शिवाजीनगर, 21 दिसंबर (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क) इकोनॉमिक पॉलिसी थिंक टैंक NC ER और इन्वेस्टमेंट फर्म प्रोसस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म पर लिस्टेड लगभग एक तिहाई रेस्टोरेंट ने कहा कि वे बढ़ते कमीशन और कम प्रॉफिट के कारण उनका इस्तेमाल बंद कर देंगे. रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वे में शामिल 30% रेस्टोरेंट कमीशन स्ट्रक्चर में कमी चाहते थे, जिसमें हर ऑर्डर पर एवरेज कमीशन 2019 में 9.6% से बढ़कर 2023 में 24.6% हो गया है. पुणे रेस्टोरेंट और होटलियर एसोसिएशन (प्राहा) के प्रेसिडेंट गणेश शेट्टी ने इसी मुद्दे पर अपनी भूमिका साफ की. पेश है, आज का आनंद के स्पेशल कॉरेस्पांडेंट स्वप्निल बापट द्वारा लिए गए उनके साक्षात्कार के प्रमुख अंश-
सवाल - एक रिपोर्ट है कि तीन में से एक ईटरी डिलीवरी ऐप से बाहर निकलना चाहती है. तो असल में क्या हो रहा है? होटलवालों के क्या प्रॉब्लम हैं? आपकी ऐसे में भूमिका क्या है?
जवाब- होटल चालकों की प्रॉब्लम यह है कि डिलीवरी एप ने जो कमीशन पहले 5% से शुरू किया था, फिर बढ़कर 10, 12, 14, 18 हो गया. अब अगर हम मोटा-मोटा हिसाब लगाएं तो उनका कमीशन 33% है. अब वह होटल वाला 33% कमीशन देकर क्या बिजनेस करेगा? उसका प्रॉफिट 17-18% है, लेकिन अगर उसे 33% कमीशन देना पड़ रहा है, तो वह लॉस में है. सवाल-ऐसा कैसे हो सकता है कि इसमें होटल वालों को कोई फायदा न हो? जवाब- होटल वालों को कोई फायदा नहीं है. क्योंकि, एप से ऑर्डर पाने वाले कस्टमर की कॉन्टैक्ट डिटेल्स होटल वालों के साथ शेयर नहीं की जातीं. यानी, होटल वालों को पता नहीं होता कि कस्टमर कौन है. और तो और, अभी का सिस्टम यह है कि डिलीवरी एप होटल से खाना लेकर 33% कमीशन लेकर कस्टमर को पहुंचा देगा.
सवाल-क्या होटल वाले इतना कमीशन देने से बचने के लिए एप से डिलीवरी बंद कर रहे हैं?
जवाब- शुरू में दो-तीन साल तक कमीशन 3-4% तक था. बाद में उन्होंने इसे एक प्रतिशत बढ़ा दिया. इसलिए, होटल वालों ने कीमत 10% बढ़ा दी और मेन्यू कार्ड बना लिया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. मैं आपको एक उदाहरण देता हूं, मान लीजिए मेरा 25 हजार का बिजनेस है. इसका 33% कमीशन 7-8 हजार रुपये होता है. इसे डिलीवरी कंपनी को देने के बजाय, अब होटल वालों ने अपने ही स्टाफ को डिलीवरी बॉय का काम दे दिया है. इसके लिए उन्हें 5% कमीशन देते हैं. उन्हें सैलरी के अलावा, सामान पहुंचाने के लिए पेट्रोल का भी पेमेंट करते हैं. होटल वाले इसे अफोर्ड कर सकते हैं.
सवाल-इस तरीके से होटल वालों को किसी को कमीशन नहीं देना पड़ता?
जवाब- हमें कमीशन तो नहीं देना पड़ता, लेकिन हम अपने कस्टमर से पर्सनल टच भी बनाए रखते हैं. हमें कस्टमर का नंबर और जानकारी मिल जाती है. चूंकि कस्टमर हमारी क्वालिटी जानते हैं, इसलिए वे हमेशा जुड़े रहते हैं. वे ऑर्डर देते हैं और हमें बस डिलीवर करना होता है.
सवाल-तो क्या एप की कमीशन इन्कम धीरे-धीरे कम हो गई है?
जवाब- अब उन्होंने कस्टमर से कमीशन लेना शुरू कर दिया है. इसका क्या मतलब है, वे हमसे पैकिंग का चार्ज नहीं लेते, हम बिना पैकिंग के पेमेंट करते हैं. वे कस्टमर से पैकिंग का चार्ज लेते हैं. यानी, वे अलग से बिलिंग करते हैं, है ना..? वे आपसे कुछ चार्ज नहीं लेते, वे उस व्यक्ति से चार्ज लेते हैं. शुरू में, डिलीवरी फ्री थी, लेकिन अब एप कंपनी अपने चार्ज कस्टमर से लेती है.
सवाल - तो कोई भी इस तरह कमीशन नहीं दे सकता..? यह उनके लिए अफोर्डेबल नहीं?
