मध्य प्रदेश और राजस्थान में 12 बच्चाें की माैताें की हालिया खबरें जाे कथित ताैर पर दूषित कफ सिरप से जुड़ी हैं, जन स्वास्थ्य के दृष्टिकाेण से गंभीर चिंता का विषय हैं.हालांकि शुरुआत में यह बताया गया था कि दूषित कफ सिरप के कारण किडनी में गंभीर क्षति हुई है. लेकिन केंद्र सरकार ने किसी भी तरह के संदूषण से इन्कार किया है.वर्ष 2022 में गांबिया में भारत में निर्मित कफ सिरप से हाेने वाली माैताें से जुड़ी ऐसी ही खबरें सामने आई थीं. सरकार ने उन माैताें का भी खंडन किया था और दावा किया था कि उनका कफ सिरप से काेई संबंध नहीं है, लेकिन ऐसी घटनाओं से भारतीय दवाओं और सिरप की गुणवत्ता पर सवाल ताे उठते ही हैं.भारत काे दुनिया की फाॅर्मेसी माना जाता है, जाे देश के भीतर और अन्य निम्न व मध्यम आय वाले देशाें काे कम कीमत पर दवाइयां उपलब्ध कराता है.
भारत कम कीमत पर जेनेरिक दवाइयां भी बनाता है. ऐसे में, ये घटनाएं देश के लिए आर्थिक और सामाजिक रूप से हानिकारक हाे सकती हैं और जनता के विश्वास एवं दवाओं की वैश्विक प्रतिष्ठा काे ठेस पहुंचा सकती हैं. यह घटना व्यवस्थागत कमजाेरियाें काे उजागर करती है, जिनके लिए दवा नियमन और निरीक्षण में कमियाें, आपूर्ति श्रृंखला की कमजाेरियाें, असुरक्षित और अत्याधिक नुस्खे लिखने और देने के तरीकाें की जांच और जनता के विश्वास में आई कमी का विश्लेषण बेहद जरूरी है. सबसे पहले, रिपाेर्टाें के बाद अधिकारियाें ने नमूने जब्त कर लिए, जिनमें डायथिलीन ग्लाइकाेल (डीईजी) का स्तर खतरनाक रूप से उच्च पाया गया. डीईजी-दषित कफ सिरप काेई नई घटना नहीं है. गांबिया में बच्चाें की मृत्यु की एक अंतरराष्ट्रीय जांच में घटिया सिरप की पहचान की गई और 2022 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने चिकित्सा उत्पाद चेतावनी जारी की.
यह घटना दवा जांच की गड़बड़ियाें की ओर इशारा करती है और ऐसे मामलाें में सरकारी अधिकारियाें के प्रति जनता के मन में संदेह पैदा हाेता है. ऐसी माैतें और सरकारी एजेंसियाें की विराेधाभासी रिपाेर्ट भारतीय दवाओं के विदेशी खरीदाराें के विश्वास काे भी प्रभावित कर सकती हैं. इसदशा में ठाेस कदम उठाए जाने की जरुरत है. दवाओं के निर्माण में जिनमें सिरप भी शामिल हैं. हर कदम पर, यानी परिवहन के लिए प्रमाणित आपूर्तिकर्ता मजबूत आंतरिक परीक्षण, कड़े बैच नियंत्रण और पारदर्शी आपूर्ति-श्रृंखला रिकाॅर्ड इत्यादि पर गुणवत्ता आश्वासन की आवश्यकता हाेती है. जब इनमें से एक भी कड़ी टूटती है, ताे परिणाम भयावह हाे सकते हैं. दीर्घवधि में, नियामकाें काे घटना हाे जाने पर सक्रिय हाेने की जगह घटना से पहले ही सक्रिय राेकथाम की ओर बढ़ना हाेगा. बेहतर विनिर्माण पद्धति (जीएमपी) ऑडिट, रियल-टाइम बैच ट्रेकिंग,और एक ऐसी उद्याेग संस्कृति विकसित करनी हाेगी. जहां दवा अनुपालन काे बढ़ावा मिले, न कि उसे टाला जाए.
