अण्णाभाऊ साठे के ग्रंथ अनुवाद हेतु मैं शरद पवार के साथ

14 Aug 2024 15:14:42

sharad 
 
पुणे, 13 अगस्त (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
 
शरद पवार कई बार कहां किसे लपेट देंगे, यह समझ पाना कठिन है. महाराष्ट्र की राजनीति परिपक्व हो रही है. विपक्षी एवं सत्ताधारी एक-दूसरे की आलोचना तो करते थे, मगर उनके व्यक्तिगत संबंध अच्छे रहते थे. अब ऐसा नहीं होता. लोकशाहिर अण्णाभाऊ साठे पर लिखे गए ग्रंथ का अन्य भाषाओं में अनुवाद करने हेतु मैं शरद पवार के साथ रहूंगा. यह प्रतिपादन बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े ने किया. वे ‌‘अण्णाभाऊ साठे-दलित आणि महिलांचे कैवारी‌’ ग्रंथ के विमोचन समारोह में बोल रहे थे. विनोद तावड़े ने कहा कि वरिष्ठ साहित्यकार विश्वास पाटिल द्वारा लिखित ‌‘अण्णाभाऊ साठे-दलित आणि महिलांचे कैवारी‌’ ग्रंथ के बालगंधर्व रंगमंदिर में आयोजित विमोचन समारोह में वरिष्ठ नेता शरद पवार उपस्थित थे. तावड़े ने कहा अण्णाभाऊ साठे ने संयुक्त महाराष्ट्र के लिए उल्लेखनीय कार्य किए. इन गतिविधियों में उनका योगदान उल्लेखनीय रहा. अण्णाभाऊ साठे के साहित्य को केवल दलित साहित्य कहना उनके साथ अन्याय जैसा लगता है. उनकी कृतियों में क्रांति की चिनगारियां दिखाई देती हैं. उन्होंने अपने लेखन से सहज रूप से समाज के ढोंग को व्यक्त किया है. ओटीटी के माध्यम से साठे का साहित्य आगे लाया जाना चाहिए, जिससे युवा पीढ़ी को अण्णाभाऊ साठे को जानने का अवसर मिले. इस साहित्य को सिर्फ एक दलित वर्ग का न मानते हुए देश का साहित्य माना जाना चाहिए. इस बात को दृष्टि में रखते हुए इसे देशभर में पहुंचाना आवश्यक है.
 
अण्णाभाऊ साठे के लिए भारतरत्न की मांग करने की स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण : शरद पवार ‌
‘मराठी क्षेत्र में विश्वास पाटिल ने कितना योगदान दिया है, यह कहने की जरूरत नहीं. उन्होंने पानीपत राज्य के कोने-कोने तक मराठी साहित्य पहुंचाया.अब वे अण्णाभाऊ साठे के विषय में लिख रहे हैं. अण्णाभाऊ साठे का लेखन अब प्रकाशित हो रहा है. उसका प्रकाशन समारोह पुणे में हो रहा है.‌’ यह कहते हुए शरद पवार ने अण्णाभाऊ साठे के कार्यों, उनके साहित्य के महत्व तथा संघर्षमय जीवन पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि अण्णाभाऊ साठे जहां रहते थे, वह तहसील शिराला, संघर्ष करने वाले लोगों की थी. वहां से अण्णा ने संघर्ष की शुरुआत की. वे स्वतंत्रा सेनानियों के सातारा से आए थे. वहां स्थितियों के अनुकूल न होने की वजह से अण्णाभाऊ साठे मुंबई चले गए. मुंबई में उन्होंने मिल मजदूरों के लिए एक जबर्दस्त गतिविधि शुरू की. उनके सभी लेखों को भरपूर रिस्पॉन्स मिला. साम्यवादी विचारों ने आकर्षित किया. वे अधिकांश बैठकों में उपस्थित रहते थे. कई नेता उनसे आकर्षित हुए. उसके जरिए उन्हें रूस जाने का अवसर मिला. इस बात की खुशी है कि विश्वास पाटिल ने भी बहुत उत्तम लिखा है. इसका अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हो, इसके लिए मैं प्रयास करूंगा. अण्णाभाऊ साठे को भारतरत्न दिए जाने के लिए मांग करनी पड़ रही है, यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है. मैं सरकार तक जानकारियां पहुंचाकर उन्हें भारतरत्न दिलाने का प्रयास करूंगा.
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