जवाब - सिर्फ डार्क किचन या क्लाउड किचन चलाने वाले ही इस तरह कमीशन देकर बिजनेस कर सकते हैं. क्योंकि, उन्हें सिर्फ खाना डिलीवर करना होता है. लेकिन, हमें होटल में आने वाले कस्टमर्स को पानी, एसी, मीटिंग की सुविधाएं वगैरह देनी होती हैं. क्लाउड किचनवाले ये सुविधाएं नहीं देते. बस एक FSS I लाइसेंस, 100-150 फीट की जगह और वे अलग-अलग कंपनियों के नाम पर खाना बेचकर डिलीवर कर देते हैं. क्योंकि उनके पास वॉक-इन कस्टमर नहीं आते, इसलिए उनका खर्च कम हो जाता है. उनका कोई एस्टेब्लिशमेंट खर्च नहीं होता. सिर्फ जो काम वे करते हैं, 4-5 लोग, 6 लोग, वो और बिजली का बिल और सामान की खरीदारी. तो हमारे लिए जो 33-34% खर्च होता है, वह उनके लिए कुछ भी नहीं है. तो वे इसे अफोर्ड कर सकते हैं.
सवाल-इस समस्या से बाहर निकलने के लिए होटल वालों ने क्या विकल्प ढूंढे हैं?
जवाब- होटल वालों ने भी एप बनाया है. लेकिन उस एप के एडवर्टाइजिंग का खर्च करोड़ों रुपये है. और तो और, उसकी सर्विस भी उतनी काम की नहीं है. फिलहाल पुणे में कई होटल वाले अब इस डिलीवरी एप कंपनी सिस्टम से बाहर निकल रहे हैं.अच्छे ब्रांड धीरे-धीरे कम हो रहे हैं. उन्होंने डिलीवरी के लिए अपने तीन-चार स्टाफ रख लिए हैं. तो आपके होटल के लिए 30% कमीशन देने के बजाय डिलीवरी करना अयादा सस्ता है.
सवाल-क्या होटल वाले इसके लिए भी कुछ चार्ज लेते हैं?
जवाब- अगर आप किसी होटल का मेन्यू कार्ड देखते, तो उसमें लिखा होता फ्री होम डिलीवरी 2 किमी रेडियस, या 5 किमी रेडियसफ. यह धीरे-धीरे ढाई साल में शुरू हुआ. आमतौर पर, हमारे पास 5 से 6 किमी के अंदर कस्टमर होते हैं.
सवाल- लेकिन अगर कोई लंबी दूरी का कस्टमर किसी खास होटल से कुछ खाना ऑर्डर करना चाहता है..?
जवाब- डिलीवरी एप का एग्रीमेंट ऐसा है, हम आपको सिर्फ 3 किमी या 4 किमी तक ही फ्री डिलीवरी देंगे. अगर दूरी उससे अयादा है, तो हम कस्टमर से पेट्रोल का चार्ज लेंगेफ. अब कस्टमर सोचता है कि अगर मुझे अपने एरिया में 100 रुपये में डोसा मिलता है और डिलीवरी कंपनी, लेकिन मुझसे सारा चार्ज लेकर 150 रुपये में देती है, तो धीरे-धीरे वह कस्टमर चला जाता है. लेकिन ऐसा होने पर होटल का वह बिजनेस कम हो जाता है, डिलीवरी कंपनी को कोई फर्क नहीं पड़ता. उन्हें दूसरा कस्टमर मिल जाता है.
सवाल-अगर कोई डिलीवरी कंपनी अपना किचन शुरू करती है तो?
जवाब- उन्होंने यह एक्सपेरिमेंट किया था. लेकिन, उन्होंने इसे तुरंत बंद कर दिया. उन्होंने अपना क्लाउड किचन बनाया था. क्योंकि उनके पास सारा कस्टमर डेटा था. लेकिन वह एक्सपेरिमेंट फेल हो गया, क्योंकि होटल में जो क्वालिटी मैं देता हूं, वह मेरा ब्रांड है, मेरा एक फॉर्मूला है. शायद उन्हें वह नहीं मिला होगा. अब, अगर कोई एक डिश भी हो, तो वह सभी होटलों में एक जैसी नहीं मिलती. सबकी अपनी-अपनी स्पेशलिटी होती है. मेरे होटल का टेस्ट अलग है, किसी और का अलग. तो सबके अपने शेफ हैं, वे उसमें गड़बड़ा गए. और तो और, क्लाउड किचन शुरू करने के बाद, एक कंपनी आई, एक परचेजर आया, एक स्टॉकमैन आया, एक किचन आया, एक शेफ आया, एक कुक आया. यही हमारा सिस्टम है. फिर उन्हें एहसास हुआ कि इससे उन्हें कोई पैसा नहीं मिलता. तो वे कुछ नहीं करना चाहते. उन्हें एसी में बैठना है. यहां से ऑर्डर लें और उन्हें यहां आगे बढ़ाएं. और बीच में कुछ किए बिना पैसे कमाएं. यही सब विषय है.