एक व्यक्ति के नेत्रदान से होता है 3 लोगों को ‌‘दृष्टि लाभ‌’

25 अगस्त से 8 सितंबर तक ‌‘राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा‌’मनाया जाएगा; ऑप्थलमोलॉजिस्ट डॉ. संतोष भिड़े द्वारा जानकारी

    09-Aug-2024
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देशभर में लोगों को नेत्रदान के लिए प्रेरित व प्रोत्साहित करने तथा नेत्र प्रत्यारोपण या आई डोनेशन से जुड़े विभिन्न भ्रमों को दूर करने के उद्देश्य से हर साल 25 अगस्त से 8 सितंबर तक राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा (नेशनल आई डोनेशन फोर्टनाइट) मनाया जाता है. यह स्वास्थ्य मंत्रालय के राष्ट्रीय अंधता नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत आयोजित किया जाता है. इसमें 15 दिनों तक सरकारी व गैर सरकारी स्वास्थ्य व सामाजिक संस्थाओं द्वारा विभिन्न प्रकार के जागरुकता व जांच कार्यक्रमों व अभियानों का आयोजन किया जाता है, ताकि लोग नेत्रदान के महत्व को जान पाएं और नेत्रदान कर पाएं. यह जानकारी पुणे के प्रतिष्ठित ऑप्थलमोलॉजिस्ट (नेत्र-विशेषज्ञ) एवं महाराष्ट्र ऑप्थलमोलॉजिकल सोसायटी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. संतोष भिड़े द्वारा दै. ‌‘आज का आनंद‌’ की संवाददाता रिद्धी शाह से साझा की गईं.
 
शहर में पिछले 33 सालों से प्रैक्टिस कर रहे नेत्र-विशेषज्ञ डॉ. संतोष भिड़े ने आगे बताया कि इस पखवाड़े के दौरान नेत्रदान के महत्व को समझाने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. इन कार्यक्रमों में नेत्रदान के लाभ, प्रक्रिया और इससे जुड़े मिथकों को दूर करने के लिए विशेषज्ञों द्वारा जानकारी दी जाती है. इसके अलावा, नेत्रदान के इच्छुक लोगों की जांच और पंजीकरण भी किया जाता है. हमारे देश में बहुत सारे लोगों को कॉर्नियल ट्रांसप्लांट की आवश्यकता है, लेकिन उनकी आंखों का इलाज हो नहीं पा रहा क्योंकि देश में कॉर्निया अनुपलब्ध हैं और यह उपलब्ध तब होगा जब ज्यादा से ज्यादा लोग नेत्रदान करेंगे.
 
 

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नेत्रदान करने से पहले क्या करें?
अगर किसी व्यक्ति ने पूर्व रजिस्ट्रेशन फॉर्म न भरा हो और उसकी उनकी आंख डोनेट कक्या नेत्रदान संभव है, पर डॉ. संतोष भिड़े ने फॉर्म भरना, रजिस्ट्रेशन करना यह है जागरुकता अभियान की गतिविधियां हैं. लेकिन अगर किसी व्यक्ति ने फॉर्म भरा भी न हो और व्यक्ति की मृत्यु हो गई हो तो उसके रिश्तेदार उसके नेत्रदान करवा सकते हैं और वे यह कार्य नजदीकी आई बैंक या सरकारी हॉस्पिटल को संपर्क करके कर सकते हैं. दूसरी मुख्य बात, नेत्रदान के लिए मृत व्यक्ति का डेथ सर्टिफिकेट आवश्यक है. तीसरी अहम बात, नेत्रदान के लिए मृत खों को बंद करके रखना है,बायोटिक ड्रॉप मृत व्यक्ति डालना है और पलक बंद करके रखना है. अगर हो सके तो कपास को गीला करके आंखों पर रखना है, गर्दन के पीछे तकिया रख देना है. इस दौरान पंखा बंद होना चाहिए ताकि कॉर्निया सूखने न पाए. एक व्यक्ति द्वारा किया गया नेत्रदान 3 मरीजों को दृष्टि का दान दे सकता है. मृत होने के बाद 6 घंटे के अंदर नेत्रदान होना चाहिए. डॉ. संतोष भिड़े ने आगे कहा कि नेत्रदान को महादान कहा जाता है, क्योंकि इस दान से दृष्टिहीन लोगों को दुनिया देखने का मौका मिलता है. इसीलिए हर किसी व्यक्ति को नेत्रदान करना चाहिए.
 
नेत्र दान कौन कर सकता है और कौन नहीं कर सकता?
इस सवाल पर डॉ. संतोष भिड़े ने कहा कि छोटे बच्चों से लेकर बूढ़ों तक किसी भी उम्र का व्यक्ति नेत्रदान कर सकता है और अगर किसी व्यक्ति की आंख का ऑपरेशन भी हुआ है तो वह भी नेत्रदान कर सकता है. लेकिन उन लोगों की आंखों से ट्रांसप्लांट नहीं किया जाता जिनकी मृत्यु किसी संक्रमण, हेपेटाइटिस-बी, एचआईवी, एड्स, एन्सेफलाइटिस, रेबीज, सेप्टिसीमिया (बैक्टेरिमिया, फंगमिया, विरेमिया), रेटिनोब्लास्टोमा, ल्यूकेमिया, लिम्फोमा, कैंसर, क्रुट्जफेल्ट-जैकोड सिंड्रोम से हुई हैं.
 
संक्रमण कॉर्नियल ब्लाइंडनेस का कारण
डॉ. संतोष भिड़े ने अनेक पहलुओं के बारे में जानकारी दी जैसे कॉर्नियल अंधापन क्या है? कॉर्नियल ब्लाइंडनेस एक ऐसी स्थिति है जिसमें कॉर्निया, जो आंख की सबसे बाहरी पारदश परत होती है, क्षतिग्रस्त हो जाती है और इससे दृष्टि प्रभावित होती है. कॉर्निया का मुख्य कार्य प्रकाश को आंख में प्रवेश करने देना और उसे फोकस करना है, जिससे हम स्पष्ट रूप से देख पाते हैं. जब कॉर्निया में कोई चोट, संक्रमण या बीमारी होती है, तो यह अपनी पारदर्शिता खो सकता है और दृष्टि धुंधली या पूरी तरह से खो सकती है.
 
कॉर्नियल ब्लाइंडनेस के कारणों में चोट, संक्रमण, विटामिन-ए की कमी, और कुछ आनुवंशिक स्थितियां शामिल हो सकती हैं. इसके लक्षणों में धुंधली दृष्टि, आंखों में दर्द और प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता शामिल हो सकते हैं. कॉर्नियल ब्लाइंडनेस के कारण में चोटें, एक्सपायर लेंस लगाना या लेंस को बिना निकाले सो जाना, संक्रमण, कुपोषण, केमिकल बर्न, जन्मजात विकार, ऑपरेशन के बाद के विकार शामिल हैं. छोटे बच्चों में कॉर्निया की क्षति होने का सामान्य कारण जो है वो लाइम इंजुरी है यानि लोग जो चूना, पान में खाते हैं और चूने की पुड़िया कभी-कभी नीचे फेंक देते हैं, छोटे बच्चे उस चूने की पुड़ी को लेते हैं और गलती से वह उनकी आंख में चला जाता है, जिसके बाद उनकी कॉर्निया में खराबी आ जाती है.