हजारों श्रद्धालुओं ने रात्रि भोजन त्याग करने का संकल्प लिया

महातपस्वी प.पू. सौम्यजी महासतीजी 1008 आयम्बिल की आराधना आत्मसात की

    27-Apr-2024
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मुंबई, 26 अप्रैल (आ.प्र.)
 
जब विश्व में करोड़ों लोग हर दिन आहार, भोजन और स्वाद के मोह में व्यर्थ जीवन बिता रहे हैं, तब महातपस्वी प.पू. सौम्यजी महासतीजी ने अपने स्वाद पर विजय पाने और आयम्बिल तप के निरंतर 1008 दिनों की आराधना कर आनंदमय बनाने की प्रेरणा ली है. सार्थक महोत्सव-दीक्षा महोत्सव के दूसरे दिन श्री नम्रमुनि महाराजसाहेब की उपस्थिति में उन्होंने लोगों को तपस्या और धर्म का आशीर्वाद दिया. श्री विले पार्ले वर्धमान स्थानकवासी के पास जैन संघ की पहल पर श्री मालिनीबेन किशोरभाई संघवी, ऋतंभरा कॉलेज परिसर में मनाए जा रहे महातपोत्सव-दीक्षा महोत्सव के अवसर पर तेरापंथ संप्रदाय के पूज्य श्री कमलमुनि महाराजसाहेब आदि संतों, डॉ. पूज्य श्री जसुबाई महासतीजी आदि, विरल प्रज्ञा पूज्या श्री वीरमतीबाई महासतीजी आदि, पूज्य श्री उर्मि-उर्मिलाबाई महासतीजी आदि, पूज्य श्री किरणबाई महासतीजी आदि, डॉ. पूज्य श्री डोलरबाई महासतीजी आदि, पूज्य श्री पुनिताबाई महासतीजी आदि, पूज्य श्री पूर्वीबाई महासतीजी आदि ठाणा सहित भारत के विभिन्न क्षेत्रों से हजारों भक्त शामिल हुए तथा देश-विदेश से लाखों भक्त महान तपस्वी भावना और दीक्षार्थी आत्मा के साथ लाइव के माध्यम से इससे जुड़े हैं.
 
राष्ट्रसंत श्री नम्रमुनि महाराजसाहेब के सान्निध्य में भव्य दीक्षामहोत्सव आयोजित
श्री नम्रमुनि महाराजसाहेब के सान्निध्य में महातपोत्सव एवं दीक्षा महोत्सव के अवसर पर गुरुवार (25 अप्रैल) को उपस्थित समुदाय को उपदेश देते हुए परम गुरुदेव ने कहा कि तपस्या की भावना और धर्म साधना की भावना, कई आत्माओं को ले जा सकती है, लेकिन उन भावनाओं की पूर्ति, तप का संकल्प, केवल वही आत्माएं कर सकती हैं जिन्होंने तपस्वी को बड़े स्नेह से स्वीकार किया हो, ऐसी आत्माओं को ही तप की सुविधा मिलती है. तपस्वी वह होता है जिस पर कभी भी तपस्या का बोझ नहीं होता बल्कि तपस्वी के चेहरे पर सदैव तपस्या का प्रभाव रहता है. चूँकि एक तपस्वी हमेशा अपने कर्म रोग को ठीक करने के लिए तपस्या करता है, प्रत्येक साधना के बाद एक कदम ऊपर जाना फायदेमंद होता है.
 
चूंकि भोजन और स्वाद का चक्र हमारे साथ अनंत काल से जुड़ा हुआ है, आइए हम उस महान तपस्वी आत्मा की जितनी हो सके प्रशंसा करें, जिसने 1008 दिनों तक स्वाद पर विजय प्राप्त की. इस अवसर पर प्रत्यक्ष उपस्थिति के साथ लाइव रूप से जुड़े देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु उस समय अंजलिबद्ध, नतस्मक, वंदन, स्तुति एवं अभिवन्दित हुए, जब परम गुरुदेव के ब्रह्मस्वर ने 1008 में आयम्बिल का कल्याण प्रत्याख्यान महान तपस्वी पूज्य श्री परम को प्रदान किया. सौम्याजी महासतीजी को, तपस्या का प्रभाव आशा को और तपस्या का प्रभाव बाधाओं को भस्म कर देता है, ऐसी प्रेरणा देकर परम गुरुदेव ने पूज्य महातपस्वी के 1008 आयम्बिल तप की प्रेरणा दी और हजारों भक्तों को रात्रि भोजन त्यागने की प्रतिज्ञा दी. महातपोत्सव एवं दीक्षा महोत्सव के तीसरे दिन 26 अप्रैल को ‌‘हे श्रमणी, वंदन तने हजार' का अद्भुत कार्यक्रम, उत्तम खेड़ा की अनूठी भावयात्रा प्रस्तुति ‌‘संवेदना प्रभु मिलननि' की प्रस्तुति की गई.