जंक फूड के ज्यादा सेवन से राेग बढ़ने के सबूत सामने आ रहे हैं !

02 Dec 2025 21:05:23
 

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जानी-मानी मेडिकल पत्रिका, द लैंसेट ने इंसान के भाेजन में अल्ट्रा-प्राेसेस्ड फूड (अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ), आमताैर पर जिसे जंक फूड कहा जाता है, के बढ़ते इस्तेमाल पर शाेधपत्राें की एक शृंखला प्रकाशित की है. जिसमें बताया गया कि ये खाद्य पदार्थ कैसे सार्वजनिक स्वास्थ्य काे अनदेखा कर रहे हैं, दीर्घकालिक राेग पैदा कर रहे हैं, व सेहत असमानता बढ़ा रहे हैं.अधिकांश खाद्य पदार्थ कुछ हद तक प्रसंस्करण से गुज़रते हैं-गेहूं पीसकर आटा बनाना और चावल व दाल की मिलिंग कर उन्हें पकाने या सुरक्षित रखने लायक बनाना. समस्या पैदा हाेती है जब कृषि उत्पाद कारखानाें में अत्यधिक प्राेसेस किये जाते हैं, उन्हें स्वस्थ, कुदरती बताकर पैक, ब्रांडेड व विपणन किया जाता है. भाेजन काे प्रसंस्कृत करने और सुरक्षित रखने के परंपरागत तरीके जैसे सुखाना, ठंडा करना, फ्रीज़ करना, पाश्चराइजेशन, फर्मेंटेशन, बेकिंग और बाॅटलिंग, खाने के कुदरती स्वरूप काे काफी हद तक बनाए रखते हैं, लंबे समय कायम रखते हैं व स्वाद भी बढ़ाते हैं.
 
दूसरी ओर, अल्ट्रा-प्राेसेसिंग भाेजन पदार्थ के अवयवाें में रासायनिक बदलाव कर देते हैं, उनमें एडिटिव्स मिलाकर रेडी-टू-कंज्यूम या लंबे समय बने रहने वाले उत्पाद में परिवर्तित कर देते हैं.अल्ट्रा-प्राेसेस्ड फूड के ऐसे उदाहरणाें में मीठे ड्रिंक्स, पैकेज्ड स्नैक्स, पाेटैटाे चिप्स, इंस्टेंट नूडल्स, रीकाॅन्सटिट्यूटेड मीट, कुछ ब्रेकफास्ट सीरियल्स और फ्लेवर्ड याेगर्ट शामिल हैं.ऐसे उत्पादाें के ज़्यादा इस्तेमाल से ताज़ा या कम प्राेसेस्ड भाेज्य पदार्थ खुराक से बाहर हाे जाता है और माेटापा, हृदय राेग, मधुमेह और अन्य सेहत समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है. ये उत्पाद धरती की सेहत के लिए भी हानिकरक हैं. इनके उत्पादन व परिवहन में बहुत ज़्यादा जैविक ईंधन खर्च हाेता है, और पैकेजिंग, जाे ज़्यादातर प्लास्टिक की हाेती है, कचरा पैदा करती है.द लैंसेट शृंखला ने कई अध्ययनाें के सबूताें का विश्लेषण किया है, जाे दर्शाता है कि दुनिया भर में दीर्घकाल से प्रचलित भाेजन करने के रिवायती ढंग की जगह अल्ट्रा-प्राेसेस्ड खाना ले रहा है, और यह चलन तेज़ी से उन इलाकाें में भी फैल रहा है जहां जंक फूड अभी ज़्यादा नहीं था.
 
