सभी मानव बस्तियाें के बुनियादी ढांचे का ऑडिट हाेना चाहिये

07 Oct 2025 23:00:09
 
 

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पहाड़ी इलाकाें में जल-प्रलय ने नदियाें के साथ ही शहराें के जल-प्रबंधन की ओर हमारा ध्यान फिर से खींचा है. बेशक, इस साल मानसून ने विशेषकर जम्मू-कश्मीर, पंजाब, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में ज्यादा तबाही मचाई है, पर यहां जान-माल की क्षति कम हाे सकती थी, यदि हमने पूर्व की आपदाओं से सबक सीखा हाेता.यह काेई छिपा तथ्य नहीं है कि पहाड़ी राज्याें में नदियाें के पाट में कई ढांचे अनियाेजित तरीके से खड़े किए गए हैं.ये कैसे तैयार हुए, यह अलग बहस का विषय है, लेकिन इससे नदियाें का प्राकृतिक बहाव-क्षेत्र अवरुद्ध जरूर हाे गया. दुर्भाग्य से मैदानी इलाकाें की भी यही स्थिति है. शहराें का लगातार विस्तार हाे रहा है और पानी बहने का नैसर्गिक रास्ता रिहायशी क्षेत्र बनता जा रहा है. नतीजतन, अत्यधिक बारिश के कारण जब पानी अपने तेज वेग में बहता है, ताे सब कुछ बहा ले जाता है.
 
समायाेजित याेजना, यानी मास्टर प्लान की कमी भी इसकी एक बड़ी वजह है. कई शहराें में समावेशी याेजनाओं का अभाव है. अगर कहीं यह बनी भी है, ताे उसके क्रियान्वयन में तमाम तरह की चुनाैतियां हैं. जल निकासी प्रणाली का भी कई जगहाें पर अभाव है. हाेना ताे यह चाहिए था कि जहां मास्टर प्लान नहीं है, वहां जल- निकासी की काेई ठाेस याेजना अमल में लाई जाती. मगर ऐसा नहीं किया गया. अलबत्ता, नियमित रख-रखाव व मरम्मत के अभाव में अब ताे छाेटी-छाेटी नालियां भी बारिश में दम ताेड़ने लगी हैं.सीवर और सड़काें की खस्ता हालत ने शहराें की सूरत और बिगाड़ दी है. इनके नियमित देखभाल की काेई ठाेस व्यवस्था नहीं है. पहाड़ी राज्याें में भी आमताैर पर सड़काें की मरम्मत तब की जाती है, जब वे चलने के काबिल नहीं रहतीं. नियमित रूप से ध्यान न दिए जाने के कारण ही मैदानी इलाकाें में जलभराव की समस्या दिखती है, ताे पहाड़ी क्षेत्राें में भूस्खलन की.
 
फुटपाथाें के अतिक्रमण ने भी मुश्किलें बढ़ाई हैं. सामान्य बाढ़ ही नहीं, बादल फटने के कारण आने वाली ‘फ्लैश फ्लड’ भी इसीलिए ठहर जाती है, क्योंकि अतिक्रमण से नालियां अवरुद्ध रहती हैं. आलम यह है कि ज्यादातर जगहाें पर पैदल चलने वाले लाेग इसीलिए बड़ी संख्या में सड़काें पर दिखते हैं, क्योंकि वहां फुटपाथ या ताे हैं नहीं, या फिर अतिक्रमणकारियाें के कब्जे में हैं.
स्थानीय निकायाें में दक्ष लाेगाें के अभाव से यह समस्या और भी गहरा जाती है. याेजना-निर्माण और क्रियान्वयन, दाेनाें ही स्तराें पर कुशल हाथाें की देश में कमी है. इस कारण नियाेजन और रख-रखाव समय पर पूरे नहीं हाे पाते.मसलन, सुरक्षा संबंधी ऑडिट बमुश्किल हाे पा रहे हैं.जाहिर है, इन सब मुश्किलाें से जूझने के लिए पूंजी की दरकार है, जिसका अभाव बना हुआ है. नगर निकायाें के पास बजट की भारी कमी है.
 
