प्रश्नः क्याें समाज इस तरह प्रेम काे मार डालता है? क्याें? आखिर समाज का क्या स्वार्थ है? प्रेमानंद, तुम पूछाेगे, लेकिन प्रेम जैसी सुंदर, प्रेम जैसी महिमापूर्ण वस्तु काे क्याें समाज काट डालता है? और हर तरह से काटता है. हम बाल-विवाह कर देते थे- र्सिफ इसीलिए कि अगर युवक और युवतियां जवान हाे गए ताे कहीं प्रेम में न पड़ जाएं. खतरा है. इसके पहले कि प्रेम में पड़ें, उनका विवाह कर दाे. न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी.पहले से ही बांध दाे, स्वतंत्र रखाे ही मत, क्याेंकि स्वतंत्रता में खतरा है.खतरा यह था कि प्रेम न हिंदू काे पहचानता, न मुसलमान काे, न जैन काे, न बाैद्ध काे, न पारसी काे, न सिक्ख काे.जैन लड़का हिंदू लड़की के प्रेम में पड़ सकता है. चर्मकार का लड़का ब्राह्मण की लड़की के प्रेम में पड़ सकता है.
बाैद्ध की लड़की सिक्ख के प्रेम में पड़ सकती है. ईसाई की लड़की मुसलमान के प्रेम में पड़ सकती है. िफर कराेगे क्या? िफर बांधना मुश्किल हाे जाएगा. इसलिए पहले से ही इंतजाम कर लाे. अगर बांधना हाे ताे गंगाेत्री पर ही गंगा काे बांध लाे; वहां छाेटी-सी धार है, गाेमुख में से निकलती है. एक लुटिया में ही भरी जा सकती है. काेई बड़ी गागर की भी जरूरत नहीं, वहीं राेक दाे. अगर गंगासागर में पहुंच कर राेकना चाहा, िफर तुम्हारे वश के बाहर मामला है. िफर बात इतनी बड़ी हाे जाएगी. इसलिए हम शुरू से ही बीज ही नष्ट करने लगते हैं.मगर क्याें? आखिर क्या हित है? प्रेम काे नष्ट करने में क्या हित है?न्यस्त स्वार्थाें के हित हैं. सत्ताधिकारियाें के हित हैं.सत्ताधिकारी, िफर चाहे राजनेता हाें और चाहे धर्मगुरु हाें, उनके हित में यही है कि प्रेम काे नष्ट कर दाे. प्रेम के नष्ट हाेते और बहुत चीजें नष्ट हाे जाती हैं.
प्रेम इतनी बड़ी घटना है कि अगर उसकाे हमने किसी तरह रुकावट डाल दी ताे प्रतिभा ही नष्ट हाे जाती है. जिस व्यक्ति के जीवन में प्रेम श्वास नहीं लेता उस जीवन में प्रतिभा नहीं हाेती, बुद्धि नहीं हाेती. वह आदमी बुद्धू हाे जाता है. अरे जाे अपने प्रेम काे भी न बचा सका, अब और क्या बचाएगा? और समाज चाहता है कि तुममें प्रतिभा न हाे, क्याेंकि प्रतिभा खतरनाक है, क्रांतिकारी है. प्रतिभा से बगावत पैदा हाेती है, विद्राेह पैदा हाेता है. जहां प्रतिभा है वहां अंधानुकरण नहीं हाे सकता. प्रतिभाशाली व्यक्ति हां कहेगा तभी जब पाएगा कि बात हां कहने याेग्य है, अन्यथा नहीं कहेगा, इनकार करेगा.
प्रतिभा में विद्राेह छिपा है. और समाज के स्वार्थ तुम्हारेभीतर से विद्राेह काे बिलकुल बुझा देना चाहते हैं, चिनगारी भी नहीं छाेड़ना चाहते, ताकि तुम्हें गुलाम बनाया जा सके.राजनेता में और धर्मगुरु में पुरानी साजिश है, पुराना समझाैता है, पुराना जाेड़त्ताेड़ है, पुराना गठबंधन है. उन्हाेंने बांट रखा है आदमी काे कि तुम बाहर सम्हाल लाे, हम भीतर सम्हाल लेंगे. हमें भीतर हुकूमत करने दाे, तुम बाहर हुकूमत कराे.अगर मनुष्य में प्रतिभा हाे तुम साेचते हाे ये बुद्धू, जाे राजनेता बन कर बैठ जाते हैं, ये बैठ सकेंगे राजनेता बन कर? असंभव. अगर मनुष्य में प्रतिभा हाे ताे जिनकाे तुम राजधानियाें में इकट्ठा किए हाे, इनकाे तुम पागलखानाें में बंद कराेगे. ये तुम्हारे राष्ट्रपति और ये तुम्हारे प्रधानमंत्री और ये तुम्हारे राजनेता किसी भी हालत में सत्ता में नहीं हाे सकते.
प्रतिभा इनकाे बरदाश्त नहीं करेगी. इनकी हजार तरह की मूढ़ताएं, इनकी बुद्धूपन की बातें बरदाश्त न करेगी. इनके थाेथे वायदे, अब कब तक तुम धाेखा खाओगे.मगर तुम धाेखे पर धाेखा खाए चले जाते हाे. प्रतिभा ही नहीं है.देखने-साेचने की समझ ही नहीं है? ताे राजनेता के हित में है कि लाेगाें में प्रतिभा न हाे. बस इतनी बुद्धि रहे कि दफ्तर का काम कर लें, ाइल काे निपटा दें, रेलगाड़ी चला लें, रिक्शा खींच लें. इतनी प्रतिभा रह जाए बस कि उनकी उपयाेगिता बनी रहे, बस कामचलाऊ प्रतियाेगिता की जाे दुनिया है वहां वे कुशल सिद्ध हाें, इतनी प्रतिभा काी है. इतनी प्रतिभा ताे न्यूनतम प्रतिभा से ही पूरी हाे जाती है. तुम्हारे जीवन का शिखर कभी छुआ ही नहीं जाता. तुम्हारे भीतर जाे तलवार है उस पर धार कभी रखी ही नहीं जाती, उस पर जंग चढ़ाई जाती है.