बहुत लंबे समय तक महंगाई आम भारतीयाें की बड़ी चिंताओं में से एक रही है, लेकिन इस व्नत तस्वीर उल्टी दिख रही है. खुदरा महंगाई बढ़ने की दर और उपभाे्नता मूल्य सूचकांक, यानी सीपीआई, दाेनाें में जबर्दस्त गिरावट दिख रही है. रिजर्व बैंक का लक्ष्य है कि महंगाई दर काे चार प्रतिशत या उससे दाे फीसदी ऊपर-नीचे के दायरे में रखा जाए. यानी, एक अच्छी अर्थव्यवस्था में दाे से छह प्रतिशत तक की महंगाई दर काे बर्दाश्त करने लायक माना जाता है.छह प्रतिशत से ऊपर महंगाई का मतलब हाेता है कि हालात ठीक नहीं हैं, लेकिन दाे फीसदी से कम हाेने का मतलब भी कुछ ऐसा ही हाेता है. जनवरी में भारत की खुदरा महंगाई दर 4.3 प्रतिशत थी, जाे अब गिरकर 0.25 फीसदी पर पहुंच गई है. थाेक महंगाई दर ताे शून्य के भी नीचे यानी (-) 1.21 प्रतिशत पर है. शून्य के नीचे हाेने का अर्थ है कि दाम बढ़ने के बजाय गिर रहे हैं.
सुनकर ताे यह अच्छा लगता है, लेकिन ्नया वास्तव में यह अच्छी हालत है? बहुत से लाेग पूछ रहे हैं कि महंगाई अगर 1979 के बाद के सबसे निचले स्तर पर आ गई है, ताे बाजार में इसका असर क्यों नहीं दिखता? वहां ताे चीजें सस्ती नहीं मिल रही हैं! यहां इस किस्से में एक पेच है. अर्थशास्त्र की भाषा में इसे ‘बेस इफे्नट’ कहते हैं, यानी जिस चीज काे आप देख रहे हैं, उसकी तुलना किससे कर रहे हैं? महंगाई के मामले में यह तुलना हाेती है एक साल पहले के आंकड़ें से. इस व्नत महंगाई दर में जबर्दस्त गिरावट दिखने की वजह यह भी है कि पिछले साल इन्हीं महीनाें में महंगाई की चाल ऊपर की ओर थी. इसे यूं भी समझ सकते हैं कि अगर पिछले साल सितंबर के मुकाबले अ्नटूबर में महंगाई में तेज बढ़त थी और इस साल सितंबर और अ्नटूबर में दाम बराबर रहे, तब भी अ्नटूबर में महंगाई का आंकड़ा गिरावट दिखाएगा.
यह बात सिर्फ अ्नटूबर की नहीं है. अप्रैल, मई, जून, जुलाई और सितंबर में भी यही असर पड़ रहा था, कहीं कम ताे कहीं ज्यादा.
लेकिन अब जब महंगाई दर काफी नीचे पहुंच चुकी है, ताे इसका उल्टा असर शुरू हाेता है. आंकड़ाें का विश्लेषण रने वाली एक रिपाेर्ट का अनुमान है कि तीन महीनाें तक महंगाई दर शून्य से नीचे दिख सकती है. इसका मतलब यह हाेगा कि फिर अगले साल इन्हीं महीनाें में ‘बेस इफे्नट’ का असर उल्टा दिखेगा और तब अचानक महंगाई तेज दिखने लगेगी.महंगाई के आंकड़े में इस बार एक-दाे बातें और देखने लायक हैं. एक ताे महंगाई कम हाेने की सबसे बड़ी वजह है, खाने-पीने की चीजाें के दाम गिरना. अ्नटूबर में खाद्य महंगाई दर शून्य से पांच प्रतिशत नीचे के रिकाॅर्ड स्तर पर थी.
उपभाे्नता मूल्य सूचकांक में इसकी हिस्सेदारी 39 प्रतिशत की है. जाहिर है, यह गिरेगा, ताे महंगाई गिरेगी, लेकिन इसके साथ एक चिंता भी जुड़ी है. खाने-पीने की कुछ चीजाें के दाम तेजी से गिरते-उठते हैं. एक या दाे चीजाें के दाम में तेज उतार-चढ़ाव भी महंगाई के आंकड़े काे बना या बिगाड़ सकता है. इसी तरह की रफ्तार पेट्राेल, डीजल, गैस वगैरह के दाम में भी दिखती है, क्योंकि कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय भावाें का असर उन पर पड़ता है.
इसीलिए अर्थशास्त्री लंबे दाैर में महंगाई का रुख समझने के लिए ‘काेर इनफ्लेशन’ का इस्तेमाल करते हैं. यहां महंगाई दर में वह आंकड़ा इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें खाद्य पदार्थाें व ऊर्जा काे बाहर करके बाकी हिसाब जाेड़ा जाता है. इस कसाैटी पर महंगाई की तस्वीर कुछ और हाे जाती है.
यहां महंगाई का आंकड़ा 4.4 प्रतिशत पर दिख रहा है. शायद यही उस सवाल का जवाब है कि महंगाई इतनी कमहाे गई है, ताे बाजार में दिखती क्यों नहीं? ऐसा इसलिए भी हाेता है, क्योंकि एक मध्यवर्गीय परिवार के ज्यादातर जरूरी खर्च यहीं जाेड़े जाते हैं. घर का किराया, स्कूल की फीस, दवा, र्निशा, टै्नसी या बस, ट्रेन के किराये, रेस्तरां में खाने का खर्च और सभी तरह की सेवाओं की फीस इसमें शामिल हाेती है. यह वे खर्च हैं, जिनमें कमी नहीं हाे रही, बल्कि इनमें से कई धीरे-धीरे बढ़े ही हैं.इस बार महंगाई का गणित बिगाड़ने वाली एक और चीज है- साेने-चांदी का भाव. इन दाेनाें के दाम बेतहाशा बढ़े हैं और इसका असर भी काेर महंगाई पर दिख रहा है.हालांकि, महंगाई के आंकड़े में इनका वजन बहुत नहीं है, पर बढ़ते दाम के साथ इनका दबदबा भी बढ़ रहा है. उपलब्ध आंकड़ाें के हिसाब से जहां पिछले साल की शुरुआत में इन दाेनाें धातुओं का महंगाई के आंकड़े में एक फीसदी के दसवें हिस्से से भी कम का याेगदान था, वहीं इस अ्नटूबर तक यह बढ़कर 0.88 प्रतिशत तक पहुंच चुका है. लगभग दस गुना.
अगर यह सब दरकिनार करके मान लिया जाए कि महंगाई दर में तेज गिरावट आ चुकी है और आगे भी कुछ समय तक आती रहेगी, ताे ्नया यह खुशखबरी नहीं है? आखिर रिजर्व बैंक महंगाई दर काे चार प्रतिशत पर क्यों रखना चाहता है? जवाब यह है कि अगर चीजाें के दाम बढ़ेंगे नहीं, ताे व्यापारियाें के लिए उन्हें बनाना व बेचना फायदे का साैदा नहीं रह जाएगा. तब उनकी और देश की तर्नकी कैसे हाेगी? बहुत कम महंगाई का मतलब यह भी माना जाता है कि बाजार में मांग कम हाे रही है, लाेग पैसे खर्च नहीं करना चाहते और इसीलिए व्यापारी दाम बढ़ाने की स्थिति में नहीं हैं. कंपनियां अगर दाम नहीं बढ़ा पाएंगी, ताे वह नया निवेश क्यों करेंगी? साल 1990 तक जापान दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाता था, लेकिन उसके बाद कई साल तक वहां महंगाई दर शून्य हाे गई. इससे जाे संकट पैदा हुआ, आज तीस साल बाद भी जापान उससे उबरने की काेशिश में लगा है. -आलाेक जाेशी