काेर्ट ने कहा-मंदिर का धन देवता का हाेता है !

25 Dec 2025 15:00:27
 
 

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सर्वाेच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि मंदिर का धन देवता का हाेता है. इस मामले में केरल उच्च न्यायालय के उस आदेश काे चुनाैती दी गई थी, जिसमें थिरुनेल्ली मंदिर देवस्वम की जमा राशियाें काे लाैटाने के निर्देश दिए गए थे. खंडपीठ ने पूछा कि उच्च न्यायालय के निर्देश में गलत क्या है? मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने पूछा, ‘क्या आप मंदिर का पैसा बैंक काे बचाने के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं? मंदिर की राशि ऐसे सहकारी बैंक में क्याें रखी जाए, जाे मुश्किल हालत में है? उसे एक स्वस्थ राष्ट्रीयकृत बैंक में क्याें न रखा जाए, जहां अधिक ब्याज भी मिलेगा?’ सहकारी बैंकाें की ओर से तर्क दिया गया कि उच्च न्यायालय ने दाे महीने में जमा राशि लाैटाने का ‘अचानक’ निर्देश दे दिया है, इससे काफी कठिनाई हाे रही है. इस पर खंडपीठ ने कहा, ‘आपकाे जनता में अपनी विश्वसनीयता बढ़ानी चाहिए.
 
यदि आप ग्राहकाें काे आकर्षित नहीं कर पा रहे हैं, ताे यह आपकी समस्या है.’ बैंकाें की ओर से कहा गया कि वे जमा एफडी बंद करने का विराेध नहीं कर रहे, बल्कि अचानक राशि लाैटाने के निर्देश से कठिनाई हाेगी. मगर सर्वाेच्च न्यायालय ने सहकारी बैंकाें की सभी याचिकाएं खारिज कर दीं, हालांकि, उन्हें उच्च न्यायालय से समय बढ़ाने का अनुराेध करने की स्वतंत्रता दी. याचिकाएं मनंथवाडी काे-ऑपरेटिव अर्बन साेसायटी लिमिटेड और थिरुनेल्ली सर्विस काे-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड ने दायर की थीं.थिरुनेल्ली देवस्वम ने हाईकाेर्ट का रुख इसलिए किया, क्याेंकि बार-बार मांग के बावजूद बैंक एफडी वापस नहीं कर रहे थे. केरल उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि देवस्वम की सभी जमा खाताें काे बंद कर दाे महीने के भीतर रकम लाैटाई जाए.
इससे पहले तिरुमाला मंदिर में हुए विवाद से मंदिराें की देखरेख एवं इनके धन काे लेकर भी कई विवाद उठे थे.
 
ऐसे में, यह जानना दिलचस्प हाेगा कि भारत में पूजा स्थलाें का प्रबंधन कैसे किया जाता है? अधिकांश हिंदू मंदिरका प्रबंधन राज्य के नियमाें के तहत किया जाता है. कई राज्य ऐसे कानून बनाते हैं, जाे मंदिर प्रशासन काे सरकारी अधिकार प्रदान करते हैं. जैसे, तमिलनाडु का हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदाेबस्ती विभाग मंदिर प्रबंधन की देखरेख करता है, जिसमें वित्त और मंदिर प्रमुखाें की नियुक्तियां भी शामिल हैं. आंध्र प्रदेश सरकार तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम के प्रमुख की देखरेख और नियु्नित करती है.प्रमुख मंदिराें से प्राप्त राजस्व काे अक्सर छाेटे मंदिराें के रखरखाव और अस्पतालाें, अनाथालयाें और शैक्षणिक संस्थानाें जैसे सामाजिक कल्याण आदि के लिए आवंटित किया जाता है.
 
इन मंदिराें में राज्य काे हस्तक्षेप की शक्ति संविधान के अनुच्छेद 25 (2) से प्राप्त हाेती है, जाे जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए धार्मिक प्रथाओं से संबंधित आर्थिक व सामाजिक गतिविधियाें के विनियमन की अनुमति देता है. जनगणना 2011 के अनुसार देश में लगभग तीस लाख पूजा स्थलाें में से अधिकांश हिंदू मंदिर हैं.मुस्लिम और ईसाई पूजा स्थलाें की देखरेख आमताैर पर समुदाय-आधारित बाेर्ड या ट्रस्ट द्वारा की जाती है, जाे सरकारी नियंत्रण से स्वतंत्र रूप से काम करते हैं. यह विकेंद्रीकृत प्रबंधन दृष्टिकाेण काे बढ़ावा देता है. सिख, जैन और बाैद्ध मंदिराें का प्रबंधन राज्य के आधार पर सरकारी विनियमन के विभिन्न स्तराें के अधीन है, जबकि समुदाय की भागीदारी उनके प्रशासन में भूमिका निभाती है.धार्मिक दान और संस्थान संविधान की सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची के तहत सूचीबद्ध हैं, जाे केंद्र और राज्याें, दाेनाें काे इस विषय पर कानून बनाने की अनुमति देते हैं.
 
इससे राज्याें में विविध नियामक ढांचे बने हैं. श्रीमाता वैष्णाे देवी श्राइन एक्ट, 1988 के साथ जम्मू-कश्मीर जैसे कुछ राज्याें ने अलग-अलग मंदिराें के लिए विशिष्ट कानून बनाए हैं, जाे उनके प्रशासन और वित्त पाेषण की रूपरेखा तैयार करते हैं.स्वतंत्रता के बाद 1950 में, भारत के विधि आयाेग ने मंदिर निधि के दुरुपयाेग काे राेकने के लिए कानून की सिफारिश की. इससे तमिलनाडु हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदाेबस्ती अधिनियम, 1951 लागू किया गया. यह मंदिराें और उनकी संपत्तियाें के प्रशासन और संरक्षण के लिए हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदाेबस्ती विभाग के निर्माण का प्रावधान करता है. लगभग इसी समय, बिहार में धार्मिक संस्थानाें काे विनियमित करने के लिए बिहार हिंदू धार्मिक न्यास अधिनियम, 1950 पारित किया गया था.
 
अनुच्छेद 25 (1) लाेगाें काे अपने धर्म का पालन करने, मानने और प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है, जाे सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है. अनुच्छेद 25 (2) राज्य काे धार्मिक प्रथाओं से जुड़ी आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या धर्मनिरपेक्ष गतिविधियाें काे विनियमित करने और सामाजिक कल्याण, सुधार और हिंदुओं के सभी वर्गाें के लिए हिंदू धार्मिक संस्थानाें काे खाेलने के लिए कानून बनाने की अनुमति देता है. इसलिए, धार्मिक प्रथा के धर्मनिरपेक्ष पहलुओं काे विनियमित करने का मुद्दा पूजा तक पहुंच प्रदान करने से अलग है.धर्म के राज्य प्रबंधन के लिए न्यायिक प्रस्ताव में शिरूर मठ बनाम आयु्नत, हिंदू धार्मिक बंदाेबस्ती, मद्रास मामला, 1954 महत्वपूर्ण हैं. - विनय झैलावत
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