या बी.एस. ई. या भारतीय प्रतिभूति और बिन नियम बोर्ड द्वारा विनियमित अन्य संस्थाओं जैसे म्यूचल फंड और ब्रोकरों पर लागू होगी. एम.पी.आई.डी. अधिनियम हर उस संस्थान पर लागू होगा जो किये गये वादेों पर खरा नहीं उतरता है. अपने एग्रीमेंट में बताया गया रिटर्न जमाकर्ता को नहीं देता है तो उन सभी वित्तीय संस्थानों और ब्रोकरों पर एम.बी.आई.टी. एक्ट के तहत कार्रवाई की जायेगी.साथ ही उन वित्तीय संस्थानों पर भी एम.बी.आई.टी अधिनियम लागू होगा जो जमाकर्ता और निवेशकों को समय पर रिटर्न देने में विफल रहे हों, जिस जमाकर्ता का रिटर्न समय पर नहीं मिला, संबंधित वित्तीय संस्थान से जुर्माने के तौर पर रकम वसुलकर जमाकर्ता को दी जायेगी.