वसीयत का ‌‘नोटराइज' होना अनिवार्य

30 Nov 2025 15:16:07
 
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परिवार, संपत्ति, उपभोक्ता अधिकार और महिलाओं की सुरक्षा जैसे विषयों में अक्सर जटिल परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं. ऐसे समय में सही कानूनी मार्गदर्शन अत्यंत आवश्यक होता है. यहाँ दत्तक प्रक्रिया, वसीयत की वैधता, वॉरंटी अधिकार, 498 मामलों में प्रारंभिक कदम और महिलाओं के निवास अधिकार से जुड़े पांच महत्वपूर्ण प्रश्नों के सरल और स्पष्ट उत्तर प्रस्तुत किए गए हैं.
 
संरक्षण एड. भालचंद्र धापटे मोबाइल-9850166213  
 
सवाल-हमारी शादी को पांच साल हो चुके हैं. संतान न होने के कारण हम दत्तक ग्रहण करने का विचार कर रहे हैं. तो दत्तक लेने की प्रक्रिया क्या है?
उत्तर- भारत में दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया पूरी तरह न्यायालय की निगरानी में तथा जुवेनाइल जस्टिस केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन एक्ट 2015 और C ARA Regulations के आधार पर पूरी होती है. इसमें सबसे पहले आपको केंद्रीय दत्तक प्राधिकरण अर्थात C ARA की वेबसाइट पर वैध पंजीकरण करना आवश्यक होता है. पंजीकरण के बाद अधिकृत स्पेशलाइज्ड अडॉप्शन एजेंसी आपकी मुलाकात, घर का निरीक्षण, आर्थिक स्थिति, स्वास्थ्य, पारिवारिक वातावरण और बच्चे को पालने की तैयारी जैसे सभी पहलुओं का विस्तृत होम स्टडी रिपोर्ट तैयार करती है. यह रिपोर्ट स्वीकृत होने के बाद दत्तक के लिए उपलब्ध बच्चों की सूची आपके सामने रखी जाती है और बच्चे तथा आपके बीच मैचिंग की प्रक्रिया की जाती है. मैचिंग के बाद एजेंसी आपको बच्चे को देखने और कुछ समय उसके साथ रहने की अनुमति देती है, जिसे प्री अडॉप्शन फोस्टर केयर कहा जाता है. इस अवधि में आप बच्चे की पूरी जानकारी, स्वास्थ्य रिकॉर्ड, विकास और अन्य आवश्यक पहलुओं का अध्ययन करके अंतिम निर्णय ले सकते हैं. अंतिम चरण में सक्षम जिला न्यायालय में दत्तक के लिए आवेदन प्रस्तुत किया जाता है. न्यायालय सभी दस्तावेजों की जांच, आपकी पात्रता, बच्चे के हित और पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित करके दत्तक आदेश जारी करता है. आदेश प्राप्त होते ही बच्चे के सभी कानूनी अधिकार आपके नाम हो जाते हैं और आप उसके वैध अभिभावक बन जाते हैं.
 सवाल- हमारे पिता ने वसीयत बनाई है, लेकिन वह नोटराइज नहीं है, केवल हाथ से लिखी गई है. वसीयत में पिता ने संपत्ति मुझे दी है. तो क्या यह संपत्ति मुझे मिलेगी या मेरे भाई को भी मिलेगी और इसमें क्या कानूनी अड़चनें होंगी?
उत्तर-हाथ से लिखी गई वसीयत अर्थात होलोग्राफ विल भारतीय कानून के अनुसार पूरी तरह वैध मानी जाती है, बशर्ते वह स्पष्ट, पठनीय, पिता के पूर्ण होश में लिखी गई हो और दो गवाहों के हस्ताक्षर से प्रमाणित हो. वसीयत का नोटराइज होना अनिवार्य नहीं है, इसलिए केवल नोटराइज न होने से वह अवैध नहीं होती. यदि ऐसी वसीयत में पिता ने संपत्ति केवल आपके नाम की हो, तो उस संपत्ति पर आपका स्वतंत्र अधिकार बन जाता है. लेकिन आपका भाई यदि इस वसीयत को झूठा, दबाव में लिखवाई हुई या पिता उस समय शारीरिक या मानसिक रूप से अस्वस्थ थे, ऐसा आरोप लगाता है, तो उसे नागरिक न्यायालय में प्रोबेट के माध्यम से वसीयत की वैधता को चुनौती देने का अधिकार होता है. ऐसी स्थिति में न्यायालय गवाहों के बयान, पिता की उस समय की मानसिक व शारीरिक स्थिति, उनकी लिखावट की समानता और वसीयत की प्रत्येक बात की सच्चाई की जांच करता है. वसीयत सही सिद्ध होने पर संपत्ति आपका अधिकार बनती है और भाई कोई दावा नहीं कर सकता. लेकिन वसीयत अवैध सिद्ध होने पर संपत्ति सभी कानूनी वारिसों में समान रूप से बांटी जा सकती है.
सवाल-मैंने कुछ दिन पहले टीवी खरीदा था. वह अभी वॉरंटी में है, लेकिन खराब हो गया है. तो मैं क्या कर सकता हूँ?
जबाव- टीवी वॉरंटी अवधि में खराब होने पर ग्राहक संरक्षण कानूनों के अनुसार कंपनी की जिम्मेदारी स्पष्ट होती है. आप सबसे पहले खरीद की रसीद, वॉरंटी कार्ड और खराबी का विवरण अधिकृत सर्विस सेंटर में लिखित रूप में दर्ज कराएं. कंपनी को वॉरंटी की शर्तों के अनुसार टीवी की मुफ्त मरम्मत करना, जरूरत पड़ने पर पार्ट्स बदलना या गंभीर खराबी होने पर पूरा उत्पाद बदलकर देना अनिवार्य होता है. यदि कंपनी विलंब करती है, तो उनसे लिखित स्पष्टीकरण मांगें. कंपनी ने जानबूझकर देर की या दोष दूर नहीं किया, तो आप जिला उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज कर सकते हैं और मरम्मत, उत्पाद बदलने या क्षतिपूर्ति की मांग कर सकते हैं. उपभोक्ता आयोग तेजी से आदेश देने का अधिकार रखता है और सेवा में कमी पाए जाने पर ग्राहक के पक्ष में निर्णय देता है. सवाल-मेरी पत्नी ने मेरे खिलाफ 498 ए की एफआईआर दर्ज कराई है. तो मैं सबसे पहले क्या करूँ? उत्तर-498 एक गंभीर अपराध माना जाता है और इसमें तुरंत गिरफ्तारी की संभावना रहती है. इसलिए पहला कदम सक्षम न्यायालय में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन करना होता है. साथ ही एफआईआर की प्रति लेकर अपनी तरफ के सभी सबूत जैसे मोबाइल संदेश, कॉल रिकॉर्ड, व्यवहार संबंधी पुरानी बातें, आर्थिक लेनदेन के प्रमाण, पत्नी की पूर्व की धमकियाँ या विवाद जैसे दस्तावेज एकत्र करना आवश्यक है. पुलिस जांच में उपस्थित रहना जरूरी है, लेकिन कोई भी बयान या लिखित स्पष्टीकरण वकील के मार्गदर्शन के बिना न दें. यदि मामला झूठा प्रतीत हो रहा हो, तो आप झूठी शिकायत देने पर उसके खिलाफ कार्रवाई की प्रक्रिया भी शुरू कर सकते हैं. इसके अलावा, पारिवारिक विवाद को सुलझाने और घरेलू हिंसा न होने की स्थिति स्पष्ट करने के लिए न्यायालय काउंसलिंग या मेडिएशन का विकल्प भी उपलब्ध कराता है.

