शिवाजीनगर, 26 जुलाई (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
वर्धमान प्रतिष्ठान, शिवाजीनगर जैन स्थानक में पद्मश्री पू. आचार्य श्री चंदनाजी ने कहा कि, तपस्या की शक्ति महान है लेकिन ज्ञान के बिना की गई तपस्या व्यर्थ है. ज्ञान की अनंत क्षमता हमारे अंदर छिपी हुई है, इसे पूरी तरह से बाहर आने की जरूरत है. पुणे में भारी बारिश के पूर्वानुमान के बावजूद, प्रवचन से बोधामृत सुनने के लिए भक्त बड़ी संख्या में पहुंचे. उन्होंने मनुष्य के 8 कार्यों की जानकारी दी और उनके बारे में मौलिक मार्गदर्शन दिया. उन्होंने कहा, हमारी ज्ञान परंपरा धीरे-धीरे कम होती जा रही है. हम जल्दी से यह भी नहीं बता सकते कि आठ कर्म कौन से हैं. हम यह भी नहीं जानते कि भगवान महावीर ने हमें जीवन को सुन्दर बनाने के क्या उपाय बताये हैं. हमारे पास ज्ञान का इतना बड़ा भंडार है. लेकिन आज वह धूल में मिल गया है.
दक्षिण में एक समय ऐसा था जब कोई ऐसा क्षेत्र नहीं था जिस पर जैन आचार्यों ने भाष्य नहीं किया हो. लेकिन धीरे-धीरे हमारी ज्ञान की इच्छा कम हो गई और हमने तपस्या पर ध्यान केंद्रित किया. हमारी आत्मा एक दर्पण के समान है. यदि धूल जमा हो जाए तो क्या आप अपना प्रतिबिंब देख पाएंगे? इसीलिए भगवान हमारे मन की मलीनता को दूर करते हैं और उस पर लगी धूल को हटाते हैं. आत्मा में जानने की अनन्त क्षमता है. लेकिन यह बादलों से ढका हुआ है. स्वाध्याय, तप और साधना करने से आत्मा शुद्ध होती है. इसलिए हम चार महीनों के दौरान ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करते हैं. हम आग में हाथ डालने नहीं जाते क्योंकि हम जानते हैं कि हमारा हाथ जल जायेगा. जो अपने कर्म, पुनर्जन्म और ज्ञान में विश्वास करता है वह अच्छे कर्मों पर जोर देता है. यह सब समझते हुए भी हमारे हाथों से गलत काम क्यों होते हैं, क्योंकि हमारा विश्वास कम हो जाता है.
अगर महावीर के संपूर्ण जीवन को एक शब्द में कहा जा सकता है, तो वह है ‘ध्यान’! जागरुकता को एक शब्द में संक्षेपित किया जा सकता है. हमें भी अपने दैनिक जीवन में इसी जागरुकता से जीने का प्रयास करना चाहिए. जब हम बिना ज्ञान के तपस्या करते हैं तो हमें देवगति तो मिलती है लेकिन हमारा लक्ष्य मोक्ष होता है. अक्सर हमारे पास कुछ ऐसे लोग होते हैं जो कहते हैं कि यह ईश्वर की सजा के कारण हुआ. ईश्वर हमें सजा क्यों देगा, कुछ लोग इसे भाग्य से जोड़ते हैं; परंतु जैन धर्म इसे कर्म के कारण मानता है और यही अधिक सही प्रतीत होता है. जो शुभ है वह पुण्य है और जो अशुभ है वह पाप है इसलिए सभी को यह देखना चाहिए कि हम दिन भर में कौन से पुण्य कार्य करते हैं और कौन से अशुभ कार्य करते हैं.