दूसरा, सबूत पुख्ता करता है कि अल्ट्रा-प्राेसेस्ड खाने के ताैर-तरीके अपनाने से खुराक की गुणवत्ता काफी हद तक खराब हाे जाती है.तीसरा, एकत्रित सबूत बताते हैं कि दीर्घकाल से कायम भाेजन के ढंग की जगह अल्ट्रा प्राेसेस्ड फूड द्वारा ले लेना, दुनिया में खुराक से जुड़े, कई दीर्घकालिक राेगाें के बढ़ते बाेझ का एक मुख्य कारक है.जंक फूड के ज़्यादा इस्तेमाल से जीवनशैली संबंधी राेगाें की बढ़ती संख्या से जाेड़ने वाले इतने सारे सबूत देखने के बावजूद, नीति नियंता और सरकारें निर्णय लेने में धीमी क्याें हैं? ऐसा इसलिए कि जंक फूड इंडस्ट्री इतनी ताकतवर है कि यह लाॅबिंग, मार्केटिंग और जन संपर्क के ज़रिए नियम व नीति निर्माण प्रक्रिया काे प्रभावित करती रहती है. द लैंसेट शृंखला में दिखाया गया डेटा हैरानीजनक है. 2024 में, शीर्ष तीन फूड काॅर्पाेरेशन-काेका काेला, पेप्सिकाे और माेंडेलेज़- ने विज्ञापन पर कुल 13.2 बिलियन डाॅलर खर्च किए. यह विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यकारी बजट का करीब चार गुना है.
 
जंक फूड मार्केटिंग का उद्देश्य सांस्कृतिक पसंद प्रभावित कर मांग पैदा करना और अस्वास्थ्यकारी भाेजन पदार्थाें का आम प्रचलन बनाना है. जंक फूड कंपनियाें काे उनकी वैश्विक उत्पादन एवं विपणन सामर्थ्य राजनीतिक ताकत प्रदान करती है.मसलन, काेका-काेला की 200 देशाें के बाजाराें में राेज़ाना 2.2 बिलियन बाेतलें या ड्रिंक्स केन बिकते हैं, जिसकी आपूर्ति 950 बाॅटलिंग प्लांट संचालक 200 पार्टनर करते हैं. कंपनियां सरकाराें के फैसलाें काे धमकी देकर प्रभावित करती हैं कि उनके धंधा शिफ्ट करने पर नाैकरियां, निवेश हाथ से निकल जाएंगे.सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञाें ने काॅर्पाेरेट जगत की राजनीतिक गतिविधियाें की पहचान अल्ट्रा-प्राेसेस्ड फूड संबंधी नुकसान कम करने हेतु असरदार पब्लिक नीतियां लागू करने में बड़ी बाधा के ताैर पर की है. अतिविशाल कंपनियाें द्वारा इस्तेमाल किए वाले ढंग तंबाकू, शराब उद्याेग के तरीकाें जैसे हैं. उनका मकसद विराेध से निपटना और नियामक राेकना है, और यह काम वे अपने आनुषंगिक गुटाें और अपने पैसे से बनाए शाेध साझेदाराें के वैश्विक नेटवर्क के ज़रिए करते हैं.
 
लाॅबिंग के अलावा, वे सरकारी एजेंसियाें में अपने लाेगाें की घुसपैठ करते हैं, काॅर्पाेरेट अनुकूल प्रशासनिक माॅडल व नियामक काे बढ़ावा देते हैं, और मवैज्ञानिक भ्रमम बनाने की काेशिश करते हैं.भारत में यह सब खाद्य नियामक एजेंसियाें के काम के तरीके में साफ दिखता है. राेचक कि जंक फूड इंडस्ट्री के संगठनाें ने खाद्य नियामक के साथ अलग-अलग स्वास्थ्य जागरूकता प्रचार प्राेजक्ट्स में साझेदारी कर रखी है, जाे सार्वजनिक स्वास्थ्य का मखाैल है. सरकार और नियामक, ज़्यादा वसा, चीनी व नमक वाले अल्ट्रा-प्राेसेस्ड फूड की साफ परिभाषा बनाने से हिचकिचा रहे हैं. साल 2017 के नाॅन-कम्युनिकेबल डिज़ीज़ पर राष्ट्रीय बहु-क्षेत्रीय कार्यकारी याेजना कार्यक्रम में अधिक वसा, चीनी, नमक वाले खाद्य उत्पादाें के विज्ञापन पर राेक के लिए विज्ञापन संहिता एवं पत्रकारिता आचरण नियमाें में बदलाव करने की बात कही गई थी, लेकिन अभी तक लागू नहीं किया. खाद्य प्रसंस्करण उद्याेग मंत्रालय की स्थापना हुई ताे थी किसानाें की मदद के इरादे से, लेकिन काम करने लगी जंक फूड इंडस्ट्री काे बढ़ावा देने और सब्सिडी बांटने का. -दिनेश सी.शर्मा
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