दान का मतलब मांगना नहीं बल्कि देना है!

26 Nov 2025 22:12:34
 

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दान धर्म का मूल है. और ख्याल रखना, िफर दाेहरा दूं. अक्सर तुमने साेच लिया है कि दान यानी धन का दान. क्याेंकि हम धन के ऐसे दीवाने हैं कि हम संसार के संबंध में साेचते, ताे धन के संबंध में साेचते. और धर्म के संबंध में साेचते हैं, ताे भी धन के संबंध में साेचते हैं! हमारा धन पर ऐसा रुग्ण माेह है! ताे जब काेई कहता है दान, ताे तत्क्षण तुम्हें ख्याल आता है : मेरे पास क्या है? शायद यह भी ख्याल आता हाे कि ठीक है, दान हाेना चाहिए; काेई मुझे दे! मैंने सुना है : एक धनपति गांव में था, कभी किसी काे कुछ न दिया था. िफर भी लाेग जाते थे, क्याेंकि वह सब से बड़ा धनपति था. शायद आज नहीं दिया, कल दे, परसाें दे.गांव में काेई गरीबाें के लिए भाेज का आयाेजन हाे रहा था. लाेगाें ने साेचा : इसमें ताे दे देगा. अकाल पड़ा था. ताे लाेग गए. उस धनपति ने उनकी बातें सुनीं.
 
उन्हाेंने कहा कि दान की बड़ी महिमा है. दान से ही व्यक्ति स्वर्ग जाते हैं, दान सीढ़ी है. उसे उन्हाेंने प्रसन्न देखा, खुला देखा, ताे और दान की प्रशंसा की. आशा बंधी कि शायद आज कुछ देगा! लेकिन आशा जल्दी ही निराशा में बदल गयी. उस आदमी ने कहा : बिल्कुल ठीक! उस धनपति ने कहा : आप बिल्कुल ठीक कहते हैं. कहा : चलाे मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूं. उन्हाेंने कहा. कहां साथ चलते हैं! कुछान दें. उसने कहा : नहीं, मैं भी साथ चलता हूं ताकि लाेगाें काे दान देने के लिए समझाएंगे. जब दान की इतनी महिमा है, ताे मैं यहां बैठा नहीं रहूंगा, मैं भी चलूंगा तुम्हारे साथ और लाेगाें काे समझाऊंगा कि दान दाे.दान देने की बात जाे करते हैं, हाे सकता है, वे भी र्सिफ दान से बचने के लिए दान देने की बात कर रहे हाें.यह धनपति जाने काे राजी है! दान के प्रचार के लिए राजी है. यह कहता है. जब ऐसी महत्वपूर्ण बात है, ताे मैं भी प्रचार करूंगा. लेकिन देने का भाव नहीं उठता.
 
देने की हमारे भीतर भावना ही पैदा नहीं हाेती. हमने जन्माें-जन्माें से नहीं दिया है. हमने कुछ भी नहीं दिया है. हम सदा भिखमंगे हैं. हम सदा मांग रहे हैं. जब लाेग कहते हैं : प्रेम, तब भी वे प्रेम मांगते हैं, देते नहीं. जाे देता है, उसे ताे बहुत मिलता है. उसे मांगना नहीं पड़ता.उसे हजार गुना मिलता है. लाख गुना मिलता है. कराेड़ गुना मिलता है. लेकिन लाेग कहते हैं कि काेई हमें प्रेम नहीं करता! मेरे पास लाेग राेज आते हैं, वे कहते हैं. क्या करें? जीवन में प्रेम नहीं मिलता! कैसे प्रेम मिले? शायद ही काेई आकर पूछता हाे कि मैं प्रेम देना चाहता हूं, काेई लेने वाला नहीं मिलता.अगर तुम प्रेम देना चाहाे, ताे लेने वाले ताे बहुत मिलेंगे, क्याेंकि सारे लाेग प्रेम के भूखे हैं. तुम दाेगे, ताे तुम्हें मिलेगा. दिए बिना किसी काे नहीं मिलता.
 
लेकिन लाेग मतलब भी अपने निकाल लेते हैं! अब दान की इतनी महिमा शास्त्राें ने कही है, इसका परिणाम यह हुआ कि पंडित-पुराेहिताें ने दान का धंधा बना लिया. वे समझाने लगे लाेगाें काे कि दान दाे.शास्त्र का उन्हाेंने शाेषण कर लिया. शास्त्र से भी मतलब की बात निकाल ली. भिखमंगा भी रास्ते पर खड़ा हाेकर कहता है कि दान से बड़ा धर्म नहीं है. दान दाे. अगर न दाे, ताे उसकी आंखाें में तुम्हारे प्रति घृणा है.भिखमंगा दान से जी रहा है. तुम्हारे साधुसंत भी दान से जी रहे हैं. तुम्हारे पंडित-पुराेहित भी दान से जी रहे हैं.लेकिन सब चूक गए हैं बात.
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