माना जाता है कि शहर प्रबंधन के कामाें में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 10 से 12 प्रतिशत हिस्सा खर्च हाेना चाहिए, लेकिन अपने देश में यह एक प्रतिशत के आसपास है, यानी जहां 10 रुपये की जरूरत है, वहां सिर्फ एक रुपये का आवंटन हाे पा रहा है.
इस चुनाैतियाें से पार पाने के लिए कुछ काम किए जा सकते हैं. सबसे पहले, हमें ढांचागत व्यवस्था काे बेहतर बनाना हाेगा. सभी शहराें के लिए न सिर्फ मास्टर प्लान बनना चाहिए, बल्कि यह भी ध्यान रखना हाेगा कि वह व्यावहारिक बने. उसमें बुनियादी ढांचे के रख-रखाव काे लेकर भी अलग से आवंटन हाे. अभी नगर निकाय जाे बजट बनाते हैं, वह एक तयशुदा ढर्रे पर हाेता है. मसलन, पिछलेबजट से दस प्रतिशत अधिक बढ़ाकर नया बजट तैयार कर लिया जाता है. उसमें जरूरताें का ध्यान नहीं रखा जाता.
 
लिहाजा, स्थिति का वास्तविक आकलन करने हुए तमाम हितधारकाें के सहयाेग से बजट तैयार किया जाना चाहिए.इसी तरह, सुधार के उपायाें में जन-भागीदारी, काॅर्पाे रेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) और निजी क्षेत्र, सभी का सहयाेग लेना चाहिए. बेंगलुरु, इंदाैर जैसे शहराें में ऐसा हाे रहा है, जिस के कारण सार्वजनिक कामाें के लिए अच्छा-खासा बजट स्थानीय निकायाें के पास जमा हाे जाता है.तीसरा, जल-निकासी की बेहतर याेजना बनानी हाेगी.इसमें पानी के नियमित बहाव का आकलन ताे हाेना ही चाहिए. साथ ही ययह भी पता किया जाना चाहिए कि बारिश के समय स्थानीय जल-निकासी प्रणाली पर किस हद तक दबाव बढ़ जाता है. ‘स्टाॅर्म वाॅटर ड्रेनेज’ काे दुरुस्त करना हाेगा, जाे अभी या ताे बने नहीं हैं या उपयु्नत नहीं हैं. यह जल निकासी का एक बड़ा नाला हाेता है, जिसकी दरकार मैदानी और पहाड़ी, दाेनाें क्षेत्राें काे है. सड़काें काे सुगम बनाना और फुटपाथाें का ध्यान रखना भी जरूरी है.
 
कुछ महीने पहले सुप्रीम काेर्ट ने इस बाबत निर्देश भी दिया था, क्योंकि सड़काें की खराब दशा से जलभराव की आशंका बढ़ जाती है.अच्छी बात है कि केंद्र सरकार ने इस साल बजट में ‘अर्बन चैलेंज फंड’ की घाेषणा की है. इसमें 10 हजार कराेड़ रुपये का आवंटन किया गया है, जिसके तहत शहरी विकास की चुनाैतियाें का समाधान किया जाएगा और शहरी पुनर्विकास काे रचनात्मक परियाेजनाओं से बढ़ावा दिया जाएगा. ये पैसे इस आधार पर बांटे जाएंगे कि नगर निकाय और राज्य सरकार सार्वजनिक-निजी भागीदारी और बांड के माध्यम से तीन गुना पैसे जुटाएंगे. इस तरह 10 हजार कराेड़ रुपये का यह आवंटन 40 हजार कराेड़ रुपये का बन सकता है, जाे काफी बड़ी रकम है. इसके बेहतर इस्तेमाल के लिए हमें अपने शहराें काे तैयार करना हाेगा.
- के. के. पांडेय (प्राेफेसर, अर्बन मैनेजमेंट)
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