इस साल पहले टैरिफ और फिर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ काे लेकर अमेरिकी रुख में आए बदलाव पर भारत की ओर से काेई तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की गई, पर देश में आक्राेश की लहर थी. शुरू में समझ नहीं आता था, पर अब धीरेधीरे लगता है कि भारत और अमेरिका के बीच, पिछले दाे दशक से चली आ रही साैहार्द्र-नीति में काेई बड़ा माेड़ आने वाला है. कुछ वर्षाें से यह सवाल किया जा रहा है कि भारत एक तरफ रूस और चीन और दूसरी तरफ अमेरिका के बीच अपनी विदेश-नीति काे किस तरह संतुलित करेगा? इसे स्पष्ट करने की घड़ी अब आ रही है.भारत ने तालिबान, पाकिस्तान, चीन और रूस के साथ मिलकर अमेरिकी राष्ट्रपति डाेनाल्ड ट्रंप के अफग़ानिस्तान स्थित बगराम एयरबेस पर कब्ज़ा करने के प्रयास का विराेध किया है.
यह अप्रत्याशित घटना तालिबान के विदेशमंत्री आमिर ख़ान मुत्तक़ी की भारत-यात्रा से कुछ दिन पहले हुई है. अफगानिस्तान पर माॅस्काे प्रारूप परामर्श के प्रतिभागियाें द्वारा मंगलवार काे जारी संयु्नत बयान में बगराम का नाम लिए बिना यह बात कही गई.अफग़ानिस्तान पर माॅस्काे प्रारूप परामर्श की सातवीं बैठक माॅस्काे में अफग़ानिस्तान, भारत, ईरान, क़ज़ाक़िस्तान, चीन, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान के विशेष प्रतिनिधियाें और वरिष्ठ अधिकारियाें के स्तर पर आयाेजित की गई थी. बेलारूस का एक प्रतिनिधिमंडल भी अतिथि के रूप में बैठक में शामिल हुआ. इस बैठक में ‘पहली बार विदेशमंत्री अमीर खान मुत्तकी के नेतृत्व में अफगान प्रतिनिधिमंडल ने भी सदस्य के रूप में भाग लिया.’ इसके पहले ट्रंप ने कहा था कि तालिबान, देश के बगराम एयर बेस काे वाशिंगटन काे साैंप दे.
सच यह है कि ट्रंप ने ही पांच साल पहले तालिबान के साथ एक समझाैते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसने काबुल से अमेरिका की वापसी का रास्ता साफ किया था. पिछली 18 सितंबर काे ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर के साथ एक प्रेस काॅन्फ्रेंस में ट्रंप ने कहा, ‘हमने इसे तालिबान काे मुफ्त में दे दिया. अब हमें वह अड्डा वापस चाहिएबहरहाल, तालिबान के विदेशमंत्री की मेज़बानी की तैयारी कर रहे भारत ने ट्रंप की याेजना का विराेध करके एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है. हालांकि हमने अभी तक तालिबान शासित अफग़ानिस्तान काे आधिकारिक मान्यता नहीं दी है, पर धीरे-धीरे संबंध स्थापित कर लिए हैं. संयु्नत व्नतव्य में एक और महत्वपूर्ण बात कही गई है, ‘क्षेत्रीय संपर्क प्रणाली में अफगानिस्तान के सक्रिय एकीकरण का हम समर्थन करते हैं.’ भारत के नज़रिए से अमेरिका के लिए यह एक संदेश है, जिसने ईरान में चाबहार बंदरगाह पर प्रतिबंधाें में छूट हटा ली है, जिसका इस्तेमाल भारत के अफगानिस्तान से संपर्क के लिए किया जाता रहा है.
इस घटनाक्रम के समांतर कुछ और बाताें पर गाैर करें.पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष आसिम मुनीर ने डाेनाल्ड ट्रंप के साथ व्य्नितगत रूप से मधुर संबंध बना लिए हैं. हाल में उन्हाेंने ट्रंप के सामने अरब सागर में एक बंदरगाह बनाने और उसे चलाने का प्रस्ताव पेश किया है. यह बंदरगाह बलाेचिस्तान के ग्वादर जिले के एक शहर पासनी में हाेगा, जाे ईरान में भारत द्वारा विकसित किए जा रहे चाबहार बंदरगाह के एकदम करीब हाेगा. पिछले महीने पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष ने प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के साथ व्हाइट हाउस में ट्रंप के साथ बंद कमरे में बैठक की थी.अब खबर है कि पाकिस्तान ने अमेरिका काे कुछ खनिजाें की खेप भेजी है. उनका कहना है कि हम अमेरिका काे रेयर अर्थ जैसे खनिज दे सकते हैं, जिनकी अमेरिका काे डी ज़रूरत है. हाल में एक और खबर आई है. अमेरिका ने पाकिस्तान काे दाे नए हथियार बेचने की मंजूरी दे दी है. ये हैं नवीनतम एम-120 सी-8 और डी-3 एमरैम मिसाइलें.
पाकिस्तान ने 2019 में अभिनंदन वर्धमान के विमान पर एमरैम मिसाइल ही दागी थी.पता नहीं अमेरिका पासनी में बंदरगाह बनाएगा या नहीं, पर इन रिश्ताें की जटिलता काे समझने के लिए चीन काे भी शामिल करना हाेगा. सवाल केवल भारत का ही नहीं है, बल्कि यह भी है कि पाकिस्तान अब अमेरिका और चीन के साथ रिश्ताें काे किस तरह निभाएगा? क्या वह चीन से दूर हाे जाएगा? क्या अमेरिका भी चीन के साथ सामरिक रिश्ताें में सुधार कर रहा है? अभी तक वह सीपैक और ग्वादर का विराेध करता था, क्या वह अब ग्वादर काे स्वीकार कर लेगा? इसके साथ ही एक सैद्धांतिक प्रश्न भी सामने आया है. हाल में अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान काे फिर से तराजू पर बराबरी से ताैलना शुरू कर दिया है. एक दशक पहले उसने भारत और पाकिस्तान काे ‘डिहाइफनेट’ करने की नीति बनाई थी, जिससे वह बराबरी खत्म हाे गई थी, पर अब वह नीति खत्म हाे रही है और पुरानी नीति वापस आ रही है.
हाल में जेएनयू में हुए अरावली शिखर सम्मेलन में विदेशमंत्री एस जयशंकर ने ऐसे सवालाें के कुछ दिलचस्प स्पष्टीकरण दिए हैं.
जयशंकर ने ‘डिहाइफनेशन’ की अवधारणा पर राेशनी डाली. उन्हाेंने कहा, हम पड़ाेसियाें की चुनाैती से बच नहीं सकते, चाहे वास्तविकता कितनी भी अप्रिय क्याें न हाे.सबसे अच्छा रास्ता यही है कि भारत शक्ति और क्षमता के मामले में दूसरे पक्ष से आगे निकले. यानी कि भारत की ताकत, अर्थव्यवस्था और वैश्विक प्रभाव में वृद्धि इतनी महत्वपूर्ण हाेनी चाहिए कि ऐतिहासिक समानता या तुलना प्रासंगिक न रहे. वर्ष 1970 के दशक में भारत-पाकिस्तान की समतुल्यता काे वैश्विक स्तर पर स्वीकार किया जाता था. अब काेई भी इस तरह की बात नहीं करता. कुछ देश क्षेत्रीय तनावाें का फायदा उठाने या अपने फायदे के लिए भारत काे अन्य शक्तियाें के साथ ‘संतुलित’ करने की काेशिश करते हैं. - प्रमाेद जाेशी