सामाजिक और उद्योग क्षेत्र में कर्मशील व्यक्तित्व : सुनेत्रा पवार

    05-May-2024
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सुनेत्रा पवार  
 
महायुति की उम्मीदवार 
 
 
महायुति की उम्मीदवार सुनेत्रा पवार शांत, विवेकशील, मानवता और बड़प्पन का मिश्रण हैं. एक किसान की बेटी, उपमुख्यमंत्री अजीत पवार की पत्नी, पार्थ और जय की मां हैं. वह एक सामाजिक और व्यावसायिक उद्यमी भी हैं. वह महायुति के माध्यम से बारामती लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रही हैं. वह पहली बार चुनावी मैदान में उतरी हैं. इसके मद्देनजर दै. ‘आज का आनंद' प्रतिनिधि द्वारा सुनेत्रा पवार से की गई बातचीत के प्रमुख अंश प्रस्तुत हैं.
 
 
प्रश्न ः आप पहली बार चुनाव लड़ रही हैं, अब निजी जिंदगी और राजनीति को कैसे जोड़ा जाएगा?
 
- बारामती के पवार परिवार की बहू होने पर मुझे गर्व है. उपमुख्यमंत्री की पत्नी के तौर पर कई वर्षों से घर में राजनीति देख रही हूं. पिता निंबालकर धाराशिव के पास तेर गांव के रहने वाले हैं. दोनों के परिवार में राजनीति है, इसलिए बचपन से बहुत सी बातें जानती हूं. बड़े परिवार की भी आदत होती है. पहले से ही लोकसभा और विधानसभा चुनाव में प्रचार करने की आदत रही है, अब फर्क यह है कि इस साल मैं अपने लिए प्रचार कर रही हूं.
 
प्रश्न ः अब तक कई सामाजिक कार्यक्रम कार्यान्वित किए हैं. ‘माटी के खेल' के बारे में क्या कह सकती हैं?
 
- राजनीति से ज्यादा सामाजिक क्षेत्र में काम करने का अलग ही आनंद है. आजकल बच्चे मोबाइल से ज्यादा जुड़े हुए हैं. कोरोना के बाद इसमें और बढ़ोतरी हुई है. कोरोना के समय शिक्षा मोबाइल से दी जाती थी. बच्चों को कुछ समय के लिए मोबाइल फोन से दूर रखने के लिए कई वर्षों से बच्चों के लिए ‘माटी के खेल' या ‘खेल जत्रा' गतिविधि आयोजित की जाती रही है. मैं 2010 से ‘एनवायरनमेंटल फोरम ऑफ इंडिया' की संस्थापक हू्‌ं‍. 13 वर्षों से इस माध्यम से पर्यावरण अनुकूल गतिविधियां संचालित की जा रही हैं. उसमें से बच्चों के लिए पानी बचाना, पर्यावरण की रक्षा करना, बच्चों की स्वास्थ्य समस्याओं आदि को ध्यान में रखते हुए बच्चों के लिए ‘माटी जत्रा' शुरू किया है. बच्चों ने मोबाइल से दूरी बना ली है और अपने पुराने खेलों में लगोरी, भोवरा, विटी-दांडू, गोट्या आदि को शामिल कर लिया है. इन पुराने खेलों के विशेषज्ञ बच्चों को ये खेल सिखाते हैं. बच्चों का दो घंटे का समय बिताने के साथ-साथ उन्हें उपलब्ध ‘रानमेवा' देकर पुराने खेलों और जंगली फलों से परिचित कराने के लिए यह गतिविधि शुरू की गई है. इसी के साथ-साथ ‘फोरम' के माध्यम से लुप्तप्राय वन्यजीव प्रजातियों और जल सूखाग्रस्त क्षेत्रों का संरक्षण संदेश फैलाना भी उद्देश्य है, जिसके लिए संस्था को 'ग्रीन वॉरियर अवार्ड' भी मिला है.
 
प्रश्न ः महिला सशक्तिकरण पर अपने विचार हमें बताएं, जिसे आपने अपना मुख्य उद्देश्य बताया है.
 
- महिला सशक्तिकरण एवं आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए विशेष प्रयास किये गये हैं. मैं ‘बारामती हाई-टेक टेक्सटाइल पार्क' का चेयरपर्सन हूं, इसलिए इसके जरिए मैंने 3 हजार महिलाओं को रोजगार दिया है. ऐसी 11 फैक्ट्रियां हैं. इन महिलाओं की शिक्षा कम होती है, वैकल्पिक रूप से उन्हें लोगों के लिए घरेलू काम करके जीविका बितानी पड़ती है. हालांकि, अब ‘टेक्सटाइल पार्क' में हाईटेक मशीनों पर सिलाई का काम हो रहा है. वहां पर हुनरमंद काम करके महिलाएं 30 से 50 हजार रुपये तक आसानी से कमा रही हैं. अपने वाहन से काम पर आने का मतलब है कि उनका आत्मवेिशास बढ़ा है और परिवार तथा समाज में उनका सम्मान भी मिल रहा है. महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण उनके जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए महत्वपूर्ण है.
 
प्रश्न ः कृषि-पर्यटन, इको-विलेज अवधारणा को स्थापित करने में आपका मार्गदर्शन कितना महत्वपूर्ण है?
 
- भारत गांवों का देश है. यहां के किसान खेती के लिए ज्यादातर बारिश पर निर्भर रहते हैं. कई किसानों के पास जमीन के छोटे-छोटे टुकड़े हैं. हालांकि, वित्तीय बाधाओं के कारण, किसान इन टुकड़ों को बेच देते हैं. ‘महाराष्ट्र एग्रो टूरिज्म' के संस्थापक-अध्यक्ष के रूप में, मैंने यह सुनिश्चित किया है कि, किसान अपनी जमीन न बेचें और उसका उचित उपयोग करें. हाल के दिनों में लोगों के बीच सेहत के लिहाज से ‘ऑर्गेनिक फूड' का क्रेज बढ़ रहा है. इसे देखते हुए किसानों का पर्यटन व्यवसाय की ओर रुख करना जरूरी है. इससे रोजगार और आर्थिक स्थिरता पैदा हो सकती है. ‘गांव चलो' की मानसिकता अब बढ़ती जा रही है. इसके अलावा, छुट्टियों के दौरान गांव में पर्यटन के लिए आने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ रही है, इसलिए किसानों को ‘कृषि पर्यटन' के बारे में सोचकर ‘कृषि पर्यटन' के क्षेत्र की ओर रुख करने के लिए मार्गदर्शन दिया जा रहा है.
 
प्रश्न ः काटेवाड़ी को ‘निर्मलग्राम' पुरस्कार मिला है, और भी कई पुरस्कार आपको मिले हैं, थोड़ा उसके बारे में बताइए?
 
- कॉलेज लाइफ से ही मुझे कई अवॉर्ड मिले हैं. स्वच्छता का गुण मैंने अजीत पवार (दादा) से लिया है, निर्मल ग्राम योजना के बारे में जानकारी मिली थी. इसमें शामिल होने का फैसला किया और काटेवाड़ी ने निर्मल ग्राम योजना और गाडगेबाबा स्वच्छता अभियान में भाग लिया. इस समय किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला कि गांव में 80 प्रतिशत लोगों के पास शौचालय नहीं थे और जिनके पास शौचालय थे वे उनका उपयोग ‘स्टोररूम' या गौशाला के रूप में करते थे. इसके बारे में हमें जागरूकता बढ़ानी पड़ी, कचरा प्रबंधन भी करना पड़ा और फलस्वरुप काटेवाड़ी को वर्ष 2008 का निर्मल ग्राम पुरस्कार मिला.