यह स्थिति खांसी की दवा जैसी दवाओं के अत्याधिक उपयाेग या डाॅ्नटर के पर्चे के बिना ली गई दवाओं की याद भी दिलाती है. खांसी अपने-आप में काेई बीमारी नहीं है, बल्कि अंतनिर्हित बीमारी का एक लक्षण है. ज्यादातर मामलाें में, यह अपने आप ठीक हाे जाती है और खांसी की दवा केवल सहायक देखभाल के काम आती है. लेकिन भारत में खांसी से राहत पाने के लिए बिना डाॅ्नटर के पर्चे के दवा का इस्तेमाल किया जाता है.नतीजा है कि बच्चाें के लिए सिरप का व्यापक और अ्नसर अनावश्यक इस्तेमाल, जिससे मांग बढ़ती है और तेजी से उत्पादन और वितरण काे बढ़ावा मिलता है. यह मांग बदले में, कम लागत वाले या अनुचित तरीके से परीक्षण किए गए उत्पादाें के बाजार में आने का जाेखिम बढ़ा देती है.
भारत में खुदरा दवाइयाें का एक बहुत बड़ा परिस्थितिकी तंत्र है. सामुदायिक फार्मेसी सर्वेक्षणाें और क्षेत्रीय अध्ययनाें का अनुमान है कि देश भर में आठ लाख लाइसेंस प्राप्त खुदरा दुकानें हैं. केंद्र और राज्य स्तर पर औषधि निरीक्षकाें के पद लंबे समय से र्नित हैं. हालिया रिपाेर्टाेर् से पता चलाता है कि केंद्रीय एजेसियाें में सैकड़ाें स्वीकृत निरीक्षक के पद खाली पड़े हैं. जिससे उनका निरीक्षण नहीं हाे पाता और राज्य भी इसी तरह की कमियाें की रिपाेर्ट कर रहे हैं.नियामकाें और फामेंसियाें के अलावा, दवा प्रचार प्रथाओं में भी सुधार की आवश्यकता है. आक्रामक विपणन राेगियाें काे नुकसान पहुंचाते हैं और चिकित्सकाें काे अधिक दवा लिखने के लिए प्रभावित करते हैं. साथ ही, भारत काे जेनेरिक दवाओं काे बढ़ावा देते रहना चाहिए, पर बाजार में आने के बाद कड़ी निगरानी और स्वतंत्र गुणवत्ता सत्यापन के साथ. ताकि चिकित्सकाें और आम जनता काे यह विश्वास दिलाया जा सके कि जेनेरिक दवाएं न केवल सस्ती हैं, बल्कि सुरक्षित और उतनी ही कारगर भी हैं.
दाे राज्याें में हुई बच्चाें की माैताें से स्थानीय फार्मासिस्टाें, चिकित्सकाें और नियामकाें पर भराेसा कम हाे रहा है, इस आपदा काे रचनात्मक सुधार में बदलने के लिए दवाओं और औषधियाें के उत्पादन, बिक्री और आपूर्ति के बेहतर नियमन और गुणवत्ता नियंत्रण की आवश्यकता है. दूसरा, स्वीकृत औषधि निरीक्षकाें के र्नित पदाें काे तत्काल भरना चाहिए.फार्मेसियाें और अस्पतालाें से निरंतर निगरानी की व्यवस्था हाेनी चाहिए. तीसरा, तर्कसंगत दवाइयां और जनता में जागरूकता काे बढ़ावा देना चाहिए. सार्वजनिक शिक्षा में निवेश करना चाहिए. ताकि माता-पिता अनावश्यक दवाओं की मांग कम करें. चाैथा, दवाओं की मंजूरी राज्य सरकाराें के अधीन है. राज्य सरकाराें की विनियमन क्षमता लचीली है, और मंजूरी में भ्रष्टाचार की भी खबरें आती रहती हैं. राज्य दवा नियामक निकायाें की क्षमता निर्माण की आवश्यकता है. - डाॅ.चंद्रकांत लहरिया वरिष्ठ चिकित्सक