पुणे, 16 अक्टूबर का आनंद न्यूज नेटवर्क)दिवाली यानी प्रकाश उत्सव शुक्रवार (17 अक्टूबर ) को रमा एकादशी और गुरुद्वादशी यानी वसुबारस के शुभमुहूर्त पर है. इस साल नरक चतुर्दशी (20 अक्टूबर) को है, लक्ष्मी पूजन मंगलवार (21 अक्टूबर) को है, बलि प्रतिपदा यानी दिवाली पाड़वा बुधवार (22 अक्टूबर) को है और भैय्यादूज गुरुवार (23 अक्टूबर) को है, यह जानकारी पंचांगकर्ता मोहन दाते ने दी. वसुबारस (17 अक्टूबर, शुक्रवार) अश्विन वद्य द्वादशी यानी वसुबारस यानी गुरुद्वादशी. दत्त संप्रदाय में इस दिन का विशेष महत्व है. इस दिन चौंसठ योगिनियों की पूजा की जाती है. वसुबारस पर, शाम के समय महिलाएं गायों और बछड़ों की पूजा करती हैं. गायों और बछड़ों को गोग्रास खिलाया जाता है. यदि गाय और बछड़े उपलब्ध न हों, तो गायों और बछड़ों की मूर्तियों की भी पूजा की जा सकती है. धनत्रयोदशी (18 अक्टूबर, शनिवार) अश्विन वद्य त्रयोदशी को धनत्रयोदशी है. इस दिन देवताओं के वैद्य धन्वंतरि की पूजा और धन्वंतरि यज्ञ करने का विधान है. साथ ही, घर के आभूषण, स्वर्ण मुद्राएं, विष्णु, लक्ष्मी, कुबेर, योगिनी, गणेश, नाग और द्रव्यनिधि की पूजा हर घर में की जाती है. साथ ही, पूजा में धनिया, दर्पण और कंघी भी रखी जाती है. शाम के समय, गेहूं के आटे का दीपक बनाकर उसकी लौ जलाकर दक्षिण दिशा में रखनी चाहिए. नरक चतुदर्शी (20 अक्टूबर, सोमवार) आेिशन वद्य चतुर्दशी तिथि को भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया और उसके द्वारा बंदी बनाई गई 16,108 स्त्रियों को मुक्त कराया. इसीलिए नरक चतुर्दशी मनाई जाती है. प्रातः ब्राह्म मुहूर्त में लोग अभ्यंगस्नान करके देवताओं की पूजा अर्चना करते हैं. मठ-मंदिरों में जाकर देवताओं के दर्शन भी करते हैं. इस दिन शरद ऋतु का अंत और हेमंत ऋतु का आगमन होता है. ठंड का मौसम शुरू हो जाता है. लक्ष्मी कुबेर पूजन (21 अक्टूबर, मंगलवार) अश्विन वद्य की अमावास्या तिथि पर लक्ष्मी कुबेर पूजा करने की प्रथा है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन रात्रि में लक्ष्मी का सर्वत्र संचार रहता है. इस दिन शाम को घर-दुकान की सफाई करनी चाहिए. सूर्यास्त के बाद लक्ष्मी पूजा करे और धन-समृद्धि की कामना करे. इस दिन झाडू को लक्ष्मी के रूप में पूजने का रिवाज है. इस वर्ष लक्ष्मी पूजन का मुहूर्त दोपहर 3 से 4:30 बजे, शाम 6 से 8:30 बजे और रात 10:30 से 12 बजे तक है. बलिप्रतिपदा (22 अक्टूबर, बुधवार) कार्तिक शुद्ध प्रतिपदा अर्थात बलिप्रतिपदा अर्थात दिवाली पाडवा. इस दिन बलिराजा की पूजा करने का रिवाज है. साथ ही, विक्रम संवत्सर भी इसी दिन से प्रारंभ होता है. व्यापारियों में बलिप्रतिपदा का विशेष महत्व है. इस दिन व्यापारी बहीपूजन और दुकान की पूजा करके नए वर्ष की शुरुआत करते हैं. इस दिन पत्नी अपने पति की आरती उतारती है. इस वर्ष बहीपूजन का मुहूर्त तडके 3:00 बजे से प्रातः 6:00 बजे तक, प्रातः 6:30 बजे से प्रातः 9:30 बजे तक और प्रातः 11:00 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक है. भैयादूज (23 अक्टूबर, गुरुवार) कार्तिक शुद्ध द्वितीया यानी भैयादूज. भैयादूज के दिन बहनें अपने भाइयों को अपने घर बुलाकर मिष्ठान्न भोजन कराती हैं और उनकी आरती उतारती हैं. भाई अपनी बहनों को उपहार भेंट देते हैं. जगह-जगह आकाशदीप और दीप जलाकर दिवाली मनाई जाती है.