पुणे, 19 जुलाई (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
युद्धमुक्त विश्व बनाने की क्षमता भगवान महावीर के विचारों में निहित है. अहिंसा और प्रेम का उनका विचार प्रेरक है. यह विचार वर्धमान प्रतिष्ठान, शिवाजी नगर जैन स्थानक में आचार्य चंदनाजी ने चातुर्मास प्रवचन के अवसर पर व्यक्त किए. इस अवसर पर साध्वी शिलापीजी, साध्वी विभाजी, साध्वी मनस्वीजी उपस्थित थीं. शुक्रवार 19 जुलाई को उनका वर्धमान प्रतिष्ठान में धूमधाम से प्रवेश हुआ. इस अवसर पर सुमतिलाल लोढ़ा ने स्वागत किया और बीजेएस अध्यक्ष एवं सामाजिक कार्यकर्ता शांतिलाल मुथा एवं विधायक सिद्धार्थ शिरोले विशेष रूप से उपस्थित थे. श्रोताओं को संबोधित करते हुए आचार्य चंदनाजी ने कहा, कि भगवान महावीर ने संपूर्ण ब्रह्मांड के साथ मैत्री का संदेश दिया.
यह आज वेिश के लिए सबसे आवश्यक संदेश है. अक्सर देशों में युद्ध होते हैं, हिंसा होती है और फिर विनाशकारी प्रभाव दिखने पर युद्धविराम हो जाता है. यदि भगवान महावीर का संदेश दूर-दूर तक पहुंचे तो युद्ध दर युद्ध के बजाय युद्ध की नौबत ही नहीं आएगी. यदि हमें युद्धमुक्त वेिश बनाना है तो हमें महावीर के संदेश को आत्मसात करना होगा. उन्होंने आगे कहा कि भारत में जैन धर्म और बौद्ध धर्म समकालीन हैं. लेकिन हम ऐसे दस देश देखते हैं जिन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया है. लेकिन जैनियों का होने के कारण स्वतंत्र ग्राम भी नहीं बन सका. अफसोस है कि ढाई हजार साल में ऐसा नहीं हो सका. पालीताना जैनियों का तीर्थ स्थल है और यहां सैकड़ों मंदिर हैं. लेकिन वहां कोई स्कूल नहीं था जहां जैनियों के बच्चे पढ़ सकें. अब जब जैन धर्म की पहल पर वहां स्कूल शुरू किया गया है तो न केवल जैन धर्म के बल्कि हिंदू और मुस्लिम धर्म के बच्चे भी वहां पढ़ रहे हैं.
नवकार मंत्र आदि का संस्कार किया जा रहा है. उस संस्कार के कारण उनका परिवार भी अहिंसक और शाकाहारी बन रहा है. ऐसे प्रयास हर जगह किये जाने जरूरी हैं. साध्वी शिलापीजी ने कहा कि चातुर्मास स्वयं से संवाद करने का सुंदर अवसर है. उस संबंध में हमें आचार्य चंदनाजी के विचारों को अपनाना चाहिए. आचार्य चंदनाजी ने भगवान महावीर के विचारों को आत्मसात किया है. उनको आध्यात्मिक वैज्ञानिक के रूप में भी जाना जाता है, भगवान महावीर के एक सूत्र को हम जीवन में आत्मसात करें कि किसी से बैर नहीं. उनका काम 32 देशों में फैला हुआ है. उन्होंने आगे कहा कि प्रेम हमारा मूल स्वभाव है और हमारा स्वभाव धर्म है. अतः धर्म शोशत है. परंपराएँ बदलती रहती ह्ैं, लेकिन आज का युवा परंपराओं को धर्म के रूप में बदलने के कारण भ्रमित होता जा रहा है. इसलिए वर्धमान प्रतिष्ठान जैसे केंद्र युवाओं के लिए प्रेरणा के केंद्र बनने चाहिए. युवाओं तक तर्कसंगत और टिकाऊ धर्म लाना हमारा काम है. इस व्याख्यानमाला का आयोजन वर्धमान फाउंडेशन के अध्यक्ष विलास राठौड़, सचिव जीतू ताथेड़, अर्चना लुनावत द्वारा किया गया. इस कार्यक्रम में पुणे के सभी जैन स्थानक, मंदिर और समाज के गणमान्य लोग बड़ी संख्या में उपस्थित थे.
पुणे से मेरा पुराना नाता
आचार्य चंदनाजी ने कहा कि पुणे शहर से मेरा रिश्ता बहुत पुराना है. उन्होंने कहा, मेरी प्राथमिक शिक्षा पुणे में ही हुई. मैंने आगे दीक्षा ली और 12 वर्षों तक अध्यात्म और धर्म का अध्ययन किया. लेकिन मैं जानती हूं कि पुणे का समाज प्रबुद्ध, समृद्ध और विचारशील है.