सवाल-मेरे पति मिलिट्री में हैं, इसलिए घर पर नहीं होते, लेकिन मेरे सास ससुर ने मुझे परेशान करके घर से बाहर निकाल दिया है. तो मैं क्या कर सकती हूँ?
जबाव-
महिला को उसके वैवाहिक घर में रहने का मूलभूत अधिकार प्रोटेक्शन ऑफ वुमन फ्रॉम डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट 2005 में स्पष्ट रूप से दिया गया है. सास ससुर द्वारा परेशान करके घर से निकाल देने की स्थिति में आप स्थानीय पुलिस स्टेशन या महिला संरक्षण अधिकारी के पास शिकायत दर्ज कर सकती हैं और तुरंत संरक्षण आदेश, निवास का अधिकार तथा आवश्यकता होने पर आर्थिक सहायता मांग सकती हैं. न्यायालय ऐसे मामलों में महिला को सुरक्षित आश्रय, किराए की व्यवस्था या उसके वैवाहिक घर में पुनः प्रवेश का आदेश दे सकता है. आपके पति का मिलिट्री में होना कोई अपवाद नहीं है, आपके संरक्षण और निवास की कानूनी जिम्मेदारी उन पर और उनके परिवार पर समान रूप से लागू होती है. यदि आप चाहें तो घरेलू हिंसा मामले के तहत मानसिक उत्पीड़न, शारीरिक यातना, आर्थिक शोषण या घर से निकाल देने के लिए क्षतिपूर्ति की मांग भी कर सकती हैं. न्यायालय ऐसे मामलों में महिला पक्ष को तुरंत संरक्षण देने की प्रवृत्ति रखता